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भागवत की बात पर सकारात्मक विमर्श की जरूरत

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख (RSS Chief) मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) के इस विचार से कतई असहमति नहीं है कि अब हर मस्जिद में शिवलिंग (Shivling in the Masjid) की खोज बंद की जाना चाहिए। भागवत की यह घोषणा स्वागत-योग्य है कि संघ अब मंदिरों को लेकर कोई आंदोलन नहीं करेगा। बहुत गौर न करें तो भी यह बहुत अधिक साफ़ है कि ज्ञानवापी से शुरू हुए विवादों की आंच ने देश के बहुत बड़े हिस्से को झुलसाना शुरू कर दिया है। भारत (India) जैसे आस्था के मामले में बेहद संवेदनशील देश में इस तरह के बखेड़ों का विस्तार भविष्य की कोई अच्छी सूरत प्रस्तुत नहीं कर रहा है। निश्चित ही हिंदुओं (Hindus) को अतीत के धार्मिक अत्याचार साल रहे हैं, लेकिन सैकड़ों साल पुराने उस समय को लेकर तनाव की स्थिति नहीं बनना चाहिए, जो समय अब हम में से किसी के भी हाथ में नहीं है। ताजमहल (Taj Mahal) को हिंदू मंदिर बताने वाली बात तो पीएन ओक काफी पहले लिख गए थे, फिर ऐसा क्या हुआ कि उसे लेकर अब इस इमारत की खुदाई की मांग की जा रही है? क्या ये किसी ख़ास तरीके से एक विषय को मोबिलाइज करने की रणनीति का हिस्सा है? सवाल यह भी उठता है कि क्या ताजमहल परिसर में नमाज (Namaz) पढ़ने की कोशिश भी इसी रणनीति के तहत की गयी थी?

आप बेशक स्वतंत्र हैं कि ऐसे मामलों में अदालत का दरवाजा खटखटाएं। आप पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम पर भी बहस हेतु स्वतंत्र हैं। लेकिन इन विषयों पर समानांतर अदालती व्यवस्था संचालित करना भला कैसे उचित कहा जा सकता है? टीवी चैनल (TV Channel) वालों का तो बस नहीं चलता, वरना उनके नुमाइंदे स्टूडियो में बैठकर ही देश में अनगिनत स्थानों पर कहीं मंदिर तो कहीं मस्जिद का निर्माण करवा दें। सोशल मीडिया (social media) की अधिकांश पोस्ट यदि किसी धर्म-विशेष के पक्ष में बात रखती हैं, तो उन्हीं पोस्ट में दूसरे धर्म को लक्षित करके ऐसी अपमानजनक बातें शामिल कर दी जाती हैं, जो अंततः कलह को ही बढ़ावा दे रही हैं। सोशल मीडिया का मंच उस घातक प्रपंच का अड्डा बनकर रह गया है, जिसके चलते समाज में विघटन के विनाशकारी हालात पैदा हो गए हैं। इस सबको देखते हुए वर्तमान में भागवत के विचार पूरी तरह अनिवार्य तथा स्वीकार्य प्रतीत हो रहे हैं। इससे यह भी संकेत मिलता है कि संघ अपनी सामाजिक समरसता वाली मुहिम को हिन्दू-केंद्रित वाली छवि से बाहर निकालने में लग गया है।

