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तकदीर-तदबीर के को-आॅर्डिनेशन में माहिर शिवराज

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मध्यप्रदेश (Madhya pradesh) देश का पहला ऐसा राज्य हो गया है, जहां कोविड-19 (Covid-19) से अनाथ हुए बच्चों (Orphaned children) को सरकार की तरफ से पेंशन दे जाएगी। पांच हजार रुपये की इस राशि का ऐलान खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chauhan) ने किया। बेसहारा हुए बच्चों का पूरा ध्यान रखने का वादा शिवराज कर रहे हैं। आप बेशक इसे न्यूनतम संसाधनों के अधिकतम उपयोग का मामला कह सकते हैं। मध्यप्रदेश में अब कंट्रोल होती नजर आ रही कोरोना (Corona) की दूसरी लहर (Second Wave) बीमारों और मौतों की संख्या (Number of deaths) भयावह से भी आगे का विनाशकारी स्वरूप (Destructive nature) दिखा चुकी हैं। कोई भी ठीक-ठीक नहीं जानता कि कोरोना राज्य में अब तक कितनों के प्राण ले चुका है और यह सिलसिला किस आंकड़े को छूने के बाद थमेगा। इसमें सरकारी रिकार्ड (Official record) में दर्ज आंकड़ों की बात करने का कोई मतलब नहीं है। इसलिए कोरोना की दूसरी लहर की यह तकलीफ तो जैसे घर-घर की कहानी का रूप ले चुकी है। यह लाख कह लिया जाए कि शासन तंत्र इन हालात पर काबू पाने में नाकाम रहा है, किन्तु यह तो करोड़ गुना अधिक सच है कि समूचे विश्व की एकजुट शक्ति भी इस समस्या का निदान नहीं कर पा रही है। जो चिर-असन्तोषी स्वर आस्ट्रेलिया (Australia) या इजराइल (Israel) जैसे इक्के-दुक्के उदाहरण देकर अपने ही भारत देश को गरियाने का एजेंडा पूरा कर रहे हैं, वे इस तथ्य को जान-बूझकर छिपा जाते हैं कि इन मुल्कों की आबादी हमारे यहां की तुलना में बहुत कम है। इसलिए वहां यदि भारत से पहले स्थिति कुछ हद तक नियंत्रण में दिख रही है तो उसकी वजह जनसंख्या के अनुपात में संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता ही है।





यह कहना तो अनगिनत जख्म हरे करने वाली बात होगी कि मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कोरोना से बिगड़े हालात पर नियंत्रण पा लिया है। बीमारों की संख्या से लेकर दवाओं (drugs) की कमी, उनकी कालाबाजारी (Black marketing), प्राइवेट अस्पतालों (Private hospitals) की लूट जैसी सम-सामयिक अनगिनत विसंगतियां (Countless discrepancies) मध्यप्रदेश में भी अराजकता का माहौल बना चुकी हैं। किन्तु शिवराज का ये बड़ा कदम रहा कि इन हालात के बीच उन्होंने प्रदेश की जनता के हर वर्ग को ध्यान में रखकर योजनाएं बनायी और उनकी चिंता की हैं। बीते साल चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवराज ने सबसे पहले उस समय के सबसे ज्यादा परेशान प्रवासी श्रमिक वर्ग (Migrant working class) की समस्याओं के निदान पर फोकस किया। फिर सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) सहित लॉकडाउन (Lockdown) के लिए की गयी उनकी सख्ती भी तो लोगों के हित से जुड़े सरोकार का ही एक हिस्सा है।

शिवराज तकदीर और तदबीर के अपने पक्ष में को-आर्डिनेशन (Co-ordination) में माहिर हैं। खुद कोरोना से पीड़ित हुए तो अस्पताल से ही जरूरी काम करते हुए वायरस की आड़ में अपने निकम्मेपन को छिपाने वालों के लिए एक मिसाल पेश कर दी। इंजेक्शन (Injection) और आक्सीजन (Oxygen) की कालाबाजारी (Black marketing) तथा मिलावटखोरी (Adulteration) के मामले बढ़े तो मुख्यमंत्री ने गुजरात में जा छिपे आरोपियों की गिरेहबान तक हाथ पहुंचाने का बंदोबस्त कर दिया है। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (National security law) के तहत सख्त कार्रवाई की।





