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कथन दिग्विजय और नाथ के  

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यह सब देख और सुनकर मेरे दिमाग में कल्पना आ रही है। वह यह कि भाजपा के हिंदुत्व से जुड़ा थिंक टैंक (Hindutva think tank of BJP) जब भी बैठक करता होगा, उस समय वहां दो कुर्सियां यथोचित सम्मान के साथ खाली रखी जाती होंगी। एक राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और दूसरी दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) के लिए। क्योंकि कांग्रेस (Congress) के इन दोनों चेहरों ने सदैव ही अपने कहे और किये से भाजपा के हिंदुत्व को और मजबूती प्रदान करने का ही काम किया है।
दिग्विजय सिंह का ताजा बयान ही देख लीजिए। उन्होंने कहा कि BJPके लोग ही गरीब मुस्लिम युवकों (Muslim youths) को पैसे देकर पत्थरबाजी के लिए उकसाते हैं। है न कमाल का कथन! क्योंकि ऐसा कहकर दिग्विजय ने कम से कम कांग्रेस की तरफ से यह स्वीकार कर लिया कि देश में हिन्दुओं के धार्मिक आयोजन (Hindu religious events) पर बीते दिनों हुई पत्थरबाजी में मुस्लिमों का ही हाथ था। अब गरीबी हो या मजबूरी, सिंह के कहे से एक कौम तो पत्थरबाजी के आरोपियों की श्रेणी में ला दी गयी है। जिस बात को कहने में भाजपा के बड़े नेता (top BJP leaders) कुछ बचकर शब्दों का चयन करते रहे हैं, दिग्विजय ने उसी बात को इस तरह कह दिया कि पत्थर चलाने वालों के लिए बचने की कोई गुंजाइश ही नहीं रह गयी है। अब कांग्रेस की मुश्किल यह कि वह इस बयान का न तो समर्थन करने की स्थिति में है और न ही इसके विरोध में जा सकती है। इसलिए यही दिखता है कि दिग्विजय के कहे को उनकी निजी राय बताकर पल्ला झाड़ लिया जाए।

बचकर तो खैर दिग्विजय भी चले हैं। इसीलिए उन्होंने कहा कि पत्थरबाजी की फंडिंग (funding) को लेकर यह उनका आरोप नहीं है। वह कई लोगों से मिली शिकायतों के आधार पर यह बात कह रहे हैं। यही वजह दिखती है कि सिंह ने यह बात भी साफ कर दी कि इस कहे के समर्थन में उनके पास कोई तथ्य या सबूत नहीं है। बात भी कह दी और बात का वजन भी नहीं रखा वाली यह दिग्विजयी शैली काफी रोचक है। दिग्विजय चतुर राजनीतिज्ञ हैं और आचार्य चतुरसेन (Acharya Chatursen) की एक कहानी का शीर्षक ‘ दुखवा मैं कासे कहूं मोरी सजनी’ है। कई ऐसे लोग, अपनी सजनी के प्रतीक रूप में दिग्विजय का चयन करते हैं। ठीक वैसे ही, जैसे पत्थरबाजी को लेकर सिंह से दुखड़ा साझा किया गया और ठीक उसी तरह जैसे बकौल सिंह हेमंत करकरे (Hemant Karkare) ने अपनी मृत्यु से पहले स्वयं के कुछ दुखड़े उनसे शेयर किये थे। खास बात यह कि दोनों ही किस्म के शिकवे भाजपा के खिलाफ थे और दोनों के ही बखान के जरिये सिंह ने भाजपा को ही लाभ पहुंचाने जैसी बात कर दी। करकरे का मसला तो यूं चला कि भोपाल के लोकसभा चुनाव (Bhopal Lok Sabha elections) में खुद दिग्विजय की प्रतिद्वंदी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर (Sadhvi Pragya Singh Thakur) को उसका भरपूर राजनीतिक लाभ मिला और पत्थरबाजों को लेकर भी भाजपा को फिर ऐसा ही पॉलिटिकल माइलेज (political mileage) मिल जाए, तो किसी को हैरत नहीं होना चाहिए।
लेकिन हैरत की बात यह कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ (Pradesh Congress President Kamal Nath) ने कथित तौर से राज्य विधानसभा की कार्यवाही को ‘बकवास’ करार दे दिया है। अब BJP बेकरार है कि इस बयान के लिए नाथ के खिलाफ कार्यवाही की जाए। मामला विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम (Assembly Speaker Girish Gautam) के पास शिकायत की शक्ल में पहुंच गया है। कांग्रेस की तरफ से नाथ के पक्ष में मोर्चा खोलने वाले जीतू पटवारी (jeetu patwari) भी ‘बकवास’ पर चुप दिखे। अलबत्ता पटवारी ने विधानसभा में कम काम होने की बात कहकर नाथ के कथन को जस्टिफाई (justify the statement) करने की कोशिश की है। कमलनाथ का दीर्घ संसदीय अनुभव रहा है। साथ ही बहुत अधिक तैश में आने के बाद भी वह शब्दों की मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करते हैं। इसलिए यह समझ से परे है कि बकवास वाली बात उन्होंने कैसे और किन संदर्भों में कह दी?

क्या यह दिल्ली दरबार की आबो-हवा का असर है? नाथ इन दिनों नियम से पार्टी नेतृत्व के पास जा रहे हैं। वहां लंबी चर्चाएं हो रही हैं। ठीक वैसे ही, जैसे वर्ष 2020 में CM रहते हुए नेतृत्व और नाथ के बीच बैठकों के दनादन दौर चल रहे थे। तब कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) ने अपनी ही सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने की चेतावनी दी थी। एक दिन कमलनाथ ने सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) से मुलाकात के बाद सिंधिया को लेकर आपा खो दिया। बोले, ‘…तो उतर जाएं सड़क पर।’ इस आघातनीय शब्द का घातक असर हुआ। सिंधिया अपनी पर उतर आये और उन्होंने नाथ की सरकार को सड़क पर उतार दिया। अब भी दिल्ली दरबार (Delhi Durbar) से सतत संवाद और संपर्क के बीच नाथ ने किस असर और किन आसार के चलते बकवास जैसे शब्द का इस्तेमाल कर लिया है, यह वाकई शोध का विषय है।

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