मामला चित्रकूट का: जिस धर्मशाला के प्रबंधक हैं कलेक्टर, उसमें भी दबंगों का कब्जा
अखिल भारतीय श्री पंच रामानंदीय निर्वाणी अखाड़ा के मार्गदर्शन में लंबे अर्से से संचालित धर्मशाला के तीन कक्षो में निजी तौर पर कब्जा जमाने का प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा है और अब अन्य कक्षों पर भी कब्जा जमाने की होड़ शुरू हो गई है।
सतना। बेशक यह बात सुनने में अतिशयोक्ति लगे लेकिन यह सच है कि चित्रकूट में धर्म संपदाएं व धर्म स्थलों का ही नहीं बल्कि अखाड़ा परंपरा का अस्तित्व भी खतरे में हैं। भू माफियाओं के बेजा कब्जे से कराहती धर्म नगरी के बेजा कब्जों को हटा पाने में अभी भी प्रशासनिक अमला लाचार नजर आ रहा है। हालात यह हैं कि अतिक्रमणकारियों ने चित्रकूट स्थित उस धर्मशाला के कक्षों में भी ताला जड़ रखा है जिस धर्मशाला के प्रबंधक के तौर पर कलेक्टर को दर्ज किया गया है। मेले के दौरान आने वाले मेलार्थियों की सुविधा के लिए बनवाई गई धर्मशाला के कक्षों में ताला लगने से मेलार्थियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
संत समाज का कहना है कि जब कलेक्टर प्रबंधक दर्ज कक्षों में ही अतिक्रमणकारी अपने ताले जड़ रहे हैं तो आम आदमी अपनी जमीनें चित्रकूट में किस प्रकार से बचाता होगा, इसका अंदाजा सहसा ही लगाया जा सकता है। बहरहाल अखिल भारतीय श्री पंच रामानंदीय निर्वाणी अखाड़ा के मार्गदर्शन में संचालित होने वाले कामदगिरि प्राचीन मुखारबिंद की धर्मशाला के कक्षों में लंबे अर्से से दबंगों के लटके ताले व्यवस्था का मुंह चिढ़ा रहे हैं।
क्या है मामला
दरअसल परिक्रमा मार्ग में कामदगिरि प्राचीन मुखारबिंद की धर्मशाला है जहां मेला के दौरान दूर दराज से आने वाले श्रद्धालु ठहरते हैं। दस्तावेजों में यह धर्मशाला कलेक्टर प्रबंधक के तौर पर दर्ज है। पूर्वजों व भक्तों द्वारा यहां समय समय पर कक्ष बनवाए गए ताकि चित्रकूट आने वाले श्रद्धालुओं के ठहरने में कोई परेशानी न हों। कई सालों तक भक्तों को ठहरने की सुविधा प्रदान करने वाली मुखारबिंद धर्मशाला पर जब दबंगों की नजर पड़ी तो उन्होने सुनियोजित तरीके से उन कक्षों में कब्जा जमाना शुरू कर दिया। अब हालात यह हैं कि प्राचीन मुखारबिंद के तीन कक्षों में बीते ढाई साल से अधिक समय से दबंगों ने अपने ताले जड़ रखे हैं। इसकी शिकायत भी अधिकारियों से कई मर्तबा की गई है लेकिन अब तक नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा है।
अन्य कक्षों पर भी कब्जा जमाने की मची होड़
अखिल भारतीय श्री पंच रामानंदीय निर्वाणी अखाड़ा के मार्गदर्शन में लंबे अर्से से संचालित धर्मशाला के तीन कक्षो में निजी तौर पर कब्जा जमाने का प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा है और अब अन्य कक्षों पर भी कब्जा जमाने की होड़ शुरू हो गई है। अखाड़ा प्रबंधन का कहना है कि यदि मुखारबिंद की धर्मशाला के कक्षों को नहीं खुलवाया गया तो धीरे-धीरे हर कक्ष क ा निजी उपयोग होने लगेगा और श्रद्धालुओं के ठहरने का स्थान छिन जाएगा। चित्रकूट के संत समाज ने जिला प्रशासन के आला अधिकारियों का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराते हुए धार्मिक व सार्वजनिक महत्व की जमीन बचाने की गुहार लगाई है।
अपने ही बनाए अधिनियम को सरकार ने दबाया
चित्रकूट के विश्व विख्यात धर्मस्थल बदलते वक्त के साथ ये विवाद का कारण भी बनते जा रहे हैं। आए दिन कई धार्मिक संस्थाओं में तनाव की स्थितियां बनी हुई हैं। विडंबना है कि धर्म स्थलों में ऐसे विवादों को टालने व धर्म स्थलों के संरक्षण के लिए साल 2009 में तैयार किया गया कामदगिरि धाम चित्रकूट अधिनियम अभी भी सरकारी दफ्तरों में धूल फांक रहा है। धर्मस्थलों पर आए दिन विवाद होने से संत समाज व प्रशासनिक तंत्र कई बार आमने सामने आ जाते हैं। दीपावली के ऐन पूर्व कामदगिरि प्राचीन मंदिर को लेकर ऐसा ही विवाद सामने आ चुका है।
महंतों और संतों को ही दी जा रही चेतावनी
संतों को पहले लगा कि प्रशासन उनके धर्मशाला का अतिक्रमण हटाने पहुंचा है लेकिन संतों का आरोप है कि अधिकारियों ने महंत और संतों को ही चेतावनी देनी शुरू कर दी। इस मामले को लेकर एक बैठक का आयोजन महत्वूपर्ण अखाड़ों व संतो की मौजूदगी में हुई थी जिसमें संतों से हुए दुर्व्यवहार को लेकर निंदा की गई थी। ऐसे विवादों को टालने व धर्म स्थलों को संरक्षित करने में कामदगिरि चित्रकूट अधिनियम 2009 रामबाण साबित हो सकता है लेकिन इसे क्यों दबा दिया गया और किसी जनप्रतिनिधि के मुंह से एक आवाज इसके लिए क्यों नहीं निकली, यह एक रहस्य ही है।