प्रकाश भटनागर
भारतीय जनता पार्टी का अपना अनूठा प्रबंधन है। इसलिए हेमंत खंडेलवाल ‘थोपे गए प्रबंधक’ नहीं कहे जा सकते। यह उस दल का मामला है, जो ठोक-बजाकर निर्णय लेता है। और उसके पीछे इतने बारीक सूत्र छिपे रहते हैं, जिन्हें देखकर इस प्रबंधन शैली की दाद ही दी जा सकती है। खंडेलवाल के रूप में जो बदलाव भाजपा ने किया, वह एक सकारात्मक यथास्थितिवाद से मिलता-जुलता होने के बावजूद नयापन भी लिए हुए है।
इसे एक लाइन में समझिए। प्रदेश अध्यक्ष पद के रूप में भाजपा ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव वाली सरकार की संगठन के साथ कुशल जुगलबंदी का काम कर दिखाया है। यकीनन खंडेलवाल फैक्टर में कुछ और भी नाम लिए जा रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख और प्रभावी चेहरों में शामिल सुरेश सोनी का उल्लेख रह-रहकर हो रहा है। यह भी उल्लेखनीय है कि जो हुआ, उसके पीछे मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव की स्वीकृति का बड़ा योगदान रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक के तौर पर मुख्यमंत्री के साथ हेमंत खंडेलवाल की केमेस्ट्री ने इस ताजा निर्णय के समीकरण तैयार किए थे। हेमंत खंडेलवाल मितभाषी और लो प्रोफाइल तरीके से चुपचाप काम में यकीन करने वाले खांटी टाईप के भाजपाई हैं।
हेमंत खंडेलवाल अपनी कार्यशैली से बहुत कुछ नरेंद्र सिंह तोमर की याद दिलाएंगे। तोमर के लिए भी संगठन का अनुशासन और समन्वय महत्व रखता था तो खंडेलवाल की प्रवृत्ति भी बहुत कुछ ऐसी ही है। पार्टी का हर तरह का कार्यकर्ता सहजता से उनके सामने अपनी बात रख पाएगा। खंडेलवाल के पूर्ववर्ती वीडी शर्मा की कार्यशैली और आभामंडल अलग तरह का था। सबसे लंबे समय तक साढ़े पांच साल पार्टी के सफल अध्यक्ष के तौर पर उनके कार्यकाल को याद रखा जाएगा। वी डी शर्मा ने भी सत्ता और संगठन के संतुलित तालमेल का महत्व अपनी तरह से स्थापित कर दिखाया। साढ़े पांच साल के आसपास का कार्यकाल कहीं न कहीं भाजपा के उस अघोषित नियम की परिधि का अतिक्रमण करने लगा था, जहां किसी के स्थापित होने की प्रक्रिया उसके काबिज हो जाने जैसे हालात दिखाने लगते हैं। ये बात शर्मा के लिए आक्षेप के संदर्भ में नहीं कही जा सकती है। पार्टी की रणनीतिक परिस्थितियों में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी तय समय से ज्यादा का कार्यकाल पूरा कर चुके हंै। बात कहने का आशय केवल यह कि शर्मा के लंबे और सफल कार्यकाल के बाद उनकी और परिपक्व हुई सियासी क्षमताओं का पार्टी शायद राष्ट्रीय स्तर पर इस्तेमाल करना चाहेगी। कुछ वैसे ही, जैसा शिवराज को केंद्र में कृषि जैसा महत्वपूर्ण विभाग देकर किया गया।
यदि मोहन यादव और हेमंत खंडेलवाल को एक साथ रखकर देखें तो सियासी परिदृश्य का वह हिस्सा साफ दिखता है, जिसमें करीब डेढ़ साल वाले मुख्यमंत्री को आने वाले करीब साढ़े तीन साल के लिए मुफीद जुगलबंदी की सुविधा पार्टी नेतृत्व ने प्रदान कर दी है। यहीं वो प्रबंधन है, जो बताता है कि कैसे इस पार्टी ने इस निर्णय की महीन समीक्षा के रेशे-रेशे को जोड़कर साल 2028 तक के लिए पुख्ता होमवर्क करने की कोशिश की है। यादव भी लंबे समय के बदलाव के बाद मुख्यमंत्री बनाए गए और खंडेलवाल के मामले में भी ऐसा ही हुआ। अब वल्लभ भवन के पठार से लेकर दीनदयाल परिसर तक स्थित सियासी महासागर के कछार के बीच उस ट्यूनिंग का प्रबंध किया गया है, जो भाजपा के लिए उसकी सियासी संभावनाओं के वृंदगान को और आशा प्रदान कर सके। ऐसा सचमुच ही हो जाए तो कोई हैरत नहीं होगी। मुख्यमंत्री बनने के बाद से अब तक डा. मोहन यादव कई बार तालमेल के मामले में अपनी वह योग्यता सिद्ध कर चुके हैं, जो खंडेलवाल के सियासी अनुभव में भी साफ नजर आती है।