विश्लेषण

शर्मा-हितानन्द की कदमताल से बहाल होता अनुशासन

वीडी शर्मा के कार्यकाल में पार्टी की भाजपा की राज्य इकाई ने अनुशासन से जुड़े विषयों पर गंभीर रुख दिखाया है और ऐसे मामलों में नोटिस देने सहित कड़े कदम उठाने का सिलसिला भी उल्लेखनीय तरीके से बढ़ा है। इसमें शर्मा और प्रदेश संगठन महामंत्री हितानन्द की कदमताल की बहुत बड़ी भूमिका रही है।

भोपाल। एक बड़ा कदम उठाते हुए भारतीय जनता पार्टी की मध्यप्रदेश इकाई ने सुशील तिवारी को राज्य कार्यसमिति से बाहर कर दिया है। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने अनुशासनहीनता के मामले में यह कार्रवाई की है। पार्टी ने इस मामले में तिवारी को नोटिस जारी किया था। उनका जवाब संतोषजनक नहीं पाए जाने के बाद कार्यसमिति से उनकी सदस्यता समाप्त कर दी गयी है।

इस निर्णय के कई अर्थ निकाले जा सकते हैं। सबसे पहली बात यह कि वीडी शर्मा के कार्यकाल में पार्टी की भाजपा की राज्य इकाई ने अनुशासन से जुड़े विषयों पर गंभीर रुख दिखाया है और ऐसे मामलों में नोटिस देने सहित कड़े कदम उठाने का सिलसिला भी उल्लेखनीय तरीके से बढ़ा है। इसमें शर्मा और प्रदेश संगठन महामंत्री हितानन्द की कदमताल की बहुत बड़ी भूमिका रही है। स्थिति यह हो गयी है कि कप्तान सिंह सोलंकी के बाद अब कहीं जाकर एक बार फिर स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि पार्टी में अनुशासनहीनता करने वालों के लिए कोई स्थान नहीं है। सोलंकी की संगठन में पारी समाप्त होने के बाद प्रदेश भाजपा में अनुशासन से जुड़े कई गंभीर प्रसंग सामने आए थे, लेकिन उनके विरुद्ध कार्रवाई का जो क्रम अब शर्मा और हितानन्द के समय एक बार स्थापित हुआ है, उसकी बीच में काफी कमी महसूस की जा रही थी।

सागर जिले से संबद्ध तिवारी की गिनती वहाँ के प्रभावशाली नेताओं में होती है। उनकी पत्नी संगीता तिवारी सागर की महापौर हैं। तिवारी को राज्य मंत्रिमंडल सहित भाजपा प्रदेश संगठन में कई दिग्गजों का नजदीक माना जाता है, इसके बावजूद उन्हें जिस तरह के कठोर निर्णय का सामना करना पड़ा, उससे पार्टी में नीचे से ऊपर तक यह सन्देश गया है कि अमर्यादित आचरण के लिए पार्टी अपने नियमों से किसी भी तरह का समझौता करने के मूड़ में नहीं है। इस संदेश का महत्व उस समय और बढ़ जाता है, जब भाजपा में बाहरी दलों से बड़ी संख्या में ऐसे लोगों की एंट्री हो चुकी है, जो अनुशासन के मामले में भाजपा की रीति-नीति के इससे पहले तक प्रत्यक्ष संपर्क में नहीं रहे हैं।सुशील तिवारी भी कांग्रेस से भाजपा में आए हुए हैं। तिवारी सहित उन जैसे अन्य लोगों के मामलों में की गई ऐसी सख्ती का यह पक्ष भी ध्यान देने लायक है कि यह सब राज्य विधानसभा के चुनावी साल में किया जा रहा है। इससे यह होना तय दिखता है कि भाजपा ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में अपनी रीढ़ यानी संगठन को ‘कायदे में रहोगे तो फायदे में रहोगे’ वाली हिदायत के साथ और मजबूती प्रदान कर सकेगी।

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