विश्लेषण

सत्ता की चाह या नई चाल ? नागालैंड में सरकार को समर्थन देकर क्या चाह रहे राजनीति के चाणक्य शरद पवार, क्या टूट की राह पर MVA?

नागालैंड में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद वहां की सियासत में तो अगल ही खेल देखने को मिल रहा है। साथ में ऐसा कुछ भी हुआ है। जिसका सीधा असर बिहार और महाराष्ट्र की सियासत पर भी पड़ा है।

नागालैंड में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद वहां की सियासत में तो अगल ही खेल देखने को मिल रहा है। साथ में ऐसा कुछ भी हुआ है। जिसका सीधा असर बिहार और महाराष्ट्र की सियासत पर भी पड़ा है। सबसे पहले तो ये बात किसी को हजम नहीं हो रही है कि नगालैंड विधानसभा एक बार फिर से विपक्ष मुक्त हो गई है। सूबे में बहुमत हासिल करने वाली एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन को लगभग सभी दलों ने बिना शर्त समर्थन दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि नगालैंड में सभी दल सरकार के साथ खड़े हो जाते हैं ? अब इस सवाल का जवाब तो हम बाद में जानेंगे। पहले सबसे बड़ी बात ये जान लेते हैं कि बिहार में नीतीश कुमार और महाराष्ट्र में शरद पवार की पार्टी जिस भाजपा का देशभर में विरोध कर रही है। आखिर उन्ही दलों ने नगालैंड में भाजपा को कैसे समर्थन दे दिया। ये सवाल हर किसी के मन में उठ रहे हैं। हालाकि नागालैंड में जेडीयू के एकमात्र विधायक ने एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन को जो समर्थन दिया है। जिसके बाद पार्टी ने अपनी राज्य इकाई भंग कर दी है। जेडीयू ने इसके पीछे तर्क दिया है कि राज्य इकाई ने बिना राष्ट्रीय नेतृत्व से बात कर फैसला लिया था। चलो जेडीयू ने तो अपनी राज्य इकाई भंग कर के साबित कर दिया कि उसका एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन को समर्थन देने का कोई भी इरादा नहीं था। लेकिन देशभर में भाजपा का विरोध करने वाली शरद पवार की पार्टी एनसीपी नगालैंड में भाजपा गठबंधन को समर्थन देकर क्या संदेश देना चाहती है। ये बात किसी के गले नहीं उतर रही है। कहते है कि राजनीति के चाणक्य शरद पवार के दिमाग में क्या चल रहा है। इसका अंदाजा लगाना उनके सहयोगियों के लिए भी काफी मुश्किल होता है। एक तरफ जहां महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी में एनसीपी की सहयोगी उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना बीजेपी को पानी पी-पीकर कोस रही है। इन सबके बीच शरद पवार ने नगालैंड में एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन को अपना समर्थन देकर एक नई राजनीति को हवा दे दी है।

सत्ता की भूख या नई चाल ?

समर्थन देने के बाद भले ही शरद पवार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि गठबंधन को समर्थन देने का मतलब बीजेपी को समर्थन देना नहीं है। लेकिन उनके दिमाग में क्या चल रहा है। इसकी चर्चाएं शायद अब राजनीति गलियारों में गुप-चुप तरीके से चलने लगी हैं। हालिया नागालैंड के विधानसभा चुनाव में एनसीपी ने 7 सीटों पर कब्जा जमाया है। बीजेपी को 12 सीटें मिली हैं। वहीं एनडीपीपी यानि नेशनल डेमोक्रेटिक पीपुल्स पार्टी ने कुल साठ सीटों में 25 सीटें इस चुनाव में जीती हैं। एनडीपीपी और बीजेपी का चुनाव से पहले गठबंधन था। ऐसे में अब एनसीपी का कहना है कि इस मामले पर हमारी एनडीपीपी के नेफ्यू रियो के साथ पहले ही चर्चा हुई थी। एनसीपी ने नगालैंड की जनता के हित को ध्यान में रखते हुए रियो को समर्थन दिया है। एनसीपी के प्रवक्ता नरेंद्र वर्मा ने कहा कि नगालैंड में चुने हुए विधायकों की यह इच्छा थी कि जनता के हित के लिए हमें सरकार का हिस्सा होना चाहिए। बाद में यह मुद्दा शरद पवार के पास लाया गया। जिसपर पवार ने समर्थन देने की बात कही है। एनसीपी ने अपना स्टैंड साफ करते हुए कहा है कि हमारा समर्थन पूरी तरह से रियो के लिए है। बीजेपी को हमने अपना समर्थन नहीं दिया है। हमने रियो के साथ हाथ मिलाया है बीजेपी के साथ नहीं। अब ऐसे में ये सवाल उठना लाजमी हो जाता है कि महाराष्ट्र में शरद पवार की पार्टी भले ही बीजेपी के खिलाफ हो, लेकिन नगालैंड में एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन के साथ खड़ी है।

महाराष्ट्र में बैर और नागालैंड में समर्थन ?

सवाल बनता है कि महाराष्ट्र में बीजेपी से बैर और नागालैंड में हम साथ-साथ ऐसा क्यों। क्या शरद पवार की पार्टी सत्ता की भूखी है? ये सवाल इसलिए क्योकि जब महाराष्ट्र में उद्धव सरकार बनने लगी तो शरद पवार उद्धव के साथ खड़े हो गए। और अगर बात साल 2014 के चुनाव की करें तो बीजेपी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई थी। हालांकि, वह बिना सहारे के सरकार बना पाने की हालत में नहीं थी। उस समय भी एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने बीजेपी को सरकार में बाहर से समर्थन देने की घोषणा की थी। अब नागालैंड में भी ये कहना गलत नहीं होगा कि एनसीपी ने सिर्फ सत्ता की लालच में एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन को समर्थ दिया है। भले ही अब एनसीपी इसके पीछे कोई भी तर्क दे। अगर एनसीपी को सच में भाजपा का विरोध करना था। तो नागालैंड में आसानी से मजबूत विपक्ष की भूमिका निभा सकती थी। एनसीपी तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी और विपक्ष में रहते हुए नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी भी पक्की थी। इसके बाद भी एनसीपी की स्थानीय इकाई ने नेफ्यू रियो सरकार को बिना शर्त समर्थन दे दिया। जिसने कई सवालों को जन्म दे दिया है।

पवार का फैसला बदलेगा महाराष्ट्र की सियासत ?

एनसीपी प्रमुख क्या कोई नई चाल चलने वाले हैं। ये सवाल सबके जहन में है। लेकिन ये तो पक्का है कि शरद पवार के इस फैसले का असर महाराष्ट्र में सहयोगी शिवसेना और कांग्रेस पर पड़ना तय है। उद्धव ठाकरे गुट के विधायक भास्कर जाधव की माने तो उन्हें एमवीए की बैठक में लिए गए फैसले की जानकारी नहीं है। चर्चा है कि विधानसभा बजट सत्र के एक दिन पहले बुधवार को एमवीए नेताओं की जॉइंट मीटिंग हुई। जिसमें अप्रैल और मई के महीने में जॉइंट रैलियों को लेकर चर्चा हुई। माना जा रहा है कि इसी मीटिंग में नगालैंड में एनडीपीपी के समर्थन को लेकर भी चर्चा हुई। हालांकि, इस बात की भी चर्चा है की पवार ने उद्धव ठाकरे को इस बारे में विश्वास में नहीं लिया।

 

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