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इस तराजू के नीचे कहां की जमीन है मजबूत?

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निहितार्थ: देश का हिन्दू (Hindu) या कहे बहुसंख्यक समाज अजीब दोराहे पर है। वह राजनीति की तराजू (scales of politics) पर दो पलड़ों में कभी इधर तो कभी उधर खींचा जा रहा है। 2014 और 2019 के आम चुनाव के नतीजों के बाद देश का बहुसंख्यक समाज राजनीति के केन्द्र में हैं। अब राजनीति की ये तराजू पूरी तरह किसने थाम रखी है, यह कहना जरा मुश्किल है। फिलहाल इस पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) की पकड़ मजबूत हो गयी दिखती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने मेडिकल की पढ़ाई में ओबीसी वर्ग (OBC Category) को 27 फीसदी का आरक्षण दे दिया है। साथ में आर्थिक रूप से कमजोर यानी ईडब्ल्यूएस वर्ग (EWS Category) को भी इस आरक्षण का दस प्रतिशत लाभ मिलेगा। इस कदम से विपक्ष भौंचक्का रह गया है। कुछ कड़वा सच जरूर है, लेकिन खासकर कांग्रेस और जातिगत राजनीति करने वाले क्षेत्रीय दलों के लिए तो यह सांप सूंघ जाने जैसी स्थिति है। कई सारे राज्यों में ओबीसी आरक्षण (OBC reservation) को लेकर बवाल मचता रहा है। बीते कुछ समय से लगातार मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण न मिल पाने के लिए भी कांग्रेस, भाजपा को घेर रही थी। शिवराज सिंह सरकार (Shivraj Singh Government) कुछ सुरक्षित स्थिति में है। उसके पास यह दमदार तर्क मौजूद है कि हाई कोर्ट में 10 अगस्त को वह 27 प्रतिशत आरक्षण वाली बात पूरी तैयारी के साथ पेश करेगी। मोदी सरकार के इस फैसले के बाद भाजपा की नीयत पर शक करने का अब कोई मतलब नहीं रह जाएगा। मोदी सरकार के इस फैसले के पीछे जाहिर है उत्तरप्रदेश सहित कुछ और राज्यों में अगले साल होने वाले चुनाव भी एक बड़ा कारण है।

ये सिर्फ जातिगत राजनीति वाली बात नहीं है। इसके पीछे बहुत बड़ा राजनीतिक गणित काम कर रहा है। नब्बे के दशक के तुरंत बाद से एक बात साफ हो गयी। वह यह कि तुष्टिकरण की राजनीति के खिलाफ हिन्दू मतों का ध्रुवीकरण (polarization of Hindu votes) करना आसान है। यह ध्रुवीकरण कुछ यूं भाजपा के पक्ष में हुआ कि कांग्रेस (Congress) देश में अपना जनाधार आज भी खोती ही जा रही है। रही-सही कसर सपा, बसपा सहित एआईएमआईएम और आरजेडी जैसे क्षेत्रीय दलों सहित हर उस दल ने पूरी कर दी जो राज्यों में मतदाताओं के लिए भाजपा के विरोध में कांग्रेस का बेहतर विकल्प बन सके। कांग्रेस को अब मुस्लिम मत (Muslim Vote) केवल उन्हीं राज्यों में मिलते हैं जहां उसका सीधा मुकाबला भाजपा से है। नतीजा यह कि ये दल जिस भी राज्य में मजबूत हुए, वहां कांग्रेस की सियासी तबीयत और बिगड़ती चली गयी।

