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भारतीय रेलवे के लिए आज दिन अहम: शिकंदराबाद में फुल स्पीड से आपस में टकराएंगी दो ट्रेनें, समझें क्या है पूरा मामला

सिकंदराबाद। भारतीय रेलवे (Indian Railways) के लिए आज का दिन काफी अहम साबित होने वाला है। आमतौर पर ट्रेन हादसे (train accident) अचानक होते हैं, लेकिन शुक्रवार को दो ट्रेनों की ऐसी भिड़ंत होगी। बता दें की सिकंदराबाद में शुक्रवार को फुल स्पीड से दो ट्रेनों की टक्कर (Two trains collide at full speed) करवाई जाएगी। इसमें एक ट्रेन में खुद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव (Railway Minister Ashwini Vaishnav) सवार होंगे तो दूसरी ट्रेन में रेलवे बोर्ड के चेयरमैन (Chairman of Railway Board) समेत अन्य बड़े अधिकारी। इसके जरिए से रेलवे देसी तकनीक ‘कवच’ का परीक्षण (Testing the technique ‘armor’) करेगा।

दरअसल इस टक्कर के माध्यम से रेलवे देशी तकनीक ‘कवच’ का परीक्षण करेगा। ‘कवच’ ऐसी स्वदेशी तकनीक है, जिसके इस्तेमाल से दो ट्रेनों की टक्कर नहीं होगी। दुनिया में यह सबसे सस्ती तकनीक है। ‘जीरो ट्रेन एक्सीडेंट’ के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस कवच का विकास किया गया है। दरअसल यह स्वदेश में विकसित स्वचलित ट्रेन सुरक्षा (एटीपी) प्रणाली है। कवच को एक ट्रेन को स्वत: रोकने के लिए बनाया गया है।

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव सनतनगर-शंकरपल्ली खंड (Vaishnav Sanatnagar-Shankarpally section) पर इस तकनीक के परीक्षण के साक्षी बनने के लिए सिकंदराबाद में होंगे। रेलवे के अनुसार रेल मंत्री और रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष 4 मार्च को होने वाले परीक्षण में भाग लेंगे। ‘कवच’ देश की ऐसी तकनीक है, जिसको लेकर दावा किया जा रहा है कि इसे लागू किए जाने के बाद से दो ट्रेनों की टक्कर नहीं होगी। यह इस तरह की दुनिया की सबसे सस्ती तकनीक है।

रेलवे को ‘zero accidentsट’ के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करने के लिए स्वदेशी रूप से विकसित स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (एटीपी) प्रणाली का निर्माण किया गया है। कवच को एक ट्रेन को स्वचालित रूप से रोकने के लिए डिजाइन किया गया है. वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि जब डिजिटल सिस्टम को रेड सिग्नल या फिर किसी अन्य खराबी जैसी कोई मैन्युअल गलती दिखाई देती है, तो ट्रेनें भी अपने आप रुक जाती हैं। उन्होंने कहा कि एक बार लागू होने के बाद इसे चलाने में 50 लाख रुपये प्रति किलोमीटर का खर्च आएगा, जबकि दुनिया भर में ऐसी तकनीक के लिए करीब 2 करोड़ रुपये खर्च होते हैं।





50 लाख रुपये प्रति किलोमीटर का खर्च
रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार जब डिजिटल सिस्टम को रेड सिग्नल या फिर किसी अन्य खराबी जैसी कोई मैन्युअल गलती दिखाई देती है, तो इस तकनीक के माध्यम से संबंधित मार्ग से गुजरने वाली ट्रेन अपने आप रुक जाती है। इस तकनीक को लागू करने के बाद इसके संचालन में 50 लाख रुपये प्रति किलोमीटर का खर्च आएगा। यह दूसरे देशों की तुलना में बहुत कम है। दुनिया भर में ऐसी तकनीक पर करीब दो करोड़ रुपये खर्च आता है।

बजट में की गई थी घोषणा
इस तकनीक के अमल की घोषणा बजट में की गई थी। ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के तहत दो हजार किलोमीटर के रेलवे नेटवर्क को कवच तकनीक के दायरे में लाया जाएगा। अब तक, दक्षिण मध्य रेलवे की चल रही परियोजनाओं में कवच को 1098 किमी से अधिक मार्ग और 65 इंजनों पर लगाया जा चुका। यह तकनीक दिल्ली-मुंबई और दिल्ली हावड़ा कॉरिडोर पर लागू करने की योजना है। इस रूट की लंबाई करीब 3000 किलोमीटर है।

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