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चाबुक छोड़ दिमाग पर दीजिए दस्तक

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गजब की उपमा देकर चले गए जेपी नड्डा (JP Nadda) । मीडिया की यह चिंता खत्म नहीं हो रही है कि 2023 का विधानसभा चुनाव (assembly elections) भाजपा (BJP) शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) के नेतृत्व में लड़ेगी या नहीं? इसलिए मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर भाजपा अध्यक्ष की पत्रकार वार्ता (Press Conference) में यह सवाल कई बार घुमाफिराकर उछला। उपमा इसलिए कहा क्योंकि वृक्षारोपण को दैनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बना चुके शिवराज के स्थायित्व पर नड्डा ने कहा, शिवराज के नेतृत्व में सरकार अच्छी चल रही है तो बार-बार पौधे को उखाड़कर क्यों देखना। और चौथी पारी खेल रहे शिवराज तो फिर अब वटवृक्ष से कम कहां हैं?

फिर भी मीडिया (Media) और सोशल मीडिया (social media) में निठल्ले चिंतन का एक पक्ष खासा जोर पकड़ चुका है। ‘पटकने’ के लिए और कुछ न हो तो यही पटक दो कि राज्य में बड़ा बदलाव होने वाला है। अब हो कुछ नहीं रहा है ये अलग बात है लेकिन ऐसा कहने वालों में से कई का आत्मविश्वास देखकर तो ये महसूस होता है कि खुद नरेंद्र मोदी (Narendra Modi), अमित शाह (Amit shah) या जेपी नड्डा उनसे यह राय ले चुके हों. ‘गुरू! ये शिवराज सिंह चौहान का कोई अच्छा विकल्प आप ही सुझा सकते हो। कोई हो नजर में तो बताओ भैया।’ फिर शिवराज सिंह चौहान ने तो पहली बार जिस दिन कार्यभार ग्रहण किया था, उसी घड़ी से भाई लोग चौहान के काउंटडाउन (countdown) में मसरूफ हो गए थे। अब ये बात अलग है कि पन्द्रह महीने के अल्प अंतराल को छोड़कर मध्यप्रदेश की सत्ता का मुखिया बने शिवराज सौलहवें साल में चल रहे हैं।

असल में भाजपा ने गुजरात (Gujrat), उत्तराखंड (Uttrakhand) और त्रिपुरा (Tripura) जिस तरह CM बदले, उसके बाद यह कयासबाजी जोर पकड़ती रही कि अब शिवराज की बारी है। ऐसे लोग चाबुक छोड़कर अपने दिमाग पर दस्तक दें, तो शायद उन्हें अपनी इस निरी मूर्खता का बोधिसत्व हो जाए। गुजरात में जैन समुदाय के विजय रूपाणी (Vijay Rupani) इसलिए हटाए गए कि पार्टी को इस साल होने वाले चुनाव में पाटीदार समुदाय को साधना था। हार्दिक पटेल (Hardik Patel) की गुरूवार को हुई भाजपा में एंट्री इसी का एक हिस्सा नहीं है क्या। इसीलिए गुजरात में समय रहते भूपेंद्र भाई पटेल (Bhupendra Bhai Patel) को मुख्यमंत्री बनाया गया। उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) के नेतृत्व में लड़े जाने वाले चुनाव में पार्टी की हार का पूरा खतरा था। लेकिन जब यही संकट तीरथ सिंह रावत (Tirath Singh Rawat) के रूप में भी दिखा तो पार्टी ने कोई देर न करते हुए उन्हें भी हटा दिया। हालांकि उनकी जगह लाए गए पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) विधानसभा का चुनाव हार गए। पर हारने के बाद भी मुख्यमंत्री बने और अब विधानसभा में जाने के लिए उपचुनाव लड़ रहे हैं। बिप्लब कुमार देब (Biplab Kumar Deb) का कमजोर परफॉरमेंस ही उन्हें हटाए जाने की वजह बना है। त्रिपुरा में भाजपा ने पहली बार सरकार बनाई है और जाहिर पार्टी कम्युनिस्टों के प्रभाव वाले इस राज्य में अपनी पकड़ कमजोर नहीं होने देना चाहती है।

