निहितार्थ

तमाशाई बन जाएंगे खुद तमाशा !

भाजपा-विरोधी गठबंधन के लिए यह चुनौती बढ़ गयी है कि वह अपने अधिसंख्य दलों को एनसीपी जैसे हालात में पहुंचने से किस तरह रोक सकेंगे। जिन दलों के उदाहरण दिए गए हैं, उनकी तो परिपाटी में ही परिवारवाद हावी है। तो घड़ी वाली एनसीपी के गजर के इस शोर को सुनकर क्या ये दल उसमें छिपे संकट की आहट को सुन सकेंगे?

विषय अलग-अलग हैं, लेकिन उनमें गजब का साम्य है। फ़िल्मी गीत ‘गजर ने किया है इशारा…’ काफी लोकप्रिय रहा। गजर यानी घड़ी का वह हिस्सा, जो आवाज के साथ एक-एक पहर के बीतने की सूचना देता है। इस गीत की अगली पंक्ति है, ‘घड़ी भर का है खेल सारा।’ तो अब साम्य यह कि घड़ी चुनाव चिन्ह वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में बगावत के पहर-पहर की सूचना देता गजर भी केंद्र में भाजपा-विरोधी गठबंधन के लिए बड़ी चेतावनी का संकेत बन गया है।

इस दल में जो कुछ हुआ, उसके मूल में शरद पवार का सांसद बेटी सुप्रिया सुले के लिए परिवारवाद की धारा में बह जाना प्रमुख कारण है। तभी तो यह हो गया कि एनसीपी में सुले के साथ ही कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए प्रफुल्ल पटेल ने भी अपने सियासी आका शरद पवार के साथ खड़े रहने की बजाय बगावती खेमे के साथ जाना मुनासिब समझा। क्योंकि कहीं न कहीं यह संदेश प्रसारित हो गया था कि अंततः घुटना पेट की तरफ ही मुड़ेगा और पिता का पुत्री के लिए मोह पार्टी में भविष्य के लिए पटेल की संभावनाओं को कमजोर करता रहेगा। ठीक वैसे ही, जैसा कांग्रेस में हुआ। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने प्रियंका वाड्रा सहित ज्योतिरादित्य सिंधिया को राष्ट्रीय महासचिव बनाकर उन्हें उत्तरप्रदेश की जिम्मेदारी सौंप दी। सिंधिया पार्टी के विश्वास की लाज रखने के लिए उत्तरप्रदेश में इस तल्लीनता से जुट गए कि खुद गुना संसदीय सीट से चुनाव हार गए। इधर, प्रियंका की सक्रियता से केवल यह अंतर आया कि उनके भाई राहुल गांधी अपने परिवार की परंपरागत सीट अमेठी से चुनाव हार गए। बावजूद इसके श्रीमती वाड्रा की पार्टी में पूछ-परख कायम रही और सिंधिया को वह सब झेलना पड़ गया, जो अंततः उनके कांग्रेस छोड़ने की वजह बन गया।

तो घड़ी वाली पार्टी का गजर यही कह रहा है कि भाजपा के खिलाफ तैयार किए गए गठबंधन वाले अधिकांश दलों को महाराष्ट्र जैसे हालात का सामना करने के लिए आगे पीछे तैयार रहना चाहिए। क्योंकि गठबंधन में शामिल आम आदमी पार्टी, वामपंथी दल और जनता दल यूनाइटेड को छोड़कर शेष सभी पार्टियां एनसीपी की ही तरह परिवारवाद के दलदल में धंसी हुई हैं। और उनका मुकाबला उस भाजपा से है, जो बाय एंड लार्ज अब तक इस वाद की मवाद से स्वयं को बचाए हुए है।

कांग्रेस में सोनिया गांधी से लेकर राहुल और प्रियंका के कद के आगे मल्लिकार्जुन खड़गे का अध्यक्ष पद क्या हैसियत रखता है, यह किसी से छिपा नहीं है। तृणमूल कांग्रेस वाली ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक, राष्ट्रीय जनता दल में लालू यादव और बेटे तेजस्वी, द्रमुक में स्टालिन और बहन कनिमोझी, शिवसेना (यूबीटी) में उद्धव ठाकरे और पुत्र आदित्य, नेशनल कांफ्रेंस में फारूक अब्दुल्ला और बेटे उमर और पीडीपी में दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद और बेटी महबूबा वाले हालात साफ़ बताते हैं कि इस गठबंधन की जाजम के दोनों छोर पर कहीं शरद पवार तो कहीं सुप्रिया सुले प्रतीकात्मक रूप से काबिज हैं।

समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव का नाम भी इस गठबंधन के दिग्गजों के रूप में लिया जा रहा है। तो यह याद किया जा सकता है कि कैसे इस दल में परिवारवाद अंततः यादवी संघर्ष में बदल गया और इसके चलते बगावत वाले हालात के बीच यह पार्टी बीते लगातार दो विधानसभा चुनावों में अपने सर्वाधिक प्रभाव वाले उत्तरप्रदेश में लगातार हार गयी है।

ऐसे में भाजपा-विरोधी गठबंधन के लिए यह चुनौती बढ़ गयी है कि वह अपने अधिसंख्य दलों को एनसीपी जैसे हालात में पहुंचने से किस तरह रोक सकेंगे। जिन दलों के उदाहरण दिए गए हैं, उनकी तो परिपाटी में ही परिवारवाद हावी है। तो घड़ी वाली एनसीपी के गजर के इस शोर को सुनकर क्या ये दल उसमें छिपे संकट की आहट को सुन सकेंगे? यदि नहीं सुनें तो फिर ऊपर बताए गए गीत की आगे की पंक्ति ही सुन लें। वह कहती है. ‘तमाशाई बन जाएंगे खुद तमाशा, बदल जाएगा खेल सारा। ‘ अब इसके आगे और कुछ लिखने की गुंजाइश है क्या?

प्रकाश भटनागर

मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में प्रकाश भटनागर का नाम खासा जाना पहचाना है। करीब तीन दशक प्रिंट मीडिया में गुजारने के बाद इस समय वे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश में प्रसारित अनादि टीवी में एडिटर इन चीफ के तौर पर काम कर रहे हैं। इससे पहले वे दैनिक देशबंधु, रायपुर, भोपाल, दैनिक भास्कर भोपाल, दैनिक जागरण, भोपाल सहित कई अन्य अखबारों में काम कर चुके हैं। एलएनसीटी समूह के अखबार एलएन स्टार में भी संपादक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। प्रकाश भटनागर को उनकी तल्ख राजनीतिक टिप्पणियों के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है।

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