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फिर गलती कर रही कांग्रेस

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लक्ष्मी के दरवाजा खटखटाने पर मुंह धोने चले जाने का ये एकदम ताजा उदाहरण कहा जा सकता है। सोमवार को हुई कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक का नतीजा कुछ ऐसा ही है। कांग्रेस Congress को कोई स्पष्ट रास्ता नहीं सूझ रहा है। न तो पार्टी आलाकमान (Party high command) को और न ही देश भर के कांग्रेसियों को। पहले तय किया कि 23 जून को नए कांग्रेसाध्यक्ष का चुनाव कर लिया जाए। फिर कोरोना (Corona) के बहाने यह तय कर लिया गया कि फिलहाल सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ही पार्टी की कमान संभाले। जाहिर है बूढ़ी हो चुकी कांग्रेस पर इस समय बुजुर्गों का ही साया हावी है। लिहाजा, उनके लिए सोनिया गांधी ही ठीक हैं। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) वैसे भी पार्टी या देश के युवाओं को साध नहीं पाएं हैं। और उनके दाएं-बाएं इस समय वामपंथी विचारधारा (Leftist ideology) के वो लोग हावी हैं जो अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से देश में कोई नतीजा निकाल नहीं पाएं हैं। लिहाजा, राहुल के बहाने वे व्हाया कांग्रेस अपना राजनीतिक रास्ता (Political Journey ) बनाने की कोशिश में हैं। उम्र के आखिरी पड़ाव पर मौजूद कांग्रेस की बुजुर्ग पीढ़ी (Elderly generation) को लगता है कि 2014 से 24 के दस साल तो बर्बाद हो ही गए। कांग्रेस के लिए अपने दम पर सत्ता हासिल करना अब सपना ही रह गया है। फिर भी विपक्ष में बिखरे क्षेत्रीय दलों के सामने बौनी साबित हो चुकी कांग्रेस देश के बड़े हिस्से में अब भी भाजपा के स्वाभाविक विकल्प के तौर पर मौजूद है। तो मौजूदा हाल में बुजुर्ग कांग्रेसियों (Elderly congressmen) को 2004 जैसे ख्वाब आना स्वाभाविक हैं।

इस समय तो विपक्ष की देहरी पर स्वर्णिम अवसरों वाली संपदा दस्तक दे रही है। कोरोना महामारी में देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) का जादू फिलहाल सिकुड़ता दिखाई दे रहा है। कोरोना ने जो भयावह हालात बनाये हैं, उनसे निपटने में केन्द्र सरकार (Central government) की नाकामी मोदी को घेरने का जबरदस्त अवसर लेकर आयी है। लेकिन जिस कांग्रेस के पास इन हालात को अपने लाभ में इस्तेमाल करने का सबसे तगड़ा अनुभव और क्षमता है, वह कांग्रेस और सुस्त हो गयी है। कविवर रामकुमार वर्मा (Kavivar Ramkumar Verma) की एक कविता की पंक्तियां याद आ रही हैं, ‘ मोल करेगा कौन, सो रही हैं उत्सुक आंखें सारी?’ यही Congress का हाल है। आम तौर पर बिल्ली के भाग्य से छींका फूटता ही सुना है लेकिन फिर भी कभी कभार तो बिल्ली भी अपनी मेहनत से छींका फोड़ ही लेती होगी। ऐसा होते क्या पता किसी ने देखा या नहीं लेकिन कांग्रेस तो मानो भाग्य से छींका टूटने की उम्मीद भी खो चुकी है। तो जाहिर है मेहनत से छींका तोड़ना तो उसके बस की बात रही नहीं। लिहाजा, भरी गर्मी में कांग्रेस लिहाफ में मुंह ढंककर सो रही लगती है। कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर में पीढ़ियों के अंर्तद्वंद्व से जूझ रही है।