याद आता है अयोध्या मसले पर उत्तर प्रदेश (Uttar pradesh) की हाई कोर्ट द्वारा फैसला सुनाए जाने के पहले का समय। अटकलों और आशंकाओं के बीच माहौल इतना दमघोटू हो गया था कि लगभग सभी लोग किसी बड़ी अनहोनी की आशंका से घिर गए थे। हालात को देखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) ने मीडियाकर्मियों से सलाह ली थी। तब उन्हें प्रमुख रूप से यही सुझाव दिया गया था कि वह इस विषय से जुड़े SMS और फेसबुक (Facebook) सहित सभी सोशल मीडिया की पोस्ट पर नजर रखें। क्योंकि उन पर प्रसारित किये जा रहे संदेशों से वातावरण बुरी तरह विषाक्त हो रहा था। तब व्हाट्सएप्प (WhatsApp) का चलन नहीं था, आज वह पूरी जोरों पर चल रहा है। स्क्रीन पर कुछ भी लिखकर एक सेकंड में सैकड़ों लोगों तक नकारात्मक या भ्रामक विचार फैलाने का काम जोरों पर चल रहा है। सबसे बड़ा ख़तरा उन परजीवियों से है, जो इस तरह की किसी भी पोस्ट को समझे बगैर ही फॉरवर्ड करने के काम में जुटे हुए हैं। यह समाज में कटुता के अकल्पनीय प्रसार का काम कर रहा है, जिससे बचा जाना चाहिए। इस बचाव का मार्ग भागवत के इस सुझाव में छिपा है कि इस तरह के विषयों का निर्धारण अदालत के ऊपर ही छोड़ दिया जाए।

भागवत ने इसके साथ ही और जो भी कहा है, समाज तथा हालात की बेहतरी के लिहाज से सारे आग्रह-दुराग्रह छोड़कर उस पर भी अमल किया जाना चाहिए। संघ प्रमुख के इस कथन की सत्यता संदेह से परे है कि भारतीय मुसलमान मूलतः हिन्दू ही थे। इसलिए मंदिर-मस्जिद (mandir-maszid) के विवाद में यदि हिन्दुओं को ऐतिहासिक वास्तविकता स्वीकारना चाहिए तो यही काम मुस्लिमों (Muslims) को भी करना होगा। संघ प्रमुख के इस कथन को यह कहकर विस्तार दिया जा सकता है कि वह ऐसी अपेक्षा उन मुस्लिमों से कर रहे हैं, जिनके पुरखे उन अत्याचारों के गवाह रहे होंगे, जिनके चलते उन्हें हिन्दू धर्म त्याग कर मुस्लिम बनाना पड़ा और उसी दौर में उन्होंने कई मंदिरों को ध्वस्त होते या मस्जिद में परिवर्तित करते भी देखा ही होगा। मुग़ल आक्रांताओं के हिन्दू आस्थाओं एवं उपासना स्थलों पर हमलों की याद दिलाकर भागवत ने हिन्दू-भावनाओं के उद्वेलन को सही रूप में परिभाषित भी किया है ।

देश के नागरिकों के लिए कहा गया है कि आपके अधिकारों की सीमा वहां समाप्त हो जाती है, जहां से दूसरे की नाक शुरू होती है। इस तथ्य को किसी अहम तत्व की तरह देश की अवाम के लिए अनिवार्य करना आज की बड़ी जरूरत है। क्योंकि यह वह खतरनाक मोड़ है, जहां कोई मुस्लिम नेता हिन्दुओं को देश छोड़कर जाने की बात कहता है तो कोई हिन्दू हरेक मस्जिद गिराकर वहां मंदिर तलाशने की जरूरत बताता है। विषय पर विषवमन की स्थिति इतनी शोचनीय हो गयी है कि कोई हिन्दुओं के आराध्य शिवलिंग को ‘ये जो जगह-जगह लिंग दिखाए जा रहे हैं’ लिख रहा है तो कोई दूसरा मुस्लिमों के पवित्र शब्द खुदाई को ज्ञानवापी (Gyanvapi) की खुदाई से जोड़कर उपहास करने से नहीं चूक रहा। दोनों ही समुदायों में इस फितरत पर रोक लगाना आज की बहुत बड़ी जरूरत बन चुकी है। इसलिए भागवत के कहे और बताये से किसी भी किस्म की असहमति नहीं होना चाहिए। अदालत को अपना काम करने दीजिए। आस्था या अक़ीदत यदि उन्माद का रूप लेने लगी हैं, तो फिर ऐसे उन्मादियों पर हम और आप ही नियंत्रण कर सकते हैं। इनके खतरनाक विचारों के संचार का टूल मत बनें, आखिर यह आपकी भी वर्तमान और आने वाली पीढ़ी की सुरक्षा का मामला है।

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