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पेंटिग्स : दुनिया भर में अपनी चित्रकला का लोहा, ‘शलाका 24 चित्रकला प्रदर्शनी 03 से 30 अप्रैल तक

भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय के ‘लिखन्दरा दीर्घा’ में मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय के ‘लिखन्दरा दीर्घा’ में गोण्ड समुदाय की चित्रकार धनैया बाई श्याम के चित्रों की प्रदर्शनी ‘शलाका 24’ का प्रदर्शन किया जा रहा है। लिखन्दरा पुस्तकालय की प्रदर्शनी दीर्घा में ‘शलाका 24 चित्रकला प्रदर्शनी 03 से 30 अप्रैल 2022 तक जारी रहेगी। चित्रकला प्रदर्शनी में प्रदर्शित चित्र विक्रय हेतु हैं जिन्हें चित्रकार से क्रय किया जा सकता है। प्रदर्शित चित्रों में देवी ,धूती एवं बगुला पक्षी एवं मकड़जाल, बघेसुर देव, बाघ बाघिन ,बारहसिंघा समूह, वृक्ष एवं देव स्थान, वृक्ष एवं पक्षी समूह, हिरण समूह , उल्लू एवं कलिहा, करमा नृत्य, कर्म वृक्ष एवं करमा नृत्य, कौवा एवं ककरामल, गाँव घर, तपस्वी, देव मढिया जैसे अन्य कई विषय देखने को मिलते हैं।
कला का इनके जीवन में बहुत अधिक स्थान नहीं
चित्रकार धनैया बाई श्याम वर्ष 1982 में मध्यप्रदेश के जिला डिन्डोरी तहसील के ग्राम पाटनगढ़ में जन्मी हैं। बचपन गाँव में ही बीता एवं माता-पिता की आर्थिक स्थिति अत्यधिक कमजोर होने एवं घर परिवार में अधिक संसाधन न होने के कारण बचपन का समय काफी तंगहाली में व्यतीत हुआ। बेहद कठिन समय एवं आर्थिक स्थिति ठीक न होने से अन्य भाई-बहनों की तरह ही धनैया भी कक्षा तीसरी के बाद शिक्षा ग्रहण नहीं कर पायीं। गाँव में माता-पिता खेतिहर मजदूरी करते एवं किसी त्यौहार या अन्य किसी प्रसंग के समय ही इनके घर में कुछ कलात्मक अभिव्यक्तियाँ दिख पाती इसी समय धनैया अपनी बहनों सहित माँ के साथ घर आँगन को लीपकर ढीग से सजाने का कार्य करने लगती, उसके अतिरिक्त कला का इनके जीवन में बहुत अधिक स्थान नहीं था। धीरे-धीरे धनैया ने बहनों संग माँ से ही मिटटी में काम करना सीखा एवं घरेलु उपयोग एवं आवश्यकताओं के लिए वस्तुएँ बनाने लगी। कम ही आयु में धनैया का विवाह मोहन सिंह से हो गया। विवाह उपरांत भी जब आर्थिक संकट कुछ काम न हो पाए, तब मोहन एवं धनैया ने एक बेहतर भविष्य की कल्पना करते हुए, भोपाल की ओर रुख किया और यहाँ में आकर पति-पत्नी मजदूरी का कार्य करने लगे।
दुनिया भर में मनवा चुकी है अपनी चित्रकला का लोहा
 उस समय यहाँ भोपाल में उनके मामा स्व. जनगढ़ सिंह श्याम जो दुनिया भर में अपनी चित्रकला का लोहा मनवा चुके थे, अपनी देख रेख में अनेक गोंड युवाओ को चित्रकला के गुर सिखा रहे थे, ठीक इसी समय एक अनूठी चित्र शैली जनगढ़ कलम भी विकसित हो रही थी। मोहन एवं धनैया के संघर्षो का जब जनगढ़ को संज्ञान हुआ तब एक फटकार के साथ इन दोनों को जनगढ़ ने रंग एवं ब्रश थमा दिया तथा साथ ही अपने घर ही में इनके भोजन एवं रहने की व्यवस्था भी कर दी। धीरे-धीरे जनगढ़ के मार्गदर्शन में धनैया एवं मोहन कुछ चित्र अपने स्वयं के लिए भी चित्र बनाने लगे। स्व. जनगढ़ सिंह श्याम इस कलाकार युगल के प्रथम गुरु हैं। उसके पश्चात् धनैया ने चित्रकला के लिए रंगों एवं ब्रश को थामा तो विराम नहीं लगने दिया। रोज चित्र बनाना वैसे ही आवश्यक हो गया जैसे भोजन करना। धीरे-धीरे आकारों एवं रंगों के संयोजन में परिपक्वता आने लगी और इनके चित्र  भी बेहतर आय का स्त्रोत बनने लगे, स्व. जनगढ़ सिंह श्याम का हर तरह से सहयोग था, जो धनैया को चित्रकर्म के लिए सतत प्रेरित करता गया और अपने वे चित्रों को दिन प्रतिदिन बेहतर बनाने मे प्रयासरत रहने लगी। मोहन सिंह ने भी धनैया को हर संभव सहयोग एवं  प्रोत्साहन दिया और धनैया का चित्रकार बनने का मार्ग प्रशस्त भी करते चले गए। धनैया ने लगभग 22 वर्षो की अपनी इस कला यात्रा में दिल्ली, इलाहाबाद, मुंबई सहित  देश भर में आयोजित अनेक कला शिविरों, चित्र प्रदर्शनियों में सक्रीय भागीदारी की है एवं इनके चित्र देशभर की अनेक कला दीर्घाओ, शासकीय एवं निजी संग्रहों में संग्रहीत हैं।
गाँव की स्मृतियों, त्योहारों, वन्य जीव जगत का मनुष्यों के अंतर्संबंधो का चित्रण
धनैया के चित्रों में मुख्य रूप से गाँव की स्मृतियों, त्योहारों, वन्य जीव जगत का मनुष्यों के अंतर्संबंधो का चित्रण होता है। समय व्यतीत होने के साथ-साथ धनैया ने अपनी चित्र परंपरा अपने बच्चो में हस्तांतरित करना आरम्भ किया, जिस से  वे अपनी परम्परा एवं रीती-रिवाजों से जुड़े रहे एवं शिक्षा के साथ-साथ एक कला भी सीख सके, जो भविष्य में अतिरिक्त आय का स्त्रोत भी बन सके। धनैया बाई श्याम भोपाल में रहकर पति एवं पुत्रियों के संग चित्रकर्म में सक्रीय हैं एवं नए माध्यमों पर नवप्रयोग कर चित्र परंपरा को नए आयाम देने के प्रयास में संलग्न हैं।

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