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शुभकामनाएं गोविन्द सिंह जी

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ये दौर गरमी का है और है राजनीतिक सरगर्मी का भी। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) की भयावह गरमी के बीच पूर्व मुख्यमंत्री तथा प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ (Former Chief Minister and State President Kamal Nath) ने विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष (Leader of Opposition in Assembly) के पद से इस्तीफा (Resignation) दे दिया है। कयास तो बहुत लंबे समय से लग रहे थे, लेकिन शायद सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को अब समझ में आया कि कमलनाथ के लिए विधानसभा सत्तापक्ष की बकवास सुनने की जगह है। तो उनकी जगह अब डॉ. गोविन्द सिंह (Dr. Govind Singh) सदन में विरोधी दल के नेता होंगे। पिछले दिनों दिल्ली में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ नाथ और दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) की संयुक्त बैठकों का कुल जमा जोड़ डा. गोविन्द सिंह निकले। इस बदलाव से पहले प्रदेशाध्यक्ष और भावी मुख्यमंत्री के तौर पर जगह सुरक्षित करने के बाद कमलनाथ ने नेता प्रतिपक्ष (opposition leader) का पद छोड़ने का फैसला लिया। इसलिए कमलनाथ अपने किसी समर्थक को यह जगह नहीं दिलावा पाएं। लिहाजा, अब नेता प्रतिपक्ष के तौर पर डा. गोविन्द सिंह की पारी को आगे बढ़ाने का काम बखूबी दिग्विजय सिंह कर लेंगे। चंबल की माटी और तेवर में रचे-बसे डॉ. सिंह से जुड़ी कई बातें सदैव सामयिक रहती आयी हैं। इनमें से ही कुछ प्रसंग तथा प्रहसनों की याद आज ताजा की जा सकती है।

वह एक मौका था, जब अविभाजित मध्यप्रदेश में देवभोग की खदानों को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह विपक्ष के सीधे निशाने पर थे। मामला उस समय के छत्तीसगढ़ अंचल (Chhattisgarh Zone) का था, इसलिए भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल (BJP MLA Brijmohan Agarwal) उस सरकार के खिलाफ इस विषय पर पूरी तरह आक्रामक थे। तब यह डा. गोविन्द सिंह ही थे, जो सदन में अग्रवाल के खड़े होते ही, ‘अध्यक्ष महोदय (Mr President)! ये बृजमोहन हीरा चोर है’ कहते हुए उनके आरोपों की धार को भोथरा करने के प्रयास में जुट जाते थे। फिर समय थोड़ा आगे बढ़ा। भिंड की लहार वाली डकैतों की जमीन पर धर्म के नाम पर भी कुछ कब्जा हो गया। रावतपुरा सरकार (ravatapura sarakar) के मार्ग में डॉ. सिंह बहुत बड़ी बाधा थे। एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल (national news channel) ने स्वयंभू सरकार और डॉ. सिंह से बात की। बाबाजी बोले कि उन्होंने गोविन्द सिंह को हारने का श्राप दिया है और डॉ. सिंह ने सिंह की ही तरह गर्जना की कि उन्हें किसी के श्राप से कोई डर नहीं है। यह गर्जना सही साबित हुई और गोविन्द सिंह तमाम विरोध के बाद भी फिर स-सम्मान विधायक बन गए। लहार विधानसभा में अब तक अपराजेय हैं।

ताजा सन्दर्भ में तो यह भी याद आता है कि डॉ. सिंह ने ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के कांग्रेस में रहते हुए ही उनके लिए ‘सिंधिया स्टेट के महाराजा’ वाले कटाक्ष का प्रयोग किया था। ऐसा होना स्वाभाविक भी है। पुराने समाजवादी रहे डा.गोविन्द सिंह को स्वर्गीय माधवराव सिधिंया (Late Madhavrao Scindia) के विरोध के कारण दिग्विजय सिंह लंबे समय तक अपने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं कर पाए थे। डॉ. सिंह के तेवर कम से कम उस समय तक तो अपराजेय रहे कि विधानसभा में BJP के उनकी समाजवादी से लेकर कांग्रेस वाले होने तक गली अवसरवादिता की दाल से जुड़े आरोप भी कुछ खास असर नहीं कर पाए। नेता प्रतिपक्ष के तौर पर कमलनाथ के लिए तो कहा जा सकता है ‘जस की तस धर दीनी चदरिया’ के नाटकीय अंदाज में सिंह के ऊपर ‘एक चादर मैली-सी’ जैसा बोझ डाल कर वे मुक्त हो गए।

अब जो डाक्टर साहब पिछले दो विधानसभा चुनावों (two assembly elections) से खुद का आखिरी चुनाव बता रहे हैं उन्हें नेता विपक्ष के तौर पर क्या मिला है। वहीं कमजोर विपक्ष, जो अजय सिंह ‘राहुल’ (Ajay Singh ‘Rahul’) से लेकर दिवंगत सत्यदेव कटारे (Late Satyadev Katare) एवं उनके छायाचित्र बाला बच्चन (Bala Bachchan) सहित खुद नाथ के विपक्षी नेता रहते हुए भी विरोधी पक्ष के कर्तव्य निर्वहन के लिए बहुत अधिक सार्थक साबित नहीं हो पाया। ऐसे में सहज सवाल और शंका यह कि इसी शक्तिहीन विपक्ष (powerless opposition) में भला डॉ. गोविन्द सिंह किस तरह नयी प्राण-वायु का संचार कर सकेंगे? शिवराज सरकार के खिलाफ कटारे के समय से लेकर नाथ के दौर तक जो मौके-दर-मौके आश्चर्यजनक रूप से इसी विपक्ष ने अपने हाथ से जाने दिए, उसे किस भांति नए नेता प्रतिपक्ष फिर अपने दल की संजीवनी बना सकेंगे? गोविन्द सिंह के लिए सही कहें तो उन्हें कांटों का ताज पहना दिया गया है। हालांकि वे निश्चिंत हो सकते हैं कि दिग्विजय सिंह, विधानसभा के बाहर शिवराज सरकार (shivraj government) के खिलाफ हल्ला मचाने में भी उन्हें भरपूर सहयोग देंगे।

पंजाब (Punjab) में अब राजनीतिक रूप से कुर्बान कर दिए गए चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) की भांति ही डा. सिंह को अगले विधानसभा चुनाव के पहले वह जिम्मेदारी दे दी गयी है, जो आज की तारीख में तो सफलता के हिसाब से दुरूह ही दिखती है। ढेर सारे संभावनावान युवा विधायकों के रहते कांग्रेस ने फिर साबित कर दिया है कि उसे अपनी स्थापना के वर्षों का याद रखते हुए बुजुर्गों के अनुभवों पर ही भरोसा है। एक सामान्य विधायक रहते हुए किसी को ‘हीरा चोर’ या ‘स्टेट का महाराजा’ कह देना बहुत आसान है, किन्तु एक बड़ी जिम्मेदारी पर आने के बाद स्वयं को हीरा साबित करना अथवा वाकई अपने दल की लगातार पराजय को किसी महाराजा की तरह विजय में बदल देने में बहुत अधिक अंतर है। फिर भी डॉ. गोविन्द सिंह को शुभकामनाएं (Best wishes to Dr. Govind Singh) कि वे विधानसभा में एक सफल नेता प्रतिपक्ष बन कर सामने आएं। आखिर यह भी उनका सरकार से वैसा ही मुकाबंला है, जैसा मुकाबला कभी उन्होंने रावतपुरा सरकार के प्रभाव को धता बताते हुए सफलतापूर्वक पूरा किया था।

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