निहितार्थ

ऐसे कोरोना के बीच ये फैसला आपका है

यकीनन, हर कोई डरा हुआ हैं। लेकिन क्या वाकई लोग सचमुच डरे हुए हैं! अखबार की खबरें और न्यूज चैनल की चलती-फिरती तस्वीरें दहशत में डाले दे रही हैं। किन्तु क्या सचमुच लोग दहशत में हैं! सोशल मीडिया पर लतीफों और चटपटी खबरों की जगह मातम, मौत और मैय्यत ने ले ली है। मगर क्या सही में ही लतीफे और विषयों का चटपटापन अब पूरी तरह खत्म हो चुके हैं! यदि वास्तव में हम डरे हुए हैं तो फिर वो कौन है, जो अपनी और दूसरों की जान की परवाह किए बगैर एक गुटखे की मुंहमांगी कीमत देने के लिए जेब में पैसे डाले घर से बाहर निकला हुआ है? उनका  क्या नाम है, जो रात होते ही अपने-अपने गली-कूंचे में जमावड़ा जुटाकर ठहाके लगाते नजर आते हैं? उनकी क्या पहचान है, जिनके लिए आज भी मास्क गले में लटकाकर घूमने वाली एक बला ही बना हुआ है? और इस सबसे हटकर, हममें से कौन हैं वो, जिन्हें मौत और बीमारी के इस तांडव के बीच भी मुनाफा कमाने की हवस ने जकड़ रखा है?

चाहे जो कह सुन लें, लेकिन कोरोना की इस दूसरी ज्यादा कहर बरपा रही लहर ने केवल मरने वालों या बीमारों की संख्या ही नहीं बढ़ायी है। आचरण और व्यवहार में सुधार करने या बीमारी से बचने के लिए ईमानदार कोशिश करने वालों की संख्या में सामूहिक मौतों का यह भयावह पैगाम भी कोई बढ़ोत्तरी नहीं कर सका है। हां, कुछ लोगों के खाली दिमाग में शैतान के आकार को बढ़ाने का इन हालात में मौका जरूर दे दिया है। ये वे लोग हैं, जिनके भीतर का शैतान उन्हें कोरोना के इन हालात को लेकर तथ्यहीन समाचार और सामग्री को सोशल मीडिया पर प्रसारित करने की सीख दे रहा है। श्मशान में किसी चिता की आग की रोशनी से भी अपना चेहरा दैदीप्यमान करने वालों की ऐसी वर्तमान चाल तो वितृष्णा से भर दे रही है।





इधर, राजनीतिक लाभ के लिए हजारों-हजार लोगों की भीड़ को भी कोरोना के संक्रमण के मुंह में धकेलने से कोई संकोच नहीं किया जाता है? कहा तो यह भी जा रहा है कि ऐसे ही प्रभावशाली लोग कालाबाजारी या ऐसा करने वालों को संरक्षण दे रहे हैं। यूं देखा जाए तो सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों ही इस दौर के लिए बराबरी के गुनाहगार हैं। सरकारें यदि कोरोना की ऐसी भीषण वापसी का अंदाजा नहीं लगा पाईं तो उनका उतना ज्यादा कसूर नहीं है, जितना अधिक कसूर इस बात का है कि उन्होंने इस रोग की वापसी को लेकर दी गयी तमाम चेतावनियों को नजरंदाज कर दिया। मध्यप्रदेश को ही लीजिये, कोरोना के मामलों में जरा कमी आयी और दनादन इसके लिए बने विशेष अस्पताल तथा किए गए खास इन्तेजामात में कमी की जाने लगी। और अब आनन फानन में इस विभीषिका की आग से बचने के लिए रेगिस्तान में कुंआ खोदने जैसे नाकाफी प्रयास किये जा रहे हैं। कोरोना ने हमें मौका दिया था कि अपने हैल्थ सेक्टर को हम मजबूत करते चले जाएं। लेकिन सरकार और उसके जिम्मेदार अफसरान जनता की ही तरह लापरवाह निकले। और फिर तमाम आशंकाओं के बावजूद जरूरी दवाओं सहित आॅक्सीजन तथा अन्य सुविधाओं की कमी होना तो सरकारों के लिए आपराधिक लापरवाही जैसी बात है ही। विपक्ष का भी कसूर यह कि उसने भी इस मामले में सरकार को चेताने सहित उसके खिलाफ सशक्त माहौल बनाने में अक्षम्य ढीलापन दिखाया। सड़क की लड़ाई ट्विटर और सोशल मीडिया पर नहीं लड़ी जा सकती है। और अब तो सड़क पर आने का माहौल भी नहीं है।





और हम आम लोग तो बहुत ही रोचक किस्म के चुटकुले हैं। एक खबर सुनाई दे जाए। वह यह कि कोरोना कम हो गया है। बस  इतना होते ही हम फिर भीड़ में, मेले में और हजारों के रैले में ठप्पे से शामिल हो जाते हैं। मानसिक दरिद्रता में लिपटा कोई शख्स ‘कोरोना कोई चीज ही नहीं है, ये सब सरकार का झूठ है’ बोलता हुआ सोशल मीडिया पर दिख जाए तो हमारे बीच उस वीडियो को फॉरवर्ड करने की होड़ मच जाती है। हम इसे अधिकार मानते हैं कि कोरोना के संक्रमण के डर से हमारे दफ्तर की छुट्टी रहे, मगर हमें ये बर्दाश्त नहीं कि इस अवधि में हमारे घर के नौकर भी अवकाश पर रहें। हम कोरोना के चलते अपने-अपने आफिस बंद रखने के प्रबल आग्रही हैं, किन्तु जरा मौका मिलते ही बाजार सहित चाट-पकौड़ी के खोमचे और पान की दुकान खुल जाने की कामना हमें अपनी तरफ खींचने लग जाती है। हमें इन हालात में भी दोस्तों के हुजूम में  बैठकर गला तर करने या किसी पार्टी में मिल-जुलकर एन्जॉय करने का भूत आकर्षित करता है।

कोरोना अब कम से कम चार साल तो खत्म होने से रहा या फिर शायद कभी भी न खत्म हो। इसलिए हमें ही अपने भीतर और आसपास की कई विद्रुपताओं को खत्म करना होगा। याद रखें, कि जब तक इस रोग का एक भी मरीज  मौजूद है, तब तक इसके फिर से सिर उठा लेने की आशंका हमेशा जिंदा रहेगी। सिस्टम केवल बीमारों की जान बचाने की कोशिश कर सकता है, किन्तु बीमारों की नयी पौध न पनपे, यह केवल आपकी और हमारी सजगता से ही संभव हो पाएगा। कोरोना से डरिये, लड़िये, सावधान रहिए या फिर बेमौत मरिये, फैसला हमारा है।

प्रकाश भटनागर

मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में प्रकाश भटनागर का नाम खासा जाना पहचाना है। करीब तीन दशक प्रिंट मीडिया में गुजारने के बाद इस समय वे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश में प्रसारित अनादि टीवी में एडिटर इन चीफ के तौर पर काम कर रहे हैं। इससे पहले वे दैनिक देशबंधु, रायपुर, भोपाल, दैनिक भास्कर भोपाल, दैनिक जागरण, भोपाल सहित कई अन्य अखबारों में काम कर चुके हैं। एलएनसीटी समूह के अखबार एलएन स्टार में भी संपादक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। प्रकाश भटनागर को उनकी तल्ख राजनीतिक टिप्पणियों के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है।

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