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कमलनाथ को लेकर यह शिगूफेबाजी

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निहितार्थ: वैसे तो आज वाली कांग्रेस (Congress) में कुछ भी हो सकता है। यदि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को एक बार फिर पार्टी की कमान सौंपने की मांग उठ सकती है, तो फिर तय है कि यह पार्टी किसी भी अनहोनी के लिए खुद को तैयार कर चुकी है। लेकिन कमलनाथ (Kamalnath) को कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष (working president of congress) बनाये जाने की संभावना मेरे गले के नीचे तो नहीं उतर पा रही है। गांधी-नेहरू परिवार (Gandhi-Nehru family) के किसी सदस्य का मामला होता तो यह माना जा सकता था कि सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) गांधारी बनकर परिवार मोह में हामी भर दें, किन्तु कमलनाथ इस श्रेणी में कहीं भी फिट नहीं बैठते हैं। टॉप लेवल पर कांग्रेस में मानसिक दिवालियेपन (Mental bankruptcy in Congress) के चलते इस पार्टी की कीर्ति चहुं ओर व्याप्त है, मगर अभी इस स्थिति का इतना भी पतन नहीं हुआ है कि गांधी परिवार कमलनाथ को पार्टी की कमान सौंप दें। आखिर कमलनाथ, मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) तो हो नहीं सकते हैं।

पंजाब का चुनाव सिर पर है। उन गिनती के राज्यों में शामिल जहां कांग्रेस की सरकार है। वही राज्य जहां पांच साल पहले कमलनाथ को महासचिव के तौर पर प्रभार सौंपा गया था। याद करें, तब इस निर्णय की स्याही सूखी भी नहीं थी कि सिखों के जख्म हरे (The wounds of the Sikhs are green) हो गए। 1984 के सिख-विरोधी दंगों (1984 anti-Sikh riots) में नाथ की भूमिका को लेकर ऐसा हल्ला मचा कि पार्टी को तत्काल अपना यह फैसला वापस लेना पड़ा था। तो क्या ये संभव है कि इसी पंजाब के चुनाव से ठीक पहले इन्हीं कमलनाथ को कार्यकारी अध्यक्ष जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप दी जाए? ये सिर्फ शिगूफेबाजी ही हो सकती है, और कुछ नहीं। अब हरीश रावत (Harish Rawat), नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) और केप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) के ताजा मामले में कांग्रेस आलाकमान की हास्यास्पद स्थिति देख लें। रावत ने पहले कहा कि सिद्धू पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष (Sidhu Punjab Congress President) होंगे और अमरिन्दर सिंह के सोनिया के समक्ष विरोध जताने के बाद पलट कर रावत को कहना पड़ा, मैंने तो ऐसा नहीं कहा था।





वैसे भी कमलनाथ ने तो सोनिया से मिलने के बाद साफ कहा कि वह मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) नहीं छोड़ेंगे। यह वाक्य उनकी दिल्ली में मजबूत स्थिति की तरफ कहीं से भी संकेत नहीं करता है। और केंद्रीय स्तर पर मजबूत तो वह बीते लंबे समय से दिख भी नहीं रहे हैं। सन 2014 में नेता प्रतिपक्ष के लिए तमाम नाम चले। सबसे सीनियर सांसद के तौर पर कमलनाथ ने प्रोटेम स्पीकर (Protem Speaker) के तौर पर सदस्यों को शपथ दिलाई। लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता (Leader of Congress Parliamentary Party in Lok Sabha) के तौर पर दबी जुबान से नाथ का नाम भी लिया गया, लेकिन सोनिया गांधी ने मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) का चयन किया। डॉ. मनमोहन सिंह के PM बनने के समय इस पद के लिए जिन नामों की बात चल रही थी, Kamalnath तो उनमें कहीं भी नहीं थे। अहमद पटेल के निधन के बाद सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार (Political Advisor to Sonia Gandhi) की जगह खाली हुई। तब यह कहा जा रहा था कि कमलनाथ अब पटेल की जगह लेंगे। ऐसा भी नहीं हुआ। तो जाहिर है कि कमलनाथ का गांधी परिवार में प्रभाव अब उस तस्वीर तक ही सिमट कर रह गया है, जिसमें वह अपने जबरदस्त असर वाले दौर में संजय गांधी (Sanjay Gandhi) के साथ नजर आते हैं।

