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पसीने की जगह आंसू क्यों नहीं बहाते दिग्विजय ?

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निहितार्थ: दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) के पेट में मरोड़ उठ रही है। वह मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में नए मुख्यमंत्री (new chief minister) की तलाश में ट्विटर वाली चिड़िया के साथ ही फड़फड़ा रहे हैं। मामला रोचक है। बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना (Abdullah Deewana in Begani Shaadi) हो रहा है। भाजपा की सरकार (BJP government) । भाजपा का आंतरिक विषय। भाजपा का नेतृत्व। इस सबके बीच दिग्विजय कूद पड़े हैं एक नया शिगूफा लेकर। उन्हें प्रह्लाद पटेल (Prahlad Patel) और वीडी शर्मा (VD Sharma) में नयी संभावनाएं दिखने लगी हैं। तो सबसे पहले मैं एक वह बात दोहरा दूं, जिस पर कायम हूं। शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) को हटाए जाने की बात पूरी तरह हास्यास्पद है। आधारहीन है। ठीक उसी तरह, जिस तरह देश के राजनीतिक परिदृश्य पर बड़े हिस्से में कांग्रेस और मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह आधारहीन हो चुके हैं।

उम्र और अवस्था, दोनों के चलते दिग्विजय का राजनीतिक करियर अब लगभग आखिरी पड़ाव पर ठहर चुका है। कांग्रेस भले ही उन्हें किसी लायक मान लें, लेकिन एक जन-प्रतिनिधि के नाते प्रत्यक्ष चुनाव वाले मैदान से वह बाहर किये जा चुके हैं। इसलिए चर्चाओं में बने रहने की भूख उनसे इस तरह के अनर्गल प्रलाप करवा रही है। पटेल या शर्मा में दिग्विजय का कोई राजनीतिक शुभ-लाभ नहीं है। उनकी मंशा केवल ऐसे बयानों के जरिये, ‘हम अभी जिन्दा हैं’ वाला भ्रम कायम रखने की है। इस कथन को अन्यथा न लें। मैं उनके स्वस्थ्य और सुखी दीघार्यु जीवन की कामना करता हूं। किन्तु राजनीतिक रूप से वह अब पहले जितनी ताकत तथा क्षमता के साथ मैदान में बाकी नहीं रह गए हैं। तो फिर यही सहारा शेष रह जाता है कि कुछ भी कह और कुछ भी लिखकर खुद को चर्चाओं में कायम रखा जा सके।





दिग्विजय ने आज एक ट्वीट किया। लिखा, ‘अब मध्य मध्य प्रदेश भाजपा में मुख्यमंत्री के लिए केवल दो ही उम्मीदवार दौड़ में रह गए हैं। मोदी जी (Modi Ji) के उम्मीदवार पहलाद पटेल व संघ के उम्मीदवार वीडी शर्मा। बाकी उम्मीदवारों के प्रति मेरी सहानभूति है।’ किसी भी दलगत निष्ठा से परे होने के बावजूद मुझे यह लिखना पड़ रहा है ‘ प्रदेश में कांग्रेस (Congress) के ताबूत में आखिरी कील ठोंकने के लिए दो ही उम्मीदवार दौड़ में रह गए हैं। असफलताओं के प्रतीक कमलनाथ (Kamalnath)। कांग्रेस की दुर्दशा के जनक दिग्विजय सिंह। कांग्रेस के सभी शुभचिंतकों के प्रति सहानुभूति है।’ ऐसा लिखना किसी भी नजर से गलत नहीं हो सकता। कमलनाथ और दिग्विजय ने मिलकर प्रदेश में कांग्रेस की दुर्गति की है। इसके बावजूद दिग्विजय खुद को कांग्रेस का राष्ट्रीय नेता (national leader of congress) मानते हैं। यदि वाकई ऐसा है तो क्यों नहीं वह पराये घर में झांकने की बजाय अपने आशियाने की ढहती दीवारों की फिक्र कर रहे हैं? क्यों नहीं वह पंजाब में पंजे पर पड़ती दरारों की तरफ ध्यान दे पा रहे? कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt Amarinder Singh) और नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) की घमासान से यह तय है कि कांग्रेस इस राज्य में मुसीबत को गले लगा चुकी है। बड़ी बात नहीं कि रहे सहे में से अगले महीनों में एक राज्य और कम हो जाउ। तो किस वजह से सिंह यह साहस नहीं जुटा पा रहे कि सोनिया गांधी को पंजाब के जरिये पार्टी में होने जा रहे एक और ‘हृदयाघात’ के लिए समय रहते सचेत कर पाएं?

BJP का हिसाब एकदम साफ है। यदि किसी वजह से पार्टी नेतृत्व आज आदेश करे तो शिवराज एक क्षण का समय गंवाए बगैर इस्तीफा दे देंगे। उनकी जगह जो नाम तय होगा, पूरी पार्टी और विधायक दल पूरी ताकत के साथ उसके साथ आ खड़ा होगा। भाजपा के काम करने की जो शैली है, उसमें किसी बदलाव पर पार्टी में कोई लोचा नहीं है। लेकिन पंजाब में कांग्रेस (Congress in Punjab) अपने पारंपरिक चरित्र की एक बार फिर नुमाइश कर रही है। अमरिंदर की नाराजगी के बावजूद उनके धुर विरोधी सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष का पद दे दिया गया। अब अमरिंदर पार्टी नेतृत्व को आंख दिखा रहे हैं। सिद्धू इस मुख्यमंत्री पर नजरें और तेजी से तरेर रहे हैं। इस सबका सीधा-सीधा नुकसान Congress को उठाना ही होगा।

तो दिग्विजय को चाहिए कि मध्यप्रदेश में ‘सूत न कपास..’ श्रेणी की बचकाना बातें करना बंद कर पंजाब में चल रही ‘लट्ठमलठ’ से घायल हो रहे पंजे की फिक्र करें। क्योंकि पंजाब के हालात देखकर तो यही लग रहा है कि वहां कांग्रेस का समानांतर राष्ट्रीय नेतृत्व (Parallel National Leadership of Congress) संचालित किया जा रहा है। वहां सत्तारूढ़ कांग्रेस चुनावी तैयारी में विरोधी दलों की बजाय अपनों को ही ठिकाने लगाने की जुगत में भिड़ी हुई है। बेहतर होगा कि दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में कांग्रेस (Congress) की बंजर हो चुकी जमीन पर खोखले बयानों का हल चलाने की नादानी से तौबा कर लें। वह राज्य सरकार में बदलाव की किसी भी संभावना के न होने के बावजूद उस संबंध में नाहक पसीना न बहाएं। इसकी जगह वह अपनी पार्टी की दुर्दशा पर आंसू बहाएं तो ही ठीक होगा। शायद इससे उन्हें अपने किये के लिए प्रायश्चित का भी मौका मिल सके। संभव है कि ऐसा करके पूर्व मुख्यमंत्री अपनी पार्टी के लिए अपने गुनाहों का भार कुछ कम होता महसूस कर सकें।

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