मनोरंजन

कंजूस बूंदों में छिपा खजाना ..महसूस तो कीजिए

लगभग हर निगाह रह-रह कर आसमान तक जाने लगी है। मामला बरसात की प्रतीक्षा का जो ठहरा। लेकिन बारिश का प्रबंध तो है। बस यह है कि निगाह को आसमान से हटाकर स्क्रीन तक लाना होगा। चिपचिपाती गर्मी के बीच ‘पति-पत्नी’ फिल्म के एक गीत में आपको फुहारों की ठंडक देने की पूरी क्षमता मौजूद है। ‘कजरे बदरवा रे, मर्जी तेरी है क्या जालमा’ गाते हुए इठलाती और खुद ही से शर्माती नंदा यक़ीनन ‘मादक आमंत्रण’ का आग्रह रखने वालों को निराश करें, लेकिन उनकी वह मस्ती और शोखी बारिश जैसी शीतलता का अहसास दिलाने की पूरी क्षमता रखती हैं। यही तथ्य बिमल राय की ‘परख’ में ‘ओ सजना, बरखा बहार आयी’ वाली साधना के लिए भी बेशक स्थापित किया जा सकता है।

अंतरीन का वह अंतहीन सुख

 

बांग्ला फिल्म ‘अंतरीन’ में तो मृणाल सेन ग़ज़ब ही कर देते हैं। नायिका बरस न पा रहे बादल की तरह जज़्बात के बोझ तले जैसे घुटी जा रही है। फिर अचानक वह छत का दरवाजा खोलती है। बाहर गिर रहे पानी और नायिका की सूनी आंखों के बीच के उस अंतर को डिंपल कपाड़िया ने जिस तरह दर्शाया, वह अद्भुत है। नायिका ज़रा देर बरसात में खड़े रहने के बाद जब पलटकर देखती है तो उस कहीं सूखे-कहीं गीले शरीर के भीतर वाली आत्मा का सूखापन आपको झकझोरकर रख देता है। डिंपल की ठीक इस दृश्य वाली आँखों में उनकी अदाकारी और मृणाल दा के निर्देशन, दोनों की बरसाती फुहार वाली शीतलता का जो कॉम्पोनेन्ट मिक्सचर दिखता है, वह अविस्मरणीय रूप से रोमांचित करता है। यह वही मृणाल दा हैं, जो ‘जेनेसिस’ में नसीरुद्दीन शाह को किसी बच्चे की तरह बरसात में भीगने का आनंद लेते हुए दिखा रहे हैं। जब आप पहली बार ‘जेनेसिस’ को देखते हैं, तो यह दृश्य आपको फिल्म की कसावट के हिसाब से अनफिट लगता है। लेकिन  यही नसीर कुछ आगे के दृश्य में शबाना आज़मी की विवशता का लाभ उठाकर उससे संबंध बनाते हैं तो पता चलता है कि बारिश में नसीर के स्नान वाला वह दृश्य उनके भीतर शारीरिक इच्छाओं की निरंतर बढ़ती दहक की पूर्व सूचना दे रहा था। किसी विषय को समझाने के ऐसे प्रयोग विरले ही दिखते हैं।
अद्भुत मैसेज ‘ए पैसेज टु इंडिया’ का
बारिश के बेहद खूबसूरत प्रयोग की बात हो तो डेविड लीन के निर्देशन में बनी ‘ए पैसेज टु इंडिया’ की याद आ ही जाती है। फिल्म के अंतिम दृश्य में डॉ. अज़ीज़ अहमद (विक्टर बनर्जी) का खत पढ़ रही एडेला (ज्यूडी डेविस) के कमरे के बाहर बरसात हो रही है। एडेला खत में अपने लिए अज़ीज़ के प्रेम की नाकाम तलाश कर रही हैं। चिट्ठी पूरी हुई। खिड़की के बाहर से कैमरा ज्यूडी के चेहरे पर जाता है। खिड़की से टकराती फुहारों में आप नायिका के पिघलते दर्द को महसूस करते हैं और फ़िल्म ख़त्म हो जाती है। इस दृश्य में अजीज कश्मीर और एडेला इंग्लैंड में हैं। लेकिन दर्शक मारबार के उस पहाड़ पर पहुंच जाता है, जहां कभी एडेला ने अज़ीज़ के लिए अपने प्रेम का अनुभव किया था, मगर इस भाव को वह कभी भी प्रकट नहीं कर सकी। विद्वान लेखक उदयन वाजपेयी की कहानी ‘दूर देश की गंध’ के अंत में वह लिखते हैं, ‘ओह! क्या सचमुच पहाड़ों पर झरने बहने लगे थे?’ उस कहानी के इस झरने को ‘ए पैसेज टु इंडिया’ के अंत में मारबार के पहाड़ पर उस क्षण बहते महसूस हुए भावनाओं के झरने में सहज ही पाया जा सकता है।
यदि आप बच सकें ‘आज रपट जायें’ से…
यदि आप बरसात के खूबसूरत चित्रण की तलाश में ‘आज रपट जाएं तो हमें न उठइयो’ से बच सकें तो कभी ‘स्वामी’ फिल्म की उस सात्विक बारिश का लुत्फ़ जरूर लें। सौदामिनी के रूप में शबाना आज़मी ने बरसात से बचने और नायक के प्रेम में भीगने के बीच की जद्दोजहद को जिस तरह जिया है, वह आपके भीतर रोमांस की फुहारों का संचार करने की ताब रखता है। बरसात में सरापा भीगे दो जिस्मों के बीच आंख से लेकर होंठ तक के माध्यम से ‘आमंत्रण’ वाले दृश्यों से ज़रा दूर हटिए, आप पाएंगे कि ‘दहक’ फिल्म की बारिश में भीगी सोनाली बेंद्रे और अक्षय कुमार पूरी मासूमियत के साथ बरसात की बूंदों से सजे अपने प्रेम को जी रहे हैं। किस तरह ‘गाइड’ में रोजी को बरसात से बचा रहे राजू के दो हाथ प्रेम तथा समर्पण की डोर थामे नजर आ रहे हैं। यह और ऐसे दृश्य  आपको खींचकर वहाँ ले जाते हैं, जहां ‘श्री 420’ में राज कपूर और नरगिस छाते के नीचे परस्पर प्रेम का इजहार कर रहे हैं। क्या इसी छाते के एक हिस्से को फाड़कर बासु चटर्जी ने उसे ‘रजनीगंधा’ वाले अमोल पालेकर और विद्या सिन्हा के हवाले कर दिया था? उस छाते के फटे हिस्से से ही तो वह संबंध प्रवेश करता दिखता है, जो अंततः इन दोनों के बीच प्रेम के रूप में सामने आता है।
न तरबतर नायिका और न ही चिपके लिबास से झांकता शरीर।  इस तरह के दृश्य बेशक भीगने तथा भिगाने के लिहाज बारिश की बूंदों की कंजूसी में जकड़े हुए दिखते हैं। लेकिन  गौर से महसूस कीजिए तो इन दृश्यों या सीक्वेंस के भीतर भावनाओं के उफान का वह खजाना भरा पड़ा है, जो यकीनन कुबेर के हिस्से भी नहीं आया होगा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button