लेकिन इस तरह की असफलता की छाया तक शिवराज के पास नहीं फटक सकी है। तो फिर किस आधार पर उन्हें हटाए जाने की चचार्ओं को तवज्जो दी जाना चाहिए? भले ही मुख्यमंत्री बदलने के मामले में भाजपा ने बीते कुछ समय में कांग्रेस (Congress) को भी मात दे दी हो, फिर भी ऐसा एक भी निर्णय कांग्रेस की पंजाब (Punjab) जैसी प्रलयंकारी भूल वाला साबित नहीं हुआ है। इसलिए भाजपा के इन बदलावों में कांग्रेसी पैटर्न की तलाश करना औचित्यहीन है। लगभग सभी मामलों में भाजपा ने योग्यता को तरजीह प्रदान की है। छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह (Dr. Raman Singh in Chhattisgarh) पर पार्टी ने पूरे पंद्रह साल भरोसा किया और सिंह भी अपने दल की उम्मीदों पर खरे साबित हुए। 2018 के चुनाव में मध्यप्रदेश में भाजपा को भारी एंटी इंकम्बेंसी के बाद भी यदि कांग्रेस से मात्र पांच सीट कम मिली थीं, तो यह शिवराज फैक्टर का ही असर था। इसके बाद पंद्रह महीने तक विपक्ष में रहते हुए भी शिवराज ने अपने जुझारू तेवर कायम रखे। नतीजा यह हुआ कि चौथी बार सरकार बनने पर भाजपा ने एक बार फिर शिवराज पर ही भरोसा रखा।

चौथी पारी में भी शिवराज अब तक तमाम मोर्चों के हिसाब से पार्टी की अपेक्षाओं के अनुरूप ही आगे बढ़ते जा रहे हैं। चाहे 28 सीटों के उपचुनाव में जीत का मामला हो या फिर हाल ही में हुए चार विधानसभा उपचुनावों में से तीन पर जीत हासिल करने का। आज की तारीख में तो यही कहा जा सकता है कि भाजपा 2023 का विधानसभा चुनाव भी चौहान के नेतृत्व में ही लड़ेगी।

एक गौर करने लायक बात और है। BJP को अब तक वह संक्रमण नहीं लगा है कि इस दल में किसी व्यक्ति या पदाधिकारी विशेष की मर्जी से बदलाव कर दिए जाएं। यदि शिवराज को हटाने की कल्पना भी की जाती है, तो यह अकल्पनीय होगा कि ऐसा एक अकेले नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) या मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) की मर्जी से हो जाए। शिवराज ने तो नियमित रूप से पार्टी के लिए अपना पोटेंशियल साबित किया है। फिर भाजपा तो वह दल है, जिसने ऐसे पोटेंशियल के विश्वास मात्र के चलते उत्तराखंड में चुनाव हार जाने वाले पुष्कर सिंह धामी को ही मुख्यमंत्री बना दिया है।

यदि जेपी नड्डा मध्यप्रदेश में यह कहते हैं कि बार-बार पौधे को उखाड़कर उसकी जड़ की जांच नहीं की जाती, तो इसका सीधा-सा अर्थ है कि वह राज्य में बदलाव की अटकलों को खारिज कर रहे हैं। जिस दल में पौधे की हैसियत वाले किसी चेहरे को भी इधर से उधर करने के लिए सामूहिक फैसले का चलन हो, वहां अब वटवृक्ष जितने शक्तिशाली हो चुके शिवराज को बदल दिए जाने की बात इतने सतही स्तर पर सोचने का मतलब ही नहीं है। समझदार को इशारा काफी होता है। नड्डा ने तो खैर जो कहा, उसे समझने के लिए किसी भारी बुद्धि विलास की भी जरूरत नहीं है। अटकलों के घोड़े पर चाबुक बरसाने वालों की अक्ल पर तरस खाकर इस चर्चा का पटाक्षेप हो जाना चाहिए। और शिवराज के सामने तो वैसे भी पंचायत और नगरीय निकायों के चुनावों की चुनौती खुद को साबित करने के लिए सामने खड़ी ही है।

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