क्या इसे सचमुच बड़ी खबर कहा जाए? वैसे मामला है तो बड़ा। बड़े लोगों का। बड़े फैसले का। आबकारी विभाग (Excise Department of Madhya Pradesh) ने कुख्यात शराब तथा बीयर निर्माता समूह सोम डिस्टिलरीज (Som Distilleries) के सेहतगंज स्थित प्लांट में शराब के उत्पादन पर रोक लगा दी है। यह समूह आगामी 24 अगस्त से शराब का उत्पादन नहीं कर सकेगा। उसका लाइसेंस रद्द कर दिया गया है। इसे पढ़कर दो बातें याद आ गयीं। पहली एक गजल की पंक्ति, ‘सो गए लोग उस हवेली के, एक खिड़की मगर खुली है अभी।’ दूसरी, वो घोड़ा जिसे कभी मंदसौर के रास्ते पर देखा था। घोड़े के मालिक ने उसे कुर्सी से बांधा था और अब उसी सड़क पर घिसटती कुर्सी के साथ वह घोड़ा कैद से छूटकर सरपट भागता जा रहा था।
यहां भी ऐसा ही है। हवेली वाले रसूख से भरपूर सोम समूह की एक खिड़की अभी खुली हुई है। उसने हाई कोर्ट (High Court of Madhya Pradesh) में सरकार के इस फैसले के खिलाफ अपील कर दी है। वह ऐसा पहले भी कई बार कर सफलता हासिल कर चुका है। और ऐसे प्रत्येक मौके पर राज्य सरकार द्वारा इस समूह की कारगुजारियों को नियंत्रित करने की परिणीति मंदसौर के रास्ते पर अपनी दुर्गति कराती उस कुर्सी जैसी ही हुई है। तो इस सोमवार जब सोम के मामले में हाई कोर्ट में सुनवाई होना है, तब यह उम्मीद कम ही दिखती है कि उसके उत्पादन पर रोक जारी रहे। वह आसानी से इस आदेश पर स्टे हासिल कर निर्बाध अपना प्रोडक्शन और उसकी आड़ में मनमानी वाला आचरण जारी रखने में एक बार फिर सफल हो जाएगा, इसमें कोई संदेह नहीं है।
इस कथन को माननीय अदालत की व्यवस्था से न जोड़िये। ऊपर बतायी गयी आशंका का आधार सरकार की वह लचर दलीलें और वह ‘प्रखर’ किस्म की गलतियां हैं, जिनके चलते सोम समूह हमेशा से ही ऐसी किसी भी कार्रवाई को आसानी से धता बता देता है, वह भी कानूनी तरीके से। इसमें अदालत या न्याय प्रणाली का कोई दोष नहीं है। दोष उन सरकारी कलाकारों का है, जो खुद ही सोम के बचाव के लिए तमाम रास्ते खोलते हैं। यदि आप अपनी किसी कार्रवाई को न्यायालय में सही साबित ही नहीं कर सकेंगे तो फिर भला कैसे ये उम्मीद की जा सकती है कि कोई न्यायाधीश आपके उस किये पर आंख मूंदकर रजामंदी जता दे!
वैसे तो मेरी अपने देश की न्याय प्रणाली में अगाध आस्था है, लेकिन जब छेद ही किसी नाव के डूबने की वजह बन जाए तो इसके लिए भला नाव को कैसे दोष दिया जा सकता है? तो ये कोई न कोई सुराख जरूर है, जिससे हमारी न्याय प्रणाली अछूती नहीं है। ये लगभग हर मौके पर सोम के पक्ष में स्टे का आ जाना, या फैसला सुरक्षित रखने का ऐसा क्रम बन जाना, जिनमें अरोरा बंधुओं के लिए भारी राहत का पुट रहता है, ये सब आसानी से गले के नीचे नहीं उतरते हैं। निःसंदेह यदि वकील अपनी पेशागत दक्षताओं में विशेष योग्यता रखता हो तो वह ऐसा आसानी से करवा सकता है, लेकिन क्या निर्णायक कुर्सी के पाये इतने कमजोर हैं कि तमाम सच प्रकट होने के बावजूद किसी वकील की दलीलों से वह हिल जाते हैं? यह बड़ा गूढ़ रहस्य है, जो और गहरा जाएगा, यदि इस मामले में भी अदालती व्यवस्था/निर्णय सोम के लिए सुविधाजनक बनकर दिखेंगे।
