अपने समय की सुपरहिट फिल्म ‘सौतन (sautan)’ में खलनायक का तकिया कलाम याद आ गया। इसमें एक चरित्र अपनी चतुराई का बखान करने के लिए बार-बार खुद के लिए कहता था कि वह शीशे से पत्थर को तोड़ता है। बीते रविवार को भोपाल (Bhopal) में भी सौतिया डाह वाले द्वन्द के बीच एक पत्थर और शीशा टकराये। इस टकराव के बीच इन दोनों में से कौन टूटा, इसकी पड़ताल करना रोचक होगा।
मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती (Former Chief Minister of Madhya Pradesh Uma Bharti) संन्यासी हैं। संन्यासियों का पिनक में रहना प्राय: गलत नहीं माना जाता। उमा भारती कई मर्तबा सनक को पिनक की परछाई के निकट ले जाने का काम पहले भी कर चुकी हैं। भारती ने भोपाल में शराब की दुकान (wine shop) में घुसकर शराब की बोतल पर र्इंट दे मारी । फिर वापस चली गयीं। सतही रूप से देखें तो यह उमा का शराब के लिए विरोध का प्रतीक था। लेकिन मामला इतना सीधा नहीं था। बल्कि वह इतना टेढ़ा रहा कि किस-किसने चोट पहुंचाई और किस-किस को चोट पहुंची, यह निर्जीव पत्थर तथा बोतल से बहुत अलग सजीव लोगों का मामला बन गया है।
उमा लंबे समय से भाजपा (BJP) से नाराज हैं। जाहिर है कई जगह पार्टी का नेतृत्व भी उनसे संतुष्ट नहीं है। अलग-अलग कारणों से उमा की नाराजगी के निशाने पर पार्टी के अलग-अलग नेता आये। उमा की इस फायरिंग रेंज (firing range) में शिवराज की एंट्री (shivraj’s entry) तब हो गयी, जब वर्ष 2005 में साक्षात उमा सहित उनकी नाराजगी को भी दरकिनार कर शिवराज को मुख्यमंत्री (CM) बना दिया गया था। तब से लेकर अब तक उमा शिवराज के ऊपर मिसफायर करने से अधिक और कुछ भी नहीं कर सकी हैं। यही वजह है कि साध्वी का शिवराज के लिए गुस्सा आचार्य रामचंद्र शुक्ल (Acharya Ramchandra Shukla) के एक निबंध की पहली पंक्ति ‘बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है’ तक का विस्तार पा चुका दिखता है। शराब की दुकान पर उमा के बहके हाथ उनके इसी भाव की पुष्टि करते हैं।
उमा भारती बीते साल से प्रदेश में शराबबंदी की मांग कर रही हैं। 2003 में जब वे आठ महीने मुख्यमंत्री रहीं थी, तब उन्होंने शराबबंदी के बारे में कभी बात नहीं की। अब जब उन्होंने इसकी शुरूआत की है तो इससे जुड़े कम से कम तीन मौकों पर उनके तेवर की शुरूआत और अंत में शराब से जुड़ा अजीब साम्य रहा। शराब के साथ सोडे के सेवन का चलन है। बोतल खुलते ही सोडा उफान भरता है और फिर जल्दी ही शांत हो जाता है। उमा के नशाबंदी वाले जिन्न की बोतल भी जब-जब खुली, तब-तब हश्र सोडे जैसा ही हुआ। पहले उन्होंने डंडे की दम पर शराब रोकने की बात कही। इसके लिए उन्होंने बीती 15 जनवरी की तारीख भी दी थी। यह दिन आकर चला गया, लेकिन शराब के खिलाफ एक भी डंडा चलना तो दूर, हिलता तक भी नहीं दिखा। इसके बाद भारती ने इस आंदोलन को 14 फरवरी से शुरू करने की बात कही। यह तारीख तो आयी, लेकिन उस तारीख पर उमा खुद भोपाल नहीं आईं।
अब हो सकता है कि इस विषय पर उमा का कोई नया बयान किसी नयी तारीख के साथ आ जाए। लेकिन उस खामोशी पर भी क्या कभी कोई नयापन आएगा, जिसकी दम पर शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) ने भाजपा में मौजूद अपने अन्य गुप्त या जाहिर शत्रुओं को भी कदम-कदम पर पटखनी दी है। सन 2005 की नवंबर के बाद उमा भारती की अयोध्या तक पैदल यात्रा को शिवराज की मुख्यमंत्री पद तक की यात्रा का प्रतिवाद माना गया। इसके बाद भारतीय जनशक्ति का गठन मध्यप्रदेश में अपने समर्थकों के साथ शिवराज की शक्ति कम करने के उमा के प्रयासों का ही एक हिस्सा था। लेकिन भाजपा की इस फायर ब्रांड नेत्री (Fire Brand Netri) को किसी भी रूप में सफलता नहीं मिल सकी। उलटे यह हुआ कि वह केंद्र से लेकर राज्य तक में तेजी से अपना आधार खोती चली गयीं। रविवार के पत्थर काण्ड को इन नाकामियों से उपजी हताशा का परिचायक कहा जा सकता है। यह घटना उमा की एक नई असफलता की भी परिचायक है।