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विचित्र संकट है कांग्रेस का…

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कांग्रेस का संकट (Congress’s crisis) बड़ा विचित्र किस्म का है। कांग्रेस के सामने चुनौती है किसका अस्तित्व बचाएं। पार्टी का या फिर नेतृत्व का। दोनों ही एक दूसरे को कहीं का नहीं छोड़ रहे हैं। गांधी परिवार (Gandhi family) से बाहर का कोई नेता कांग्रेसियों को अब ढूंढे नहीं मिलेगा, और गांधी परिवार अब, कांग्रेसी माने या न माने, पार्टी के लिए बौझ बनता जा रहा है। लेकिन नतीजा ढांक के तीन पात। बिना गांधी परिवार के कांग्रेस नहीं और बिना कांग्रेस फिर इस परिवार का भी अस्तित्व क्या होगा? तो कांग्रेस कार्यसमिति की इस बैठक का भी कोई नतीजा नहीं निकला। सोनिया (Sonia), प्रियंका (Priyanka), राहुल (Rahul) सबने इस्तीफे की पेशकश की। जाहिर है इसे मानने वाला कांग्रेस में भला कौन है। वरना क्या सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) दो दशक तक कांग्रेसाध्यक्ष बनी रह सकती थीं। या सितम्बर के बाद फिर सुपर फ्लाप राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से अध्यक्ष की कुर्सी संभालने का कांग्रेसी आग्रह कर रहे होते। तो कुल मिलाकर कांग्रेस की मुसीबतों का फिलहाल कोई अंत नजर नहीं आ रहा है।

पांच राज्यों में कांग्रेस की हार और चार में भाजपा (BJP) की जीत के बाद अब एक यह सवाल महत्वपूर्ण है कि क्या आने वाले आम चुनाव से पहले भाजपा की हिट-लिस्ट में कांग्रेस सबसे ऊपर से सरक कर बहुत नीचे की पायदान पर जा चुकी होगी? क्या देश पर सर्वाधिक लंबे समय तक शासन करने वाले इस दल के मुकाबले भाजपा को वह पार्टियां बड़ी चुनौती लगने लगेंगी, जिनके बीच कांग्रेस बीते कुछ समय में, पहले अपने नेतृत्व और अब स्वीकार्यता को लेकर संघर्ष से जूझ रही है?

निश्चित ही 2024 से पहले विधानसभा के चुनाव तो अभी कई राज्यों में होने हैं। तो फिर ऐसा सवाल आम चुनाव (General election) को लेकर ही क्यों? कांग्रेस की शक्ति के क्षरण में और अधिक गिरावट की पुष्टि भी विधानसभा चुनाव (Assembly elections) के नतीजों से ही हुई है। इसलिए दुश्मन सहित दोस्त के रूप में कांग्रेस की स्वीकार्यता को लेकर लोकसभा के घमासान का ही इंतजार किसलिए किया जाए? इसका जवाब है। आगे विधानसभा चुनाव वाले राज्यों गुजरात (Gujrat), हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh), कर्नाटक (Karnataka), मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh), राजस्थान (Rajasthan) और छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में भाजपा और कांग्रेस की ही आमने सामने की लड़ाई होना है। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तो कांग्रेस अभी सत्ता में है। मध्यप्रदेश, गुजरात,हिमाल प्रदेश तथा कर्नाटक में वह प्रमुख विपक्षी दल (Main opposition party) है। इनमें से जनता दल-एस के असर वाले कर्नाटक छोड़कर शेष किसी भी प्रदेश में भाजपा तथा कांग्रेस के बीच कोई अभी कोई तीसरी शक्ति का खास असर नहीं है। ये असर कम से कम वैसा तो बिलकुल ही नहीं, जैसा समाजवादी पार्टी (SP) का उत्तरप्रदेश (UP), तृणमूल कांग्रेस (TMC) का पश्चिम बंगाल West Bengal() और जनता दल यूनाइटेड (JDU) तथा राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का बिहार (Bihar) में है। इसलिए आगे के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की प्रभावी उपस्थिति को लेकर फिलहाल तो बहुत अधिक संशय नहीं किया जा सकता है।

यह ‘फिलहाल’ ही वह धुरी है, जिस पर आगामी आम चुनाव में कांग्रेस की दशा और दिशा टिकी हुई है। यदि कांग्रेस को इन चुनावों में भी फूलों के हार की बजाय केवल हार से ही संतोष करना पड़ा तो उसके लिए संसद में मेज (सदस्य संख्या) और जनता के बीच इमेज, दोनों ही सूरत में नकारात्मक असर होगा। भाजपा-विरोधी विपक्ष के खेमे में कांग्रेस की स्थिति यूं ही पिछलग्गू वाली हो चुकी है। पांच प्रदेशों में मिले निराशाजनक जनादेश के बाद यह खेमा कम से कम राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा की असर वाली कांग्रेस के बुरे असर से खुद को बचाकर ही रखना चाहेगा। तिस पर यदि भाजपा के शार्प शूटर्स (sharp shooters) का निशाना कांग्रेस से हटकर अन्य दलों की तरफ तन गया तो फिर इस पार्टी को यह मान लेना होगा कि वह देश के राजनीतिक फलक पर अब सालों पीछे जा चुकी है। यह वह गिरावट होगी, जिससे उबरना आसान नहीं होगा।

खासतौर से तब, जब मामला उस कांग्रेस का है, जिसके संगठन के पौष्टिक सत्व को ‘एक परिवार और हजार चाटूकार’ वाला तत्व सोखते हुए तेजी से खत्म कर रहा है। ये हजारों लोगों की वह भीड़ है, जो G-23 जैसे पार्टी नेतृत्व पर आवाज उठाने वाले समूह को कुचलने के अपने कौशल का पूर्व में भी समय-समय पर परिचय दे चुकी है। इसलिए जब यह कहा जा रहा था कि रविवार को होने वाली कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सोनिया गांधी सहित उनके दोनों अनमोल रतन, राहुल तथा प्रियंका इस्तीफा दे देंगे, तब ही यह साफ था कि मामला केवल खानापूर्ति तक सिमट जाएगा। इस्तीफे की बात कहकर केवल यह ताड़ने की कोशिश होगी कि परिवार के समर्थन में आज भी पार्टी में कितने लोग हैं। इसी आधार पर ‘भीड़’ के आगामी शिकारों की लिस्ट में कुछ नए नाम जोड़ने या कुछ को हटाने का काम किया जाएगा। ऐसे हालात के चलते यही संभावना शेष रह जाती है कि कांग्रेस दो हिस्सों- जी वन (जी हुजूर नंबर वन) और G-23 में बदल जाए। जनाधार के मामले इन सबका हाल एक जैसा ही है। बाकी तो और कोई उम्मीद दिखती नहीं है।

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