श्राद्ध पक्ष, कौवों को खिलाएं जाता है खाना,जानिए वजह
पितृपक्ष शुरू हो चुके हैं और ये छह अक्तूबर तक श्राद्ध चलेंगे। इन 16 दिनों में पितरों को खुश करने के लिए ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है इसके साथ ही पंचबलि यानी गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटियों को भोजन सामग्री दी जाती है।श्राद्ध पक्ष में कौवों को भक्ति और विनम्रता से यथाशक्ति भोजन कराने की बात विष्णु पुराण में कही गई है।सी के चलते कौए को पितरों का प्रतीक मानकर श्राद्ध पक्ष के सोलह दिनों तक भोजन कराया जाता है। ऐसा करने से पितृ देवता खुश होते हैं, लेकिन इस परंपरा के पीछे धार्मिक वजह क्या है और ऐसा क्यों किया जाता है। ये बात बहुत कम लोग जानते हैं।
शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध करने के बाद जितना जरूरी ब्राह्मण को भोजन कराना होता है,उतना ही जरूरी कौवों को भोजन कराना भी होता है। माना जाता है कि कौवे इस समय में हमारे पितरों का रूप धारण करके हमारे पास उपस्थित रहते हैं।
पितृ पक्ष में कौवे न मिलने से अधूरा रह रही पौराणिक मान्यता
पितृ पक्ष शुरू हो चुका है। लोगों ने अपने पूर्वजों का श्राद्ध व तर्पण करना शुरू कर दिया है। इस समय में कौवे का आना और भोजन ग्रहण करना शुभ प्रतीक माना जाता है लेकिन कई जगह तो कौवे भी अब न के बराबर नजर आते हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि आस्था के इस पर्व में अब पर्यावरण का असर देखने को मिल रहा है। एक दशक पहले जब घर की मुंडेर पर सुबह कौवा आकर कांव-कांव करता था तो यह माना जाता था कि घर पर कोई मेहमान आने वाला है। वहीं, पितृपक्ष में कौवों की अहमियत अचानक बढ़ जाती है, क्योंकि मान्यता है कि कौवे को निवाला दिए बिना पितृ संतुष्ट नहीं होते।
दरअसल कौवा एक विस्मयकारक पक्षी है। इनमें इतनी विविधता है कि इस पर एक ‘कागशास्त्र’ तक की रचना की गई है। रामायण के एक प्रसंग के अनुसार भगवान राम और सीता पंचवटी में एक वृक्ष के नीचे बैठे थे। श्रीराम सीता माता के बालों में फूलों की वेणी लगा रहे थे। यह दृश्य इंद्रपुत्र जयंत देख नहीं सके। ईष्र्यावश उन्होंने कौए का रूप धारण किया और सीताजी के पैर पर चोंच मारी। राम ने उन्हें सजा देने के लिए बाण चलाया। इंद्र के माफी मांगने पर बाण से जयंत की एक आंख फोड़ दी, तब से कौए को एकाक्षी समझा जाता है।