तो मुख्य बात यह कि कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक में राहुल गांधी फिर गच्चा खा गए। कोशिश थी कि पार्टी की जीर्ण-शीर्ण हो चुकी कमान एक बार फिर राहुल के हाथ दे दी जाए। मगर पार्टी की पुरानी पीढ़ी के नेता इसमें बाधक बन गए लगते हैं। उनकी यह कोशिश फिलहाल के लिए फिर सफल हो गयी है कि पार्टी का नेतृत्व सोनिया गांधी ही करती रहें। बात राहुल पर अविश्वास या पार्टी के लिए घनघोर निष्ठा वाली नहीं है। बात यह है कि ये पीढ़ी जानती है कि यदि मामला ‘राहुल बाबा रिटर्न्स’ (Rahul Baba Returns) का हुआ तो उन सभी की बाकी जिंदगी सियासी वानप्रस्थ में ही बीत जाएगी। सोनिया पुत्र पार्टी की नई-पुरानी पीढ़ी में सामंजस्य वैसे भी नहीं बिठा पाएं हैं। सोनिया रिटायरमेंट (Retirement) की दहलीज पर खड़े पार्टीजनों को भी साथ लेकर चलने की हिमायती हैं। इसलिए राहुल को मिलकर रोकना इस दल के ताऊजी (Tauji) और फूफाजियों के लिए जीने-मरने का सवाल बन चुका हैं। कल की बैठक में मौका मिलते ही इस टीम ने कोरोना की आड़ में राहुल बाबा की संभावनाओं को फिर पलीता लगा दिया।

मगर क्या ये ठीक हुआ? सोनिया गांधी का स्वास्थ्य अब उनका साथ नहीं दे रहा। उस पर बीते लंबे समय से वह पार्टी के लिए नाकामियों का पर्याय बनकर ही रह गयी हैं। केरल (Kerala) और असम (Asam) में हालिया मिली असफलता के बाद राहुल गांधी तो शायद पार्टी को भविष्य में सफलता दिला गए, तो लोग इसे उनके व्यक्तित्व तथा कृतित्व की तौहीन मान लेंगे। यहीं से आप मशहूर व्यंग्यकार शरद जोशी (Satirist Sharad Joshi) की ‘जीप पर सवार इल्लियों’ को याद कर ठहाका लगाने के लिए स्वतंत्र हैं। यदि यह पार्टी अब भी सोनिया या राहुल को ही अपना खेवनहार मान रही है तो फिर मामला उम्मीदों के खेत को इल्लियों के हवाले कर देने और फिर इससे फसल को हुए नुकसान की मूर्खतापूर्ण तरीके से समीक्षा करने वाला ही बन जाता है। सोमवार की बैठक को ध्यान से देखिये। सोनिया गांधी या राहुल ने कहीं भी यह नहीं कहा कि पार्टी की स्थिति शीर्ष स्तर पर बहुत बड़े बदलाव से ही सुधर पाएगी। राहुल के समर्थक या विरोधी, किसी भी पक्ष ने यह कहने की हिम्मत नहीं दिखाई कि अब पार्टी को गांधी-नेहरू परिवार (Gandhi-Nehru Family) की बेड़ियों से आजाद किया जाए। जबकि यह वह कालखंड है, जबकि यदि कांग्रेस के पास सक्षम नेतृत्व (Competent leadership) होता तो मोदी के खिलाफ बन रहे देशव्यापी माहौल को कांग्रेस अपनी ताकत बना सकती थी। मगर किसी को पार्टी की सच्ची चिंता हो तब ना।

 

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ये पांच राज्यों के नतीजों का पोस्टमार्टम करने के लिए छोटी समितियों का गठन काफी हास्यास्पद कदम है। यह रस्म अदायगी मात्र है। यदि सोनिया गांधी पश्चिम बंगाल (West Bengal) तथा केरल में पार्टी की हार के कारण बाहर तलाशती हैं तो फिर यह ‘बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलाया कोय’ की नसीहत को उदाहरण में ढालने का सबसे सरल माध्यम बन जाता है। सोनिया गांधी का कांग्रेस के लिए चिंतन पूरी तरह पुत्र-मोह की भेंट चढ़ चुका है। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और प्रियंका वाड्रा (Priyanka Vadra) पार्टी पर थोपे गए भार से अधिक और कुछ नहीं रह गए हैं। जो राहुल का विरोध कर रहे हैं, वे भी सोनिया को ही अध्यक्ष बनाये रखना चाहते हैं। तो साफ है कि Congress को मजबूत बनाने में उनकी भी कोई दिलचस्पी नहीं है।





यहां एक कहानी याद आती है। एक समूह रात के अंधरे में नाव पर सवार हुआ। दूसरे किनारे पहुंचने के लिए सभी रात-भर चप्पू चलाते रहे। सुबह की रोशनी हुई तो पता चला कि वे नाव की किनारे से बंधी रस्सी खोलना तो वे भूल ही गए थे। वे केवल चप्पू चलाते रहे और नाव उस जगह से जरा भी आगे नहीं बढ़ी। मुझे नहीं लगता कांग्रेसी इस कहानी से कोई सीख ले पाएंगे।

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