राम मंदिर के बाद भाजपा ने पूरा ध्यान हिन्दू मतों के विभाजन को रोकने पर लगाया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक का सामजिक समरसता अभियान दरअसल भाजपा की इन कोशिशों को और बल देने की ही कोशिश का हिस्सा है। अब मेडिकल में इस ओबीसी (OBC) और ईडब्ल्यूएस (EWS) आरक्षण को इस धारावाहिक की ताजा कड़ी माना जा सकता है। मोदी ने पूरी सावधानी बरती। क्रीमी लेयर को इस आरक्षण से दूर रखा। फिर यह सन्देश दे दिया कि भाजपा न सिर्फ ओबीसी आरक्षण की पक्षधर है, बल्कि वह इस दिशा में प्रतिबद्ध होकर काम कर रही है। भाजपा की यह कोशिश यदि उसकी सियासी मजबूती के लिए जरूरी है तो यही उसकी राजनीतिक मजबूरी भी है। यदि हिन्दू मतों का किसी भी सूरत में विभाजन हुआ तो उत्तरप्रदेश विधानसभा (Uttar Pradesh Assembly) के अलावा 2024 में भी उसके लिए हालात बीते दो आम चुनावों जितने आसान नहीं रह जाएंगे। इसलिए जब गुरूवार को अपने ट्वीट (Tweet) में मोदी ने इस आरक्षण को ‘सामाजिक न्याय का नया प्रतिमान’ कहा तो यह साफ था कि उनका आशय सामाजिक समरसता की तरफ था। उनका उद्देश्य हिन्दू मतों के एकीकरण वाला था।

इधर विपक्ष को भाजपा से ठीक उलट कदम उठाने पड़ रहे हैं। उसकी यह जरूरत बन गयी है कि वह हिन्दू मतों को विभाजित कर सके। बिना ऐसा करके भाजपा की उम्मीदों को कमजोर करना मुश्किल है। यह बदलाव और भी विचित्र रूप लेता जा रहा है। ‘तिलक, तराजू और तलवार…’ वाली मायावती (Mayavati) अब ब्राह्मण सम्मेलन (brahmin convention) करवा रही हैं। किसी समय गर्व के साथ स्वयं के लिए ‘मौलाना मुलायम’ (Maulana Mulayam) का विशेषण सुनने वाले मुलायम सिंह यादव की पार्टी भी ‘मुस्लिम-यादव’ की थ्योरी से अलग होकर हिन्दुओं के उच्च वर्ग को भी अपनी तरफ खींचने के प्रयास कर रही है। लेकिन कांग्रेस की स्थिति विचित्र है। ज्यों ही राहुल गांधी खुद को ब्राह्मण बताते हैं, त्यों ही पारसी समुदाय वाले फिरोज गांधी (Feroze Gandhi) से लेकर ‘मैं दुर्भाग्य से हिन्दू हूं’ वाले जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) का जिन्न फिर प्रकट हो जाता है। इधर प्रियंका वाड्रा (Priyanka Vadra) उत्तरप्रदेश के किसी मंदिर में पूजा करने बैठती हैं और उधर वायनाड में उनके गले में लटके क्रॉस की तस्वीरें उनके किये-कराये पर पानी फेरने लगती हैं। इस पार्टी की बहुत बड़ी समस्या यह कि उसकी ऐसी निकलती ‘बाल की खाल’ उससे हिन्दू मतदाताओं को भी बहुत बड़ी संख्या में नाराज कर चुकी है।

अब इस तबके से निहायत ही खांटी किस्म के लोग ही कांग्रेस से पहले की तरह जुड़े हुए हैं। स्पष्ट है कि हिन्दुओं में विभाजन के बीज बोकर ही कांग्रेस या विपक्ष अपनी राजनीतिक फसल के फिर लहलहाने की जुगत में लग गयी है। इस ‘विभाजन के बीज’ को किसी कुटिल नीति के रूप में न लें। इसका सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के तौर पर शब्दार्थ ग्रहण करें। नरेंद्र मोदी ने इस आरक्षण के जरिये जातिगत घमासान की गेंद अब विपक्ष के पाले में डाल दी है। देखें कि आगे का परिदृश्य किस तरह का होगा। फिलहाल कहीं भाजपा तो कहीं कांग्रेस के बीच हिन्दू समाज की विचित्र स्थिति है। उसके एक तरफ ‘.. वो तुझे मरने नहीं देगा’ और दूसरी तरफ, ‘..और हम तुझे जीने नहीं देंगे’ की हुंकारें गूंज रही हैं। इस तराजू के नीचे किस तरफ की जमीन मजबूत है, 2014 और 19 में तो यह साफ हो गया था। 2024 की भविष्यवाणी करने का अभी कोई मतलब नहीं है। उससे पहले उत्तरप्रदेश इस राजनीति की दिशा तय कर देगा।

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