आप बेशक यह कह सकते हैं कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर कमननाथ ने गांधी परिवार में अपनी पैठ साबित की थी। किन्तु वह फैसला किसी मजबूरी का ही प्रतीक था। यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) मुख्यमंत्री बनाये जाते तो पार्टी में राहुल गांधी की उम्र वाले लोगों में सिंधिया का कद और बढ़ जाता। यह आने वाले समय में राहुल के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती थी। इसी आशंका के चलते राजस्थान में सचिन पायलट (Sachin Pilot in Rajasthan) को भी यह मौका नहीं दिया गया। यह तय है कि नाथ को कांग्रेस बड़ी गतिविधियों तथा फैसलों में अहमियत देना जारी रखेगी, लेकिन नेतृत्व उन्हें अपने बराबर में लाने का जोखिम और इच्छा, दोनों ही नहीं रख सकता है।

यूं भी देखा जाए तो नाथ का संगठनात्मक अनुभव बहुत कमजोर है। मध्यप्रदेश कांग्रेस (Madhya Pradesh Congress) के अध्यक्ष रहते हुए वह अब तक कोई बड़ा करिश्मा नहीं कर सके हैं। पार्टी की राज्य इकाई शिथिल ही पड़ी हुई है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के तौर पर नाथ सरकार को पूरी ताकत से एक बार भी नहीं घेर सके। CM रहते हुए भी वह अपने मंत्रियों के बीच की सिर-फुट्टोवल पर कभी भी अंकुश नहीं लगा पाए थे। जब मध्यप्रदेश में कई दशकों की राजनीति के बावजूद कमलनाथ छिंदवाड़ा से ही बाहर नहीं निकल सके, तो यह कैसे सोचा जा सकता है कि वह देश के स्तर पर कांग्रेस के लिए किसी बड़ी जिम्मेदारी में सबको साथ लेकर चल सकेंगे? केन्द्र सरकार में मंत्री और संगठन में जनरल सेक्रेट्री का कांग्रेस में कोई ज्यादा महत्व तब तक नहीं हैं, जब तक गांधी परिवार नहीं चाहे।

दिल्ली में गुरुवार को बंद कमरे में सोनिया और प्रियंका वाड्रा (Sonia and Priyanka Vadra) की कमलनाथ से क्या चर्चा हुई, इसका सच ये तीनों ही जानते हैं। लेकिन यह कल्पना हास्यास्पद लगती है कि इसमें नाथ की शीर्ष स्तर पर ताजपोशी का मन बनाया गया हो। बातचीत के लिए तो विषय अभी और भी हैं। पार्टी नेतृत्व कमलनाथ से मध्यप्रदेश यूनिट की दुर्दशा पर भी सफाई ले सकता है। राज्य में सरकार गिरने में अहम भूमिका निभाने वाले दिग्विजय सिंह के लिए अब भी कायम कमलनाथ की डिमांड पर पार्टी को उनका रिमांड ले सकती है। वैसे जिस तरह कमलनाथ मध्यप्रदेश कांग्रेस पर हावी हैं, उसमें तो ऐसी संभावनाएं भी नहीं लगती। तो इन सारी जरूरी प्रक्रियाओं को पीछे धकेलकर या भूलकर गांधी परिवार कमलनाथ को अपना नेतृत्व सौंपने की भूल करेगा, कम से कम मुझे तो इस बात का जरा भी यकीन नहीं है। वैसे भी कमलापति त्रिपाठी कांग्रेस के आखिरी कार्यकारी अध्यक्ष (Kamalapati Tripathi is the last working president of Congress) थे। बाकी तो सोनिया गांधी दो दशक से ज्यादा इस पद पर रिकार्ड बना ही रहीं हैं। तो कोई क्या कर लेगा।

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