निहितार्थ: कोई भी संगठन या समूह अपने बीच डरपोक लोगों को पसंद नहीं करता है। इसलिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Congress leader Rahul Gandhi) की डरपोकों (cowards) से पार्टी छोड़ देने वाली बात अजीब नहीं लगती। लेकिन बहादुरी को अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित करके भला कैसे काम चलाया जा सकता है? शहजाद पुनावला (Shahzad Punawala) ने हिम्मत दिखाई। राहुल गांधी की बतौर कांग्रेस अध्यक्ष क्षमताओं पर सवाल उठाये। इसके बाद कांग्रेस के स्तर पर उनकी दुर्गति कर दी गई। शरद पवार (Sharad Pawar), तारिक अनवर (Tariq Anwar) और दिवंगत पीए संगमा (Late PA Sangma) ने सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) की भारतीयता पर प्रश्न जड़े। इसके बाद का शेष राजनीतिक जीवन तीनों को नए राजनीतिक दल के आश्रमनुमा आश्रय में बिताना पड़ा। कपिल सिब्बल (Kapil Sibbal), गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) सहित दिग्गज कांग्रेसजनों के समूह ने पार्टी में आतंरिक लोकतंत्र (internal democracy) की बात कहने का साहस जुटा कर जैसे खुद ही कुल्हाड़ी पर पैर मार लिया था। वे सभी कांग्रेस के भीतर पुराने महत्व के लिहाज से ‘त्रिशंकु’ वाली स्थिति में आ गए हैं। इसलिए पार्टी के भीतर कोई यह हिम्मत भी नहीं दिखा पा रहा कि राहुल गांधी के अमेठी से पलायन कर वायनाड जाने के पीछे भाजपा का फियर फैक्टर (Fear Factor of BJP) काम कर रहा था, यह उन्हें बता सके। प्रियंका वाड्रा (Priyanka Vadra) ने भी सन 2019 में नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को वाराणसी (Varanasi) से चुनौती देने की बात कही थी। फिर जब इस भीष्म प्रतिज्ञा जैसी स्थिति की गंभीरता दिखी तो श्रीमती वाड्रा (Mrs. Vadra) ने तुरंत कह दिया कि यदि भाई (Rahul) इजाजत देंगे, तब ही वह मोदी के विरुद्ध उतरेंगी। पता नहीं कि भाई ने बहन को अनुमति दी या नहीं दी, लेकिन यह जरूर पता है कि वाराणसी के घमासान से लेकर नतीजे तक में कांग्रेस को तनिक-भी सम्मानजनक स्थान नहीं मिल सका था।
तो डर के ऐसे अपनी सुविधा वाले सिद्धांत के साथ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी किसी सरफरोशी की तमन्ना वाले मोर्चे के गठन जैसी तैयारी में मसरूफ दिख रहे हैं। उनका क्राइटेरिया तय है। जो कांग्रेस छोड़ रहा है, वह संघ (RSS) का है। जो संघ का शत्रु है, वह कांग्रेस का मित्र है। किन्तु जो संघ से डरता है, उसके लिए किसी वैकल्पिक उपाय की राहुल कोई व्याख्या नहीं कर सके। शायद ऐसा कोई उपाय उनके पास है ही नहीं। राहुल ने कल जो कुछ कहा, उसे तो शायद पूरी तरह उनके स्क्रिप्ट रायटर्स भी नहीं समझ पा रहे होंगे। या फिर स्क्रिप्ट रायटर (scriptwriter) ने जो लिखा उसे राहुल ने बिना सोचे समझे उवाच दिया। समझा पाना तो खैर बहुत दूर की बात है। राहुल का हिसाब दरअसल किसी फिक्स पैमाने में रखा ही नहीं जा सकता है। मरहूम नौशाद साहब (Late Naushad Sahab) के कथन पर एक लतीफा बहुत चला था। नौशाद साहब ने कहा था कि आजकल के संगीत का आलम यह है कि किसी होटल में वेटर के हाथ से प्लेट भी गिर पड़े तो दस-बीस लोग डांस करने के लिए खड़े हो जाते हैं। वैसे ही कांग्रेस की स्थिति है। यदि कोई रास्ता चलता भी ‘मोदी हाय-हाय’ के नारे लगा दे तो राहुल गांधी सहित तमाम कांग्रेसियों के बीच उसे अपना घोषित करने की होड़ लग जाती है। राहुल गांधी का अध्यक्षीय कार्यकाल याद कर लें। सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के समय को भी ध्यान से देखें। एक बात साफ दिखेगी। वह यह कि गांधी को संघ को डराने वाले नहीं, बल्कि ऐसे पार्टीजन चाहिए जो पार्टी में गांधी-नेहरू परिवार (Gandhi-Nehru family) से डर कर रहें। तमाम घटनाक्रम इस सोच को सही साबित करते आ रहे हैं और करते जाएंगे।
क्या यह संघ से डर कहा जाएगा कि एक भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी को पार्टी की तीस से ज्यादा चुनावी पराजयों के लिए जवाबदेह नहीं ठहरा पा रहा है? क्या ऐसा भी संघ की दहशत से हो रहा है कि पंजाब (Punjab) में एक अकेले नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के बागी तेवरों को थामने में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के पसीने छूट रहे हैं? पार्टी छोड़कर जाने वाले यदि संघ के लोग (बकौल राहुल) हैं तो फिर क्या वजह रही कि ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) को इन्हीं राहुल की सिफारिश और पसंद पर यूपीए सरकार (UPA Government) के समय केंद्र में मंत्री बनाया गया था। उनकी ही लिस्ट से उस समय के नाम जितिन प्रसाद (Jitin Prasad) को भी मंत्री पद दिया गया था? राहुल गांधी ने कई साल पहले राजनीति की तुलना मधुमक्खी के छत्ते से की थी। सचमुच यह राहुल की छत्रछाया से पहले वाले समय में शहद जैसी ताकत और औषधीय गुणों से भरी हुई थी। लेकिन अब एक परिवार की सियासी भूख मिटाने और सेहत कायम रखने के नाम पर उस छत्ते को निचोड़-निचोड़ कर खाली कर दिया गया है। और राहुल हर बाहर जाती शहद की बूंद को ‘संघ का’ बताकर यह पूरे सुकून से देख रहे हैं कि किस तरह उनके दल का सत्व सूखता जा रहा है। गांधी परिवार राहुल की अगुआई में पूरी तरह, ‘जितना खाया मीठा था, जो हाथ न आया खट्टा है’ वाला कांग्रेस के लिए घातक आचरण कर रहा है।