ताजा मामला देख लीजिये। सोम पर आरोप है कि उसने रायसेन के सेहतगंज (Sehatganj in Raisen District of Madhya Pradesh) में बनी अपनी आसवनी में नियमों का उल्लंघन कर 19 टैंक बना दिए। इन टैंक में देशी शराब बनाने के लिए स्प्रिट का भंडारण किया जाता है। जबकि इस गड़बड़ी के बीच भी वर्ष 2016 से लेकर अब तक सोम का लाइसेंस लगातार रिन्यू किया जाता रहा। इस महाभूल के पीछे राज्य सरकार के अफसर गजब हास्यास्पद दलील दे रहे हैं। लाइसेंस निरस्त के लिए जारी कारण बताओ नोटिस के जवाब में सोम ने लगातार रिन्यू वाली प्रक्रिया का अपने पक्ष में हवाला दिया था। इस पर आबकारी विभाग ने लाइसेंस निरस्त करने वाले नोटिस में लिखा है, ‘इस संबंध में वस्तुस्थिति यह है कि 28. 09. 2020 को इकाई की अनुज्ञप्ति के नवीनीकरण के उपरांत प्रकाश में आये नए तथ्यों के आधार पर प्रकरण का सूक्ष्म परीक्षण किये जाने के उपरांत यह कार्यवाही प्रचलित की गई है।’ तो क्या जिन अफसरों में लाइसेंस रिन्यू करने से पहले सोम की इस डिस्टलरी का निरीक्षण किया होगा, वे इस बात को देख ही नहीं सके कि उस कारखाने के परिसर में ही एक- दो नहीं, बल्कि पूरे 19 टैंक धड़ल्ले से काम कर रहे हैं? जब नियम साफ़ कहते हैं कि किसी आसवनी में किसी भी प्रकार के परिवर्तन के लिए आबकारी आयुक्त (Excise Commissioner) की पूर्व मंजूरी जरूरी है तो फिर ऐसा क्या हुआ कि इस मंजूरी के न होने के बावजूद टैंक बनाने वाले सोम ग्रुप का लाइसेंस एक बार फिर रिन्यू कर दिया गया?
दरअसल सोम पर सरकारी मेहरबानियों का सिलसिला पुराना है। यहां भी वही बात साफ़ दिख रही है। नियम स्पष्ट कहते हैं कि हर साल लाइसेंस को रिन्यू करने से पहले आबकारी विभाग द्वारा सूक्ष्म निरीक्षण किया जाता है तथा टैंक का रिकॉर्ड मेन्टेन किया जाता है। तो फिर 2021 के लिए भी सोम का लाइसेंस रिन्यू करने के पहले ‘सूक्ष्म निरीक्षण’ तथा ‘टैंक के रिकॉर्ड’ वाली प्रक्रियाओं को विभाग का संबंधित स्टाफ भूल गया था? मामला जरूर शराब वाला है, लेकिन स्थिति ‘पूरे कुएं में भांग घुली’ वाली ही है। आबकारी विभाग ने सोम को दिए आदेश में स्वयं लिखा है कि विभाग के प्रभारी अधिकारी ने टैंकों की गेजिंग अपने ही विवेक से करवा दी और इस संबंध में उसने आबकारी आयुक्त से कोई अनुमति नहीं ली।
अब अगली कलाकारी सुनिए। वर्ष 2018-19 में इस डिस्टलरी के लाइसेंस के नवीनीकरण से पहले भी जिला आबकारी अधिकारी ने यहां के निरीक्षण की रिपोर्ट तैयार की। इसमें उसने नियम विरुद्ध टैंक बनाये जाने की बात को ही गोलमोल कर दिया। सोम को दिए नोटिस में विभाग लिखता है, ‘ जिला आबकारी अधिकारी, सोम आसवनी के प्रतिवेदनों में आसवनी में नवीन निर्माण कार्य किये जाने संक्षिप्त औपचारिक उल्लेख मात्र किया गया है, जिसमें स्टोरेज/रिसीवर टैंकों की स्पष्ट जानकारी नहीं है।’ एक सवाल यह भी उठता है कि यदि सोम ने अपने कागजों में इन टैंकों को ‘एल्कोहल स्टोरेज सेक्शन’ बताकर आबकारी विभाग की आंखों में धूल झोंकी तो वो अफसर क्या कर रहे थे, जिन्होंने मौके पर जाकर स्थिति का मुआयना किया और जिनकी ओके रिपोर्ट सोम का लाइसेंस रिन्यू करने का प्रमुख आधार बनी?
