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दमोह उपचुनाव का दंगल: लोधी को उम्मीदवार घोषित करने के बाद ‘अंर्तकलह’ में उलझी भाजपा, कांग्रेस में चेहरे का टोटा

भोपाल। दमोह विधानसभा सीट पर ठीक एक माह बाद 17 अप्रैल को उपचुनाव होने वाला है। उपचुनाव सत्ताधारी बीजेपी के साथ विपक्षी दल कांग्रेस के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसकी वजह यह है कि यहां से विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार जीता था और उसने दलबदल किया। जिसके चलते उपचुनाव होना है। भाजपा ने राहुल लोधी को उम्मीदवार घोषित कर दिया है, लेकिन पार्टी अंर्तकलह में उलझी है। सबसे बड़ा खतरा पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया बने हैं। वे खुद पर्दे के पीछे हैं, लेकिन बेटे सिद्धार्थ को को आगे कर दिया है।

इधर कांग्रेस में जिताऊ चेहरे का टोटा है। यहां टिकट के दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है। हालांकि सबकी निगाहें जिलाध्यक्ष अजय टंडन पर टिकी है। दरअसल, कांग्रेस मुकाबला तभी कर सकती है, जब वह ऐसे उम्मीदवार को लाए जो साफ-सुथरी छवि का हो और उसे जनता का समर्थन हासिल हो। ऐसा भी माना जा रहा है कि राहुल को टक्कर देने के लिए कांग्रेस अवधेश प्रताप सिंह पर दांव लगा सकती है। यदि ऐसा हुआ तो बीजेपी के लिए राह आसान नहीं होगी, क्योंकि अवधेश भी लोधी समाज से आते हैं। हालांकि अभी यह कयास ही हैं।

कांग्रेस के पर्यवेक्षक संजय यादव और नीलेश अवस्थी दो बार दमोह में कार्यकतार्ओं की बैठकें कर चुके हैं। प्रदेश प्रभारी मुकुल वासनिक भी स्थानीय नेताओं से मुलाकात कर नब्ज टटोल चुके हैं, लेकिन अभी तक किसी एक व्यक्ति पर दिल्ली, भोपाल और दमोह तक पदाधिकारियों की सहमति नहीं बन पाई है। दूसरी तरफ बीजेपी के तरफ से मंत्री भूपेंद्र सिंह और गोपाल भार्गव के पास दमोह की जिम्मेदारी है। इन दोनों मंत्रियों के हाथा में दमोह का दारोमदार है।

राहुल के मंच पर नहीं गए मलैया
बीजेपी सूत्रों ने बताया कि राहुल लोधी के बीजेपी में शामिल होने के बाद से जयंत मलैया ने उनके साथ मंच सांझा नहीं किया है। । जिस तरह से मलैया खेमा सक्रिय हैं, उसे देखकर विधानसभा में चुनाव की परिस्थितियां विपरीत नजर आ रही हैं। गौरतलब है कि दमोह के विधायक रहे राहुल लोधी ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया । वर्ष 2018 में राहुल सिंह ने ही मलैया को शिकस्त दी थी।

6 बार बीजेपी, 7 बार कांग्रेस को मिली यह सीट
विधानसभा सीट के इतिहास पर गौर करें तो पता चलता है कि अब तक हुए 15 चुनाव में 6 बार बीजेपी के जयंत मलैया जीते हैं तो वहीं दूसरी ओर 7 बार कांग्रेस का उम्मीदवार और 2 बार निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है। राहुल लोधी ही एक मात्र ऐसे उम्मीदवार रहे हैं जो पिछड़े वर्ग से होते हुए यहां जीत पाए हैं। इससे पहले कांग्रेस की ओर से बहुसंख्यक ब्राह्मण नेताओं ने जीत दर्ज की। इनमें प्रभुनारायण टंडन, चंद्र नारायण टंडन और मुकेश नायक के नाम प्रमुख हैं।

ब्राह्मण, जैन और अल्पसंख्यक एकजुट हुए तो बीजेपी के लिए चुनौती
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार दमोह का चुनाव रोचक होने वाला है, ऐसा इसलिए क्योंकि राहुल लोधी के दलबदल करने से एक वर्ग में नाराजगी है। इतना ही नहीं जयंत मलैया का टिकट कटने से जैन वर्ग में भी असंतोष है। इन स्थितियों में अगर ब्राह्मण, जैन और अल्पसंख्यक एक हो जाते हैं तो बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती हो सकती है। वहीं दूसरी ओर बीजेपी को पिछड़ा वर्ग और अपने पुराने वोटबैंक का साथ मिलता है तो उसके लिए जीत आसान हो जाएगी।

सीएम और प्रदेश अध्यक्ष कर चुके हैं दौरा
दमोह में बीजेपी के लिए राह आसान बनाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का दमोह का संयुक्त दौरा कर चुके हैं। मुख्यमंत्री चौहान ने लगभग 5 सौ करोड़ की सौगात दी है। इतना ही नहीं दमोह में मेडिकल कॉलेज स्थापित किए जाने को भी सरकार पहले ही मंजूरी दे चुकी है।

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