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वंश का दंश और मोदी

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स्वच्छ छवि वाले अफसर ने स्टाफ को चेतावनी देते हुए कहा कि दफ्तर में ‘रिश्वत लेना-देना अपराध है’ की पॉलिसी पर सख्ती से अमल किया जाए। इससे वहां आने वाले आम लोगों को यह उम्मीद बंध गयी कि अब उन्हें दफ्तर में घूसखोरी से मुक्ति मिल सकेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दफ्तर के घाघ स्टाफ ने लोगों को समझाया कि अफसर दरअसल यह कहना चाह रहे हैं कि ‘रिश्वत ले। ना देना अपराध है।’ इस तरह बेचारे अफसर की कोशिशों को बट्टा लगा दिया गया।

बिलकुल यही ठेठ सरकारी बाबू वाला खेल मध्यप्रदेश सरकार (Madhya Pradesh Government) के मंत्री ओमप्रकाश सखलेचा (Minister Omprakash Sakhlecha) ने किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) में परिवारवाद (familialism) के खिलाफ जो- कुछ भी बोला, शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) के सूक्ष्म और लघु उद्योग मंत्री सखलेचा ने अपनी समझ के हिसाब से उसकी सूक्ष्म व्याख्या कर मोदी की भावनाओं के वृहद अर्थ को जिस तरह लघु रूप में सिमटा दिया है, वह काफी मायनेखेज है।

सबसे पहले तो यही बात काफी रोचक है कि किसी राज्य का मंत्री देश के PM की किसी बात की व्याख्या कर रहा है। उस पर तुर्रा यह भी कि मामला व्याख्या कम, बल्कि विरोध का ज्यादा दिखता है। जरा सोचिए कि प्रधानमंत्री जिस परिवारवाद को लोकतंत्र (Democracy) के लिए सबसे बड़ा खतरा बता रहे हैं, सखलेचा मोदी के कथन में ही इस फितरत को बढ़ावा देने का मार्ग तलाश रहे हैं। मोदी ने तो संसदीय दल की बैठक में साफ कहा था कि विधानसभा चुनावों (assembly elections) में जिन सांसदों के परिवारजनों के टिकट कटे, उसके जिम्मेदार वह खुद (मोदी) हैं, क्योंकि अब BJP में पारिवारिक राजनीति होने नहीं दी जाएगी। लेकिन सखलेचा इस सब से आंख मूंदकर कह रहे हैं कि मोदी का आशय उस परिवारवाद के विरोध से है, जिसमें किसी परिवार के राजनीति में सक्रिय न रहने वाले सदस्यों को भी चुनाव का टिकट दिया जाए। इसके बाद सखलेचा ने गिन-गिनकर राज्य के कई भाजपा नेताओं के बेटे बेटियों का भाजपा के साथ सतत कदमताल का उदाहरण देते हुए एक तरह से यह सवाल उठा दिया कि उन्हें किसलिए टिकट नहीं दिया जाना चाहिए। ऐसे लोगों को भाजपा ने मोदी काल (Modi period) में टिकट तो दिए हैं लेकिन फिर वो किसी एक को ही मिला है। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में तो कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya) इसका बड़ा उदाहरण हैं।

यह बात और है कि सखलेचा के रूप में मोदी के मंतव्य के विरुद्ध उसी राज्य से आवाज उठी है, जहां स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पुत्र कार्तिकेय (Kartikeya) की राजनीतिक पारी को शुरू होने से पहले ही परिवारवाद पर पार्टी के रुख के चलते रोक कर रखा गया है। जहां प्रभात झा से लेकर दिवंगत नंदकुमार सिंह चौहान (Nandkumar Singh Chauhan) के परिजन भी इसी सिद्धांत के चलते सियासत की दहलीज पर आज भी ठिठके हुए खड़े हैं। लेकिन एक बात और है। हालांकि यह वहीं मध्यप्रदेश हैं जहां बेटे मुदित (Mudit) के फेर में सांची विधानसभा सीट (Sanchi assembly seat) पर भितरघात के आरोपों से घिरे डॉ. गौरीशंकर शेजवार (Dr. Gaurishankar Shejwar) के खिलाफ भी कोई नजीर पेश करने लायक कदम नहीं उठाया गया। लेकिन 2018 में बेटे को टिकट दिलाने के फेर में डा. शेजवार को खुद मैदान छोड़ना पड़ा। खुद सखलेचा यदि अपने दिवंगत पिता वीरेंद्र कुमार सखलेचा (Virendra Kumar Sakhlecha) के नाम से सियासी वैतरणी पार कर रहे हैं तो विक्रम वर्मा की पत्नी नीना वर्मा (Vikram Verma’s wife Neena Verma) तथा सुंदरलाल पटवा (Sunderlal Patwa) के भतीजे सुरेंद्र पटवा (Surendra Patwa) भी परिवारवाद की नौका में सवार होकर ही राजनीति में आगे बढ़े हैं।