यह सब घनघोर लापरवाहियां उस सोम समूह के मामले में की गयीं, जो अपने गलत कामों के लिए हमेशा से कुख्यात है। इसलिए यह शक बेमानी नहीं लगता कि सोम ने यदि गड़बड़ी की है तो उसे इन गड़बड़ियों के लिए आबकारी विभाग के अंदर से ही संरक्षण भी मिलता रहा है। वरना आप उस ग्रुप पर कैसे आंख मूंद कर विश्वास कर सकते हैं, जो नीलामी में नकली बैंक ड्राफ्ट जमा करने का आरोपी हो? कैसे आप तमाम नजर आते सफ़ेद झूठों को सच मान सकते हैं, जबकि आपका पाला उस समूह से पड़ा है, जिसने मध्यप्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम की इंटरकॉर्पोरेट योजना से करोड़ों रुपयों का कर्ज लेकर हजम कर लिया हो? किस तरह यह तथ्य भुला दिया गया है कि भाजपा की सरकार में ही तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती (Uma Bharti) ने कर्ज न चुकाने के चलते सोम समूह के प्रमुख के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई और यह मामला अब भी चल रहा है?
सोम ग्रुप के सर्वेसर्वा (‘सरगना’ भी लिख सकते हैं) अरोरा बंधुओं की गड़बड़ी वाली फेहरिस्त बहुत लंबी है। कोरोना की पहली लहर (First Wave of Corona) के समय इस ग्रुप ने जीएसटी का भुगतान किये बगैर लाखों लीटर सैनेटाइज़र बनाकर उसे बाजार में बेच कर 25 करोड़ रूपये के वारे-न्यारे कर दिए। और थोड़ा पीछे चलें। वर्ष 1996 में मुरैना सेल्स टैक्स बेरियर पर आबकारी विभाग के अफसरों ने तीन ट्रकों में भरी सोम डिस्टलरी की सन्नी माल्ट व्हिसकी की 616 पेटियां बरामद की। यह शराब जारी परमिट की समयसीमा खत्म होने के बाद भी रायसेन से दिल्ली परिवहन की जा रही थी। शराब के परिवहन के लिए जारी परमिट सिर्फ एक साल के लिए ही जारी हुआ था। 24 साल पुराने इस मामले के तीन आरोपी तो फरार हैं लेकिन डिस्टलरी के मालिक जगदीश अरोड़ा (Jagdish Arora) को कोर्ट ने दिन भर की कार्यवाही तक के कारावास की सजा सुनायी। जाहिर है कि जब अभियोजन पक्ष यानी सरकार ने ही कड़ी सजा की मांग नहीं की तो दंड के नाम पर ऐसा मजाक तो होना ही था। जबकि यह वह अपराध है, जिसमें अभियोजन पक्ष ताकत लगाता तो अरोड़ा सहित अन्य आरोपियों को कम से कम तीन महीने की सजा होना तय था।
वाकये और भी हैं। टैंक वाले इसी विवाद में के समय सरकार के ही एक अन्य विभाग पीडब्ल्यूडी ने कमाल कर दिया। महकमे के रायसेन संभाग के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर ने इसी साल की 19 फरवरी को रायसेन कलेक्टर को एक पत्र लिखा। इसमें बताया गया कि सोम के सेहतगंज वाले परिसर में टैंकों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जा रहे हैं. खत में विभागीय निरीक्षण के आधार पर कहा गया कि टैंक के चारों तरफ सुरक्षित आकार की दीवारें उठायीं जा रही हैं और ये काम संतोषजनक तरीके से चल रहा है। अब ये बात समझ से परे है कि जिस जगह पर और जिन टैंकरों के गलत इस्तेमाल की बात खुद आबकारी विभाग कह रहा है, उन्हीं बातों के लिए लोक निर्माण विभाग सब ठीक बताया जाने वाला झूठ क्यों परोस रहा था?
]बता दें कि एक मामले में सोम इसी तरह पहले भी बचाया गया था. इन्हीं टैंकों की पूर्व में आबकारी आयुक्त स्तर पर जांच हुई थी. उसके बाद तत्कालीन आयुक्त ने सोम प्रबंधन पर केवल एक लाख रुपये का जुर्माना लगाकर टैंक नियमित करवा दिए थे। तो जो समूह अपने हक में लगातार सरकारी लापरवाहियों के आशीर्वाद के संरक्षण में हो, उसका इस वर्तमान घटनाक्रम से भी कुछ बिगड़ेगा, यह सोचकर ही हंसी आ रही है। जिस व्यवस्था के कुछ हिस्से रोम-रोम तक सोम के अहसानों में डूबे हुए हों, वे भला इस समूह का क्या बिगाड़ पाएंगे?