नृत्य समारोह :सर जे जे स्कूल ऑफ आर्ट मुम्बई की प्रिंसिपल रही डॉ मनीषा पाटिल ने कहा, अपनी संस्कृति और उसके मूलधारों को समझना जरूरी
भोपाल। समकालीन चित्रकला हो या मूर्तिकला उनमें रोमन या ग्रीक जैसी पाश्चात्य संस्कृति का व्यापक असर रहा है,और ये असर आज भी देखने को मिलता है लेकिन समकालीन भारतीय चित्रकारों और मूर्तिकारों ने पाश्चात्य के असर से परे जाकर न केवल भारतीयता का अपना मुहावरा गढ़ा बल्कि भारतीय शिल्प एवं चित्रकला की मौलिकता को प्रतिपादित किया। ये कहना है मुम्बई की प्रख्यात चित्रकार एवं सर जे जे स्कूल ऑफ आर्ट मुम्बई की प्रिंसिपल रही डॉ मनीषा पाटिल का। वे आज यहां खजुराहो नृत्य महोत्सव के तहत अनुषांगिक कार्यक्रम कलावार्ता में कला के विद्यार्थियों और कला रसिकों के साथ संवाद कर रहीं थीं। सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट के संदर्भ में उन्होंने उसकी स्थापना से लेकर अब तक की विजुअल आर्ट की विकास यात्रा पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि बॉम्बे स्कूल केवल सर जे जे स्कूल तक सीमित नहीं है बल्कि उस पूरे रीजन में जो कला का वातावरण है ,को हम बॉम्बे स्कूल कहते हैं । 1837 में जब स्कूल की स्थापना हुई तब अंग्रेजी हुकूमत थी। ऐसे ही तीन और स्कूल चेन्नई, कोलकाता और लाहौर में शुरू हुए।चूंकि अंग्रेजों की हुकूमत थी सो उनका इंफ्लुएंस होना लाजिमी ही था। कला के उनके अपने मानक थे, सो जाहिर है यहाँ पढ़ने वाले उस असर से मुक्त नहीं हो सके।
विषय वस्तु और विचार के स्तर पर भारतीय होते हुए भी तकनीकी रूप से उनके कलाकर्म में अंग्रेजियत का असर रहा। उनके कला कर्म में ग्रीक और रोमन शैलियां प्रचुरता में देखी जा सकती है। लेकिन एक अरसे बाद आर्ट के क्षेत्र में पुनरूत्थान वादी युग की शुरुआत हुई। तब रज़ा , बेंद्रे, चिंचालकर अमृता शेरगिल जैसे तमाम कलाकारों ने अपने कलाकर्म में भारतीयता को जगह दी।
हमारी संस्कृति में जो सौंदर्य है वो कहीं और नहीं
डॉ पाटिल ने विभिन्न स्लाइड्स के प्रेजेन्टेशन के जरिये विजुअल आर्ट की विकास यात्रा तत्कालीन शिक्षण पद्धति आदि को बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत करते हुए कहा कि हमारी संस्कृति में जो सौंदर्य है वो कहीं और देखने को नहीं मिलता। अंग्रेज इस सौंदर्य को समझ नहीं सके ,उन्हें अब जाकर इस बात का अहसास हुआ है। उन्होंने बताया कि अमृता शेरगिल जैसी चित्रकार जो विदेश में ही पैदा हुई और जो अंग्रेजियत में पली बढ़ी , वह जब भारत लौटी तो उसका नजरिया पूरी तरह बदल गया। उनकी “तीन बहनें” शीर्षक वाली पेंटिंग को दिखाते हुए उन्होंने बताया कि उनकी पेंटिंग इस बात का प्रमाण है कि उनका कलाकर्म किस तरह बदला और भारतीय परिवेश उसका हिस्सा बना।
ज्ञान के आधार को बढ़ाना बेहद जरूरी
डॉ मनीषा पाटिल ने विद्यार्थियों के सवालों के जवाब भी दिए और कहा कि हमें अपनी संस्कृति और उसके मूलाधारों की समझने और ज्ञान को बढ़ाने की जरूरत है। मौजूदा पीढ़ी में बे इसकी कमी पाती हैं। ज्ञान के आधार को बढ़ाना बेहद जरूरी है। कार्यक्रम में वरिष्ठ चित्रकार लक्ष्मीनारायण भावसार नेभी अपने विचार साझा किए। शुरू में जाने माने संस्कृतकर्मी एवं कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने विषय प्रवर्तन किया और वार्ता का संचालन भी किया। उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ संगीत एवं कला अकादमी के निदेशक जयंत माधव भिसे ने डॉ श्रीमती पाटिल का पुष्पगुच्छ से स्वागत किया। इस अवसर पर अकादमी के उपनिदेशक राहुल रस्तोगी भी उपस्थित रहे।
चल चित्र में शोभना नारायण पर फ़िल्म का प्रदर्शन: खजुराहो नृत्य महोत्सव की दूसरी अनुषांगिक गतिविधि चल चित्र में आज प्रख्यात कथक नृत्यांगना शोभना नारायण के जीवन और उनके सांस्कृतिक अवदान पर फ़िल्म ” शोभना” का प्रदर्शन किया गया। 56 मिनिट की इस फ़िल्म का निर्देशन अपर्णा सान्याल ने किया है। इसके बाद पारंपरिक आदिवासी चित्रकला पर केंद्रित फ़िल्म ” द किंगडम ऑफ गॉड ” का प्रदर्शन किया गया। इसका निर्देशन रणवीर रे ने किया है। खजुराहो नृत्य समारोह के तहत चल रहे चल चित्र का संयोजन राज बेन्द्रे कर रहे हैं।