इधर, राज्य की सत्ता पर मरीजों को लूट रहे निजी अस्पतालों को संरक्षण देने के आरोप लगे और उधर शिवराज ने पीड़ितों को इन मामलों में प्रकरण दर्ज करने सहित ज्यादा वसूले गए पैसे वापस दिलाने का काम भी कर दिया। और तो और बिगड़ते हालात के बीच सरकारी सख्ती के चलते सरकारी अस्पतालों (Government hospitals) में गड़बड़ी करने वाला स्टाफ भी पनाह मांगते भटक रहा है। इसके साथ ही शिवराज ने बड़ी खूबी से कोरोना वारियर्स (Corona warriors) के दर्जे का आकार बढ़ाते हुए भी ज्यादा से ज्यादा लोगों को शासकीय योजनाओं (Government schemes) के लाभ से जोड़ दिया है। मीडिया में भी पहले तो अधिमान्य पत्रकारों के लिए रास्ता खोला और बाद में सभी मीडियाकर्मियों को इसमें शामिल कर लिया। तो काम करके श्रेय लेने वाला यह गिव एंड टेक का मामला शिवराज की छवि को चमकाने में खासा मददगार साबित हुआ है। योजनाओं से प्रभावित लोग खुश होकर सरकार को दुआएं दे रहे हैं, तो अब इसमें कोई क्या कर सकता है।

अब फिर से किस्मत कनेक्शन (Kismat connection) देखिये। शिवराज के ये कदम भले ही राजनीतिक लाभ (Political advantage) की कामना से प्रेरित भी हैं, किन्तु यदि ताजातरीन तुलनात्मक अध्ययन करें तो यहां भी चौहान के नंबर अपने आप बढ़ जाते हैं। कमलनाथ (Kamal Nath) पंद्रह महीने राज्य के मुख्यमंत्री रहे। राज्य में कोरोना के बेकाबू हालात की शुरूआती भयावहता कमलनाथ की ही देन है। लेकिन पूरे कार्यकाल में कोरोना जैसे हरेक गंभीर मसले पर नाथ कोई भी काम करने की बजाय पैसे की कमी की बात ही कहते रहे। कमलनाथ के डेढ़ साल को अगर याद रखना है तो उसका सबसे बड़ा एक ही सूत्र वाक्य था कि राज्य का खजाना खाली है।

 

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शिवराज की पिछली सरकार राज्य को कंगाल कर गई, वगैरह, वगैरह। खजाना तो Shivraj का भी रीत चुका बताते हैं, मगर कोरोना (Corona) हो या हो कोई और मामला, वर्तमान मुख्यमंत्री ने पिछले एक साल में एक बार भी राज्य की आर्थिक तंगी का सार्वजनिक रोना तो शायद कभी भी नहीं रोया है। किसी भी बड़ी/छोटी योजना में पैसे की कमी को आड़े आने नहीं दिया है। इस सबका लाभ मुख्यमंत्री की इमेज बिल्डिंग के रूप में है तो यही लाभ आम जनता को भी होता साफ दिख रहा है। आप बेशक, ‘मध्यप्रदेश मेरा मंदिर…’ कहते हुए घुटने के बल बैठे किसी सीएम को सियासी प्रोपेगेंडा (Political propaganda) से जोड़ दें, किन्तु इस तथ्य से आप इनकार नहीं कर सकते कि कोरोना काल में या उससे पहले भी संवेदनशीलता के मामले में आप शिवराज को उनके पूर्ववर्ती सभी मुख्यमंत्रियों की तुलना में काफी आगे ही पाएंगे, सकारात्मक रूप से।

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