इस लिहाज से सखलेचा के ‘सक्रिय’ राजनीति वाले पैमाने पर दीपक जोशी (Deepak Joshi), विश्वास सारंग या राजेन्द्र पांडे (Vishwas Sarang or Rajendra Pandey) कुछ रियायत के हकदार हैं, क्योंकि इन तीनों ने छात्र राजनीति के समय से ही अपनी अलग पहचान तथा जगह बनाई और किसी भी तरह वह पैराशूट नेता की श्रेणी में नहीं रखे जा सकते हैं। इन उदाहरणों में से कुछ के चलते यह कहा जा सकता है कि सखलेचा ने भाजपा में परिवारवाद के खिलाफ कसी गयी लंगोट के ढीले किये जाने का लाभ उठाते हुए ही अपनी बात पुरजोर तरीके से रख दी है। स्पष्ट है कि सखलेचा के पास अपनी बातों के पक्ष में अशोक रोहाणी (Ashok Rohani) और कल्पना बागरी (Kalpana Bagri) के उदाहरण भी तैयार होंगे।

जिस भाजपा ने पानी पी-पीकर कांग्रेस के वंशवाद की आलोचना की हो, उसके लिए इस रुख पर कायम रहना बहुत जरूरी है। भले ही फिर मध्यप्रदेश जैसे कई अपवाद क्यों न सामने आ जाएं और क्यों ही न यह याद करना पड़ जाए कि कांग्रेस (Congress) को कमजोर करने की BJP की नीयत में मदद देने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) ने हाल ही में अपने बेटे महाआर्यमान (mahaaryaman) के साथ प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) से भेंट की थी और इसके साथ ही यह चर्चा निर्बाध रूप से जोरों पर है कि महाआर्यमन पिता के साथ BJP में राजनीतिक रूप से पदार्पण कर सकते हैं। वंश के दंश से भाजपा भी अछूती नहीं रही है। इस तथ्य की रोशनी में राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सखलेचा के इस कथन से हलचल मचना स्वाभाविक है।

वैसे तो मोदी के सामने सखलेचा का कद बहुत छोटा है, लेकिन ऐसा तो उस तुच्छ धोबी का भी मामला था, जिसके एक कथन ने भगवान श्रीराम (Lord Shri Ram) को दांपत्य जीवन के सुख को त्यागने पर विवश कर दिया था। फिर बात तो उस पार्टी की हो रही है, जिसमें मोदी से लेकर कोई अदना-सा कार्यकर्ता भी स्वयं को श्रीराम का अनुयायी बताने में गर्व महसूस करता है। वंशवाद के विरुद्ध मोदी के आचरण को किसी मयार्दा पुरुषोत्तम से कम नहीं माना जा सकता। उनका परिवार आज भी प्रधानमंत्री पद की चकाचौंध या राजनीति की मलाई से बहुत दूर है। फिर भी मोदी के इस आदर्श को समूची भाजपा पर लागू कर पाना क्या संभव होगा? सखलेचा को देखकर तो लग रहा है कि इतनी बड़ी बात कहते-कहते उनकी सांस फूल गयी होगी, अब इसकी प्रतिक्रिया में पार्टी आलाकमान की सांस का आरोह-अवरोह किस रूप में सामने आएगा, राज्य में परिवार वाले कई भाजपा नेता सांस रोककर इसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।

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