समय है कि इस सबमें राजनीतिक निहितार्थ तलाशने की बजाय हम इसके अभ्यस्त हो जाएं। यदि मुख्यमंत्री निवास में एक पीड़ित आदिवासी के पांव पखारते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को देखकर आपको इसमें राजनीति की गंध आती है या फिर आप हैरत से भर जाते हैं, तो फिर ये दोनों ही भाव इस बात के सूचक हैं कि आप अतीत को जल्दी ही बिसरा देते हैं। वरना वर्ष 2015 को बीते अभी इतना लंबा अरसा नहीं हुआ है कि हम यह याद न रख पाएं कि किस तरह शिवराज ने वहां पहुंचकर उस भीड़ के बीच चर्चा की थी, जो मरने-मारने पर आमादा थी। आवासीय कॉलोनी में जिलेटिन छड़ों में हुए धमाके में 70 से अधिक लोग मारे गए थे। मुख्य आरोपी भाजपा का नेता था। अपनों को खोने वालों के सिर पर खून सवार था। ऐसे ही लोगों के बीच सड़क किनारे बैठकर शिवराज ने उनकी पीड़ा सुनी। गुस्सा झेला। फिर सबको शांत करने में भी वह सफल रहे थे। फिर मंदसौर में पुलिस के गोलीचालन का मामला तो केवल पांच साल पुराना है। तब भी यह शिवराज ही थे, जो एक-एक मृतक किसान के घर गए। उनके आक्रोश को सिर-माथे पर लिया। अपनी बात रखी और यह संदेश देने में वह सफल रहे कि सरकार पीड़ित परिवारों के साथ है।
जिसने यह सब देखा है, महसूस किया है, वह इस बात को भी मानेगा कि सीधी के पीड़ित आदिवासी के मुख्यमंत्री निवास में आज हुए सम्मान में शिवराज के स्तर पर न राजनीति है और न ही कोई नयापन। निश्चित ही यह चुनावी साल का मामला है। यदि कोई रसूखदार भाजपा नेता किसी आदिवासी के मुंह पर पेशाब करे तो विपक्ष के लिए यह सुनहरा मौका है। तभी तो यह हो रहा है कि कांग्रेस ने इसे राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बना दिया है। स्वाभाविक रूप से इस पर डैमेज कंट्रोल शिवराज के लिए बहुत आवश्यक हो जाता है, लेकिन इसमें खालिस सियासत की तलाश न कीजिए। राजनीति में हैं तो राजनीति तो करना ही होगी। ऐसा करने के और भी तरीके हैं। शिवराज चाहते तो आरोपी भाजपा नेता प्रवेश शुक्ला की गिरफ्तारी तक ही रुक सकते थे। पीड़ित को कुछ मुआवजा देने की घोषणा कर वाहवाही लूट सकते थे। लेकिन उन्होंने आरोपी के खिलाफ बगैर समय गंवाए एनएसए की कार्रवाई सुनिश्चित कराई। आरोपी को जिन भाजपा विधायक केदार शुक्ला का नजदीकी और रिश्तेदार बताया जा रहा है, शिवराज ने उन विधायक से भी इस पर सफाई माँगी।
अन्य असामाजिक तत्वों के मामले की तरह ही आरोपी का अवैध निर्माण ध्वस्त कराया। अब तो यह भी कहा जा रहा है कि मामले को कथित रूप से दबाने के दोषी कलेक्टर और एसपी भी कार्रवाई की चपेट में आने जा रहे हैं। शिवराज के लिए यह भी बहुत आसान था कि वह ‘मामले में कानून अपना काम करेगा’ वाली बात कह कर रह जाते। मगर उन्होंने इस सबसे परे आरोपी पर सख्ती और पीड़ित के जख्मों पर मलहम लगाने के जो उदाहरण पेश किए, वह बताते है कि सियासी रंग में रंग दी जा रही इस घटना को शिवराज अपने मूल चरित्र के अनुसार मानवीय स्वरूप से ‘टैकल’ करने में यकीन रख रहे हैं। इस मामले में भी शिवराज ने अपनी राजनीतिक शक्ति की बजाय मानवीय कर्तव्यों को जो तवज्जो दी है, वह यकीनन सराहनीय है।