नज़रिया

विवाद छोड़िये, बुद्धि विलास कीजिए

एक राजनेत्री का ट्वीट देखा। रानी पद्मावती के जौहर की याद। हिन्दुओं की सभ्यता, संस्कार और धर्म को लेकर चेतावनी। वह भी इस अंदाज में कि यह सब ‘खा लिया’ जाएगा। मामला यह कि भोपाल में एक महिला संगठन के करवा चौथ वाले आयोजन में कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद ने हिस्सा ले लिया। कांग्रेस की अल्पसंख्यक राजनीति में मसूद जोरदार ‘ग़दर’ वाले अंदाज़ में आगे बढ़े हैं। विधायक का एक चुनाव हारने और फिर जीतने के पहले और बाद में उनके तेवर हमेशा से ही तीखे रहे हैं। अब बंद हो चुकी लिली टॉकीज में ग़दर फिल्म के हिंसक विरोध का मुकदमा आज भी उन पर कायम है। मसूद को आपत्ति थी कि फिल्म में मुस्लिम किरदार को मांग में सिन्दूर भरकर नमाज अदा करते हुए दिखाया गया था। कांग्रेस विधायक फ्रांस सरकार की कथित मुस्लिम-विरोधी नीतियों के खिलाफ भोपाल में ही गैर-कानूनी जमावड़ा करने के भी आरोपी हैं।

 

यही मसूद महिलाओं के संगठन के करवा चौथ वाले कार्यक्रम के लिए भी मुख्य अतिथि के रूप में चुने गए थे। इस बात की न कोई गुंजाइश है और न ही कोई प्रमाण कि विधायक ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर आयोजनकर्ताओं को उन्हें बुलाने के लिए विवश किया हो। कार्यक्रम की तस्वीरें देखिए। खिलखिलाते हुए महिला समूह को मसूद की मौजूदगी से किसी भी तरह की दिक़्कत का वहां कोई चिन्ह नहीं दिखता है। उल्टा करवा चौथ के उल्लास के बीच जिस उत्साह और अपनापन के साथ आरिफ मसूद को टीका लगाया गया, उस स्नेह की विवेचना के लिए तो खैर लंबी व्याख्या करनी पड़ जाएगी। इस निजता में दखल देना भी ठीक नहीं है।

तो फिर इस पर इतनी हाय तौबा क्यों? जब बिफरी हुई नेत्री यह लिखती हैं, ‘हिन्दुओं अभी भी वक्त है जाग जाओ नहीं तो तुम्हारा/हमारा धर्म, संस्कार, सभ्यता ये सब खा जाएंगे’ तब उनसे पूछा जाना चाहिए कि ‘ये’ से उनका आशय किससे है? मसूद से है तो क्यों? और यदि विधायक को हिंदू पर्व हेतु आमंत्रित करने वाले आयोजकों से यह आशय नहीं है तो ऐसा भी क्यों? इन सवालों के बीच यह पड़ताल भी जरूरी जान पड़ती है कि क्या इस ट्वीट में संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत को टैग किया गया था? क्योंकि भागवत ने तो हाल ही में कहा है कि अलग-अलग उपासना पद्धति होने के बाद भी हिन्दू-मुस्लिमों का डीएनए एक ही है। प्रेरणा बहुधा अपनी सुविधा और पसंद के हिसाब से ग्रहण की जाती है और हो सकता है कि इस मामले में भी भागवत किसी सुविधा या पसंद के लिहाज से ही प्रेरणा बन गए हों।

 

यदि आप मसूद के बयानों और कामों के आधार पर आयोजन में उनकी उपस्थिति से खफा हैं, तो यह गुस्सा आयोजकों पर होना चाहिए। वैसे तो गुस्से की ख़ास वजह है ही नहीं। कई संगठन सिर्फ इसी दम पर अपनी दुकान चमका लेते हैं कि उनके आयोजनों में वीआईपी शामिल होते हैं। हो सकता है कि इस कार्यक्रम के कर्ताधर्ताओं को करवा चौथ के लिहाज से कोई भी और वीआईपी अपने लिए अतिथि के रूप में मुफीद न महसूस हुआ हो। पसंद अपनी-अपनी, ख़याल अपना-अपना। मसूद से जुड़े तमाम विवाद के बाद भी मुमकिन है कि करवा चौथ वाले समूह ने यही पाया हो कि कार्यक्रम की शोभा तो इन नेताजी के आने से ही बढ़ेगी। धर्मनिरपेक्षता के वर्तमान फैशनेबल स्वरूप में ऐसा हो जाना कतई नहीं चौंकाता है। हर कोई अपने-अपने पारिवारिक संस्कारों के अनुरूप ही आचरण करता है। उस पर आपत्ति उठाने वाले हम और आप कौन होते हैं? फिर जब करवा चौथ पर हिन्दू पद्धति से पूजे जाने वाले ढेर सारे पतिदेवों को अपनी अर्द्धांगनियों के इस आयोजन पर आपत्ति नहीं है तो फिर बात आगे बढ़ाने का क्या अर्थ रह जाता है? तो ये विवाद छोड़िए और इस विषय पर बुद्धि विलास कीजिए कि आखिर विधायक आरिफ मसूद ने कैसे इतना लोकप्रिय व्यक्तित्व प्राप्त कर लिया है कि वह करवा चौथ मनाने वाली हिंदू मां-बहनों की इस पर्व के लिए सर्वोपरि और इकलौती पसंद बन गए?

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button