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वक्फ बोर्ड के पास किसी व्यक्ति या समुदाय को धर्म से बाहर करने का अधिकार नहीं-ईरानी

ईरानी ने कहा, ''वक्फ बोर्ड को एक्ट ऑफ पार्लियामेंट के आधार पर अपनी सेवाएं देनी पड़ेगी ना कि किसी नॉन स्टेट एक्ट के अंतर्गत. मुझे पता चला है कि आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने कोई स्टेटमेंट जारी किया है, लेकिन अभी भी हमे आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव के जवाब का इंतजार है।

नई दिल्ली : आंध्रप्रदेश वक्फ बोर्ड के अहमदिया समुदाय को गैर मुस्लिम बताने वाले प्रस्ताव के बीच केंद्रीय मंत्री स्मति ईरानी ने बुधवार को जवाब दिया है। अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी का कहना है कि वक्फ बोर्ड और उसका समर्थन करने वाले जमीयत उलेमा ए हिंद के पास ये अधिकार नहीं है। ईरानी ने कहा, ”वक्फ बोर्ड को एक्ट ऑफ पार्लियामेंट के आधार पर अपनी सेवाएं देनी पड़ेगी ना कि किसी नॉन स्टेट एक्ट के अंतर्गत. मुझे पता चला है कि आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने कोई स्टेटमेंट जारी किया है, लेकिन अभी भी हमे आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव के जवाब का इंतजार है। हिंदुस्तान की संसद जो कानून तय करेगी उसी के अनुसार वक्फ बोर्डों को काम करना होगा।” 

आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने पास किया प्रस्ताव

स्मृति ईरानी ने कहा कि देश के किसी भी वक्फ बोर्ड के पास किसी व्यक्ति या समुदाय को धर्म से बाहर करने का अधिकार नहीं है। दरअसल, आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने एक प्रस्ताव पारित कर अहमदिया समुदाय को ‘काफिर’ (ऐसा व्यक्ति जो इस्लाम का अनुयायी न हो) और गैर मुस्लिम बताया था।

जमीयत उलेमा ए हिंद ने क्या कहा था? 
जमीयत उलेमा ए हिंद ने एक बयान में आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के अहमदिया समुदाय के संबंध में अपनाए गए दृष्टिकोण को सही ठहराते हुए कहा है कि यह समस्त मुस्लिमों की सर्वसम्मत राय है।बयान में कहा गया है, “ इस संबंध में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की अलग राय और उनका अलग रुख अनुचित और अतार्किक है, क्योंकि वक्फ बोर्ड की स्थापना मुसलमानों की वक्फ संपत्तियों और उनके हितों के संरक्षण के लिए की गई है, जैसा कि वक्फ अधिनियम में लिखा गया है। जमीयत ने कहा कि जो समुदाय मुसलमान नहीं हैं, उसकी संपत्तियां और इबादत के स्थान इसके दायरे में नहीं आते हैं। आगे कहा कि 2009 में आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने जमीयत उलेमा आंध्र प्रदेश की अपील पर यह दृष्टिकोण अपनाया था। वक्फ बोर्ड ने 23 फरवरी के अपने बयान में उसी दृष्टिकोण को दोहराया है।

जमीयत उलेमा ए हिंद ने क्या दलील दी?
जमीयत ने कहा कि इस्लाम धर्म की बुनियाद दो महत्वपूर्ण मान्यताओं पर है जो एक अल्लाह को मानना और पैगंबर मोहम्मद को अल्लाह का रसूल और अंतिम नबी मानना है। बयान में कहा गया है कि यह दोनों आस्थाएं इस्लाम के पांच बुनियादी स्तंभों में भी शामिल हैं। संगठन ने कहा कि इन इस्लामी मान्यताओं के विपरीत मिर्जा गुलाम अहमद ने एक ऐसा दृष्टिकोण अपनाया जो पैगम्बरवाद के अंत की अवधारणा के पूरी तरह से विरुद्ध है। इस मौलिक और वास्तविक अंतर के मद्देनजर अहमदिया को इस्लाम के संप्रदायों में सम्मिलित करने का कोई आधार नहीं है और इस्लाम के सभी पंथ इस बात पर सहमत हैं कि यह गैर मुस्लिम समुदाय है।

इस्लाम से संबंध नहीं…

जमीयत के मुताबिक, मुस्लिम वर्ल्ड लीग के छह से 10 अप्रैल 1974 को आयोजित सम्मेलन में सर्वसम्मति से अहमदिया समुदाय के संबंध में प्रस्ताव पारित कर घोषणा की गई थी कि इसका इस्लाम से संबंध नहीं है। इस सम्मेलन में 110 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था।

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