दिग्विजय सिंह के शासनकाल में मंत्री रहे राजा पटेरिया मुसीबत के साथ ढेर-सारी सुर्खियों में हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या का आह्वान करने के चलते उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गयी है। जैसा कि दस्तूर है, पटेरिया ने मीडिया पर अपने बयान को गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगाया है। उन्होंने सफाई दी है कि ‘हत्या’ से उनका आशय ‘मोदी को हराने’ वाली बात से था। पटेरिया ने यह बात पन्ना में पार्टी के लोगों के बीच कही और इसका वीडियो वायरल हो रहा है। उन्होंने कहा, ‘संविधान यदि बचाना है तो मोदी की हत्या करने के लिए तत्पर रहो, हत्या इन दि सेंस हराने का काम करो।’
थोड़ा पीछे लौटें। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मोदी को रावण कहा। पार्टी के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने उन्हें ‘नीच’ कहा और पाकिस्तान जाकर गुहार लगाई कि मोदी को सत्ता से हटाने के लिए पाकिस्तान ‘अपनी तरह’ से मदद करे। कांग्रेस में इस तरह की बात करने वालों की लंबी फेहरिस्त है। पूर्व में राहुल गांधी तो मोदी को ‘चोर’ कहने के चक्कर में इतने बुरे उलझे कि उन्हें इसके लिए अदालत में बिना शर्त माफी मांगना पड़ी।
दरअसल कांग्रेस मोदी को लेकर संयमित विरोध की बजाय आपा खोने वाली स्थिति में आ गयी है। उसके पास अपनी छोटी हो चुकी लकीर को बड़ा करने का फिलहाल कोई कार्यक्रम और सामर्थ्य नहीं दिख रहा। इसलिए तमाम नेता लकीर के फ़कीर बनकर एक-दूसरे की देखा-देखी अमर्यादित किस्म के बयान भी दे रहे हैं।यूं राजा पटेरिया अब इतने बड़े कद के नहीं रहे कि उनके लिए विशेष रूप से कुछ लिखा जाए, लेकिन यह बात प्रधानमंत्री के सम्मान से जुड़ी है। संभवतः आप पार्टीगत संस्कारहीनता के चलते मोदी का विरोध कर रहे हैं, लेकिन कम से कम यह तो सोचिए कि हत्या की कामना उस व्यक्ति के लिए की जा रही है, जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का निर्वाचित प्रधानमंत्री है। इसलिए नैतिकता का तकाजा है कि कांग्रेस को पटेरिया के विरूद्ध कार्यवाही कर यह संदेश देना चाहिए के अमर्यादित व्यवहार सहन नहीं किया जाएगा।
निःसंदेह राजनीति सहित प्रत्येक क्षेत्र में प्रतिद्वंदी की पराजय की बात कही जाती है। लेकिन मनोभाव जब हद दर्जे के कलुषित हो जाएं तो फिर आपके शब्दकोश में इसके लिए भी ‘हत्या’ जैसा शब्द स्थान और आकार, दोनों लेने लगता है। पटेरिया ने निश्चित ही यह भी कहा कि हत्या से उनका आशय हराने वाली बात से है, लेकिन यह सवाल तो रह ही जाता है न कि यही बात सीधे-सीधे कहने की बजाय ‘हत्या करने के लिए तत्पर रहो’ जैसे उन्मादी वाक्य के प्रयोग की आखिर क्या जरूरत आन पड़ी? पटेरिया इस मामले में यदि इतने ही पाक-साफ़ होते तो सफाई देने की बजाय अपने कहे पर बिना शर्त माफी मांग लेते। खैर, इससे यह तो हो ही गया कि लंबे समय से राजनीति की जाजम पर हाशिये में पड़े पटेरिया को इस बयान के जरिये सुर्खियां हासिल हो गयी हैं। दमोह से बाहर यह संदेश चला गया है कि ‘राजा भैया अभी चुके नहीं हैं।’ बाकी तो यह नेता अब इस हद तक ‘भूले-बिसरे गीत’ हो गए हैं कि लोग यह तक बिसरा चुके थे कि तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की सरकार में तकनीकी शिक्षा मंत्री रहते हुए पटेरिया पर एक निजी शिक्षण संस्थान को गलत लाभ देने के आरोप लगे थे। इसके चलते सरकार की खासी किरकिरी भी हुई थी।
कांग्रेस अब सरकार में नहीं है, इसलिए फिलवक्त पटेरिया अपनी पार्टी के संगठन की किरकिरी के सबब बन गए हैं। यह उम्मीद बेमानी लगती है कि इस नेता के चलते पार्टी के लिए कठिन हो रही इस स्थिति से कांग्रेस कोई सबक लेगी। फिर भी यह उम्मीद तो की ही जा सकती है कि समझदार कांग्रेसी इस घटना से यह समझ लें कि जुबान खोलने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि मुंह के भीतर से वैचारिक गंदगी वाली दुर्गन्ध तो नहीं आ रही। क्योंकि कानून के हाथों ऐसी गंदगी का इलाज अक्सर काफी कष्टकारी हो जाता है।भाव यदि सही है तो फिर उसमें हत्या के आह्वान जैसा तड़का क्यों लगाना चाहिए, शायद कांग्रेस और पटेरिया ही इसे ‘अपनी तरह’ से जस्टिफाई कर सकें।