धर्म

04 दिसंबर को है मार्गशीर्ष अमावस्या,जानिए पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचाग के अनुसार कार्तिक माह के बाद मार्गशीर्ष माह की शुरुआत होती है। मानयता है कि मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन पितरों की आत्म तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध आदि कर्म किए जाते हैंशास्त्रों में अमावस्या तिथि को पितरों को समर्पित माना गया है। पितरों से जुड़े किसी भी काम को करने के लिए ये तिथि अत्यंत शुभ मानी जाती है। साथ ही इस दिन पूजा-पाठ, स्नान, दान आदि का भी विशेष महत्व बताया गया है। अमावस्या तिथि 03 दिसंबर 2021 को शाम 04 बजकर 58 मिनट से शुरू होगी और 04 दिसंबर 2021 को दोपहर 01 बजकर 15 मिनट तक रहेगी। इसके अलावा मार्गशीर्ष अमावस्या तिथि पर देवी लक्ष्मी की पूजा विशेष फलदायी होती है। मुख्य रूप से अमावस्या तिथि महीने में एक बार आती है और इस दिन खासतौर पर पितरों को याद किया जाता है। हिंदू पंचांग के हिसाब से हर माह कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या तिथि होती है। आपकी कुंडली में यदि पितृ दोष है, तो इसके निवारण के लिए भी आप उपाय कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि मार्गशीर्ष अमावस्या की तिथि क्या है और इसका धार्मिक महत्व क्या है?

मार्गशीर्ष अमावस्या शुभ मुहूर्त
अमावस्या तिथि का आरंभ 03 दिसंबर 2021 को शाम 04 बजकर 58 मिनट होगा, वहीं अमावस्या तिथि का समापन 04 दिसंबर 2021 को दोपहर 01 बजकर 15 मिनट पर होगा।

मार्गशीर्ष अमावस्या का महत्व 2021
अमावस्या की तिथि पितरों को समर्पित होती है। ऐसे में मार्गशीर्ष माह की अमावस्या पर पितरों का तर्पण करने का महत्व है। मान्यता है इस दिन पितरों की पूजा और तर्पण करने से उनकी आत्म को शांति मिलती है जिससे प्रसन्न होकर पितरदेव अपने परिवार के सदस्यों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। अमावस्या तिथि पर गंगा स्नान, तर्पण और पिंडदान करने से व्यक्ति के जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

मार्गशीर्ष अमावस्या पूजा विधि
– सबसे सुबह जल्दी उठकर नित्यक्रिया करके किसी पवित्र नदी में स्नान करें और सूर्यदेव को अर्घ्य दें
– इसके बाद मंत्रों का जाप करते हुए स्नान के बाद जल में तिल प्रवाहित करें।
– इसके बाद अपने पितरों  और कुल देवी-देवताओं का स्मरण करते हुए पितरों को तर्पण करें और मोक्ष का कामना करें।
– स्नान और पितरों की पूजा के बाद दान करें।

स्नान और नारायण का ध्यान करें
अमावस्या पर पवित्र नदियों में स्नान का महत्व है। लेकिन अगर आप स्नान के लिए नदी के तट तक नहीं जा सकते हैं तो गंगा जल को किसी बर्तन में डालकर उसमें सामान्य पानी मिलाकर स्नान करें। स्नान करने के दौरान पवित्र नदियों का मन में स्मरण करें। ऐसा करने से भी तीर्थ स्नान के समान पुण्य फल मिल जाता है। स्नान के बाद श्री हरि की पूजा करनी चाहिए. उनके मंत्रों का जाप करना चाहिए और गीता का पाठ करना चाहिए. इससे तमाम कष्ट दूर हो जाते हैं।

पितरों के लिए करें धूप-ध्यान
अमावस्या तिथि को पितरों की आत्म तृप्ति के ​लिए तर्पण, पिंडदान एवं श्राद्ध कर्म भी किए जाते हैं। कुंडली में यदि पितृ दोष के निवारण के लिए भी ये तिथि शुभ मानी जाती है। आप इस अमावस्या की दोपहर करीब 12 बजे पितरों के लिए धूप-ध्यान करें। इसके लिए गोबर का कंडा जलाएं और जब धुआं निकलना बंद हो जाए, तब अंगारों पर गुड़-घी डालकर धूप दें। धूप देते समय पितरों का ध्यान करें। पितरों की मुक्ति के लिए गीता के सातवें अध्याय का पाठ करें और जरूरतमंद लोगों को सामर्थ्य के अनुसार दान करें।

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