शादी से पहले मेहंदी से लेकर हल्दी की ये रस्में होती है बेहद खास
देवउठनी एकादशी के बाद से ही मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं और जिनकी शादी होने वाली होती है उनकी शादी की रस्में शुरू हो जाती हैं। हिंदू संस्कृति में शादी को बहुत बड़ा संस्कार माना जाता है, जिसके लिए दुनिया भर के रीति-रिवाजों निभाये जाते हैं, यहां हर रीति रिवाज यहां हर परंपरा का कुछ ना कुछ मतलब होता है । लेकिन क्या आप जानते हैं शादी में होने वाली हर रस्म के पीछे एक मान्यता होती है। क्या आपको पता है कि शादी में दूल्हा-दुल्हन को हल्दी क्यों लगाई जाती है या फिर दुल्हन के हाथों को मेहंदी से क्यों सजाया जाता है। आखिर जूते क्यों चुराए जाते हैं, क्यों वरमाला पहनाई जाती है, इन सबका अपना एक अलग महत्व है। आइए जानते हैं शादी की इन रस्मों के पीछे क्या कारण है।
दूल्हा-दुल्हन को क्यों लगाया जाता है हल्दी
दूल्हा-दुल्हन की शादी की शुरुआत हल्दी के कार्यक्रम से होती है. हल्दी और उबटन के कार्यक्रम में सुहागन स्त्रियों को शामिल किया जाता है। बहुत से लोग सोचते हैं कि हल्दी और उबटन लगाने से त्वचा में निखार आता है इसलिए इस परंपरा को किया जाता है लेकिन इसके पीछे यह मान्यता है कि शादी में कई मेहमान आते हैं, उनमें से कई लोगों को किसी भी तरह का इंफेक्शन हो सकता है। ऐसे में वर-वधु को संक्रमण न हो इसलिए उन्हें हल्दी और उबटन लगाया जाता है. दरअसल हल्दी एंटी बायोटिक की तरह काम करती है और इसलिए इसे शादी की रस्मों में इस्तेमाल किया जाता है।
राज –ए- मेहंदी
शादी पर दूल्हा-दुल्हन दोनों मेहंदी लगाते हैं। सिर्फ इतना भी नहीं शादी में शामिल होने वाली लड़कियां और महिलाएं भी मेहंदी लगाती हैं। मेहंदी लगाने को शुभ माना जाता है। मान्यता है कि मेंहदी जितनी गहरी होती है, भविष्य में वैवाहिक जीवन उतना ही अच्छा होता है। एक और मान्यता यह भी है कि शादी के दौरान कई तरह का तनाव होता है, उस दौरान मेहंदी मानसिक शांति प्रादन करती है।
शादी में मामा के घर से क्यों दिया जाता है भात
दूल्हा व दुल्हन के मामा के घर से लोगों के लिए कुछ गिफ्ट्स लाए जाते हैं, जिन्हें वह भेंट करते हैं. सबसे पहले कृष्णजी ने सुदामा की लड़की को भात दिया था, तभी से यह प्रथा चली आ रही है कि शादी में मामा के घर से भात दिया जाता है।
घोड़ी पर क्यों बैठता है दूल्हा
दूल्हा घर से निकलने के बाद घोड़ी पर बैठता है. दरअसल घोड़ी को सभी जानवरों में चंचल व कामुक माना जाता है. इसलिए वर को घोड़ी की पीठ पर बैठाकर बारात निकाली जाती है. मान्यता है कि वर इन दोनो बातों को स्वयं पर हावी न होने दे इसलिए उसे घोड़ी की पीठ पर बैठाया जाता है।
शादी पर क्यों की जाती है गणेश पूजा
दूल्हा व बाराती जब विवाह स्थल पर पहुंचते हैं तो दरवाजे पर कन्या पक्ष के लोग बारात का स्वागत करते हैं। इसके बाद दुल्हन के पिता व पंडित और उनके रिश्तेदार सभी गणेश जी की पूजा करते हैं। गणेश पूजा के बाद से ही कन्या के घर में सभी रस्मे शुरू की जाती हैं और इस रस्म के बाद वर पक्ष को मिलनी व उपहार दिया जाता है। कहते हैं हर शुभ कार्य की शुरुआत गणेश जी की पूजा के साथ ही होती है।
क्या डाली जाती है जयमाल
जयमाल की रस्म में दूल्हा व दुल्हन एक दूसरे को माला पहनाते हैं। मान्यता है कि दूल्हा और दुल्हन एक दूसरे को माला पहनाकर आपसी स्वीकृति प्रदान करते हैं। विष्णु पुराण के अनुसार देवी लक्ष्मी जब समुद्र मंथन से प्रकट हुईं तो उन्होंने भगवान विष्णु को माला पहनाकर पति रूप में स्वीकार किया था। यह उसी परंपरा का प्रतीक माना जाता है।
सात फेरों के साथ सात वचन
शादी की रस्मों में दूल्हा व दुल्हन का गठबंधन कर अग्नि के सामने सात फेरों के सात वचन लिए जाते हैं. पहले तीन फेरो में दुल्हन आगे रहती है बाद के चार फेरों में दूल्हा आगे रहता है. दूल्हा दुल्हन को सात वचन देता है। वहीं दुल्हन भी दुल्हे को सात वचन देती है। इसके बाद विवाह संस्कार का कार्य पूरा होता है।
क्यों लगाया जाता है मांग में लाल सिंदूर
विवाह मंडप में सात फेरों के बाद दूल्हा अपनी दुल्हन की मांग में लाल रंग का सिंदूर भरता है ताकि वह सदा सुहागन रहे और समाज में उसकी पत्नी के रूप में जानी जाए। सिंदूर लगाने की परंपरा के पीछे वैज्ञानिक कारण है कि जहां सिंदूर लगाते हैं वहां ब्रह्मरंध्र होता जो सिंदूर लगाने से मन को नियंत्रित रखने में सहायक होता है।
जूते छुपाने की रस्म
दूल्हा जब विवाह मंडप में आता है तब जूता उतारकर आता है। उसी समय दुल्हन की छोटी बहन जूते छुपाकर रख देती है। विवाह संस्कार पूरे होने के बाद बहनें अपने जीजा से नेग लेकर जूते वापस करती हैं। इस रस्म का कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है यह जीजा साली के मधुर और स्नेहपूर्ण संबंध और आनंद-विनोद के लिए होता है। कहते हैं यह रिवाज रामायण काल से चल रहा है।