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संघ में हैं, लेकिन क्या संघ के हैं राव?

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पी मुरलीधर राव (P Muralidhar Rao) निश्चित ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) में हैं, लेकिन क्या वह संघ के हैं? यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि दो दिन पहले राव ने भोपाल (Bhopal) में जो बात कही, वह संघ से विचार और कामों से बिलकुल उलटी है। ब्राह्मण (Brahmin) और बनियों (Banias) के भाजपा की जेब (BJP’s pocket) में होने वाला उनका बयान निहायत ही चौंकाने वाला है। संघ को जो लोग बेहतर तरीके से जानते हैं उन्हें पता है कि संघ विशुद्ध रूप से सामाजिक समरसता की दिशा में काम करता है। जातियों को तोड़ कर लोगों को हिन्दू होने का अहसास दिला कर ही संघ देश में एक बड़े राजनीतिक परिवर्तन का कारण बना है। हिन्दुओं (Hindus) को उसने जातियों में विभाजित नहीं किया है, बल्कि जातियों और अलग पहचान में बंटे लोगों को एक किया है। 2014 और 2019 में BJP को मिली विराट जीत केवल ब्राह्मण या बनियों के कारण नहीं थी। उसके पीछे हिन्दू समाज (Hindu society) का संयुक्त समर्थन था। वह समाज जिसमें अनुसूचित जाति (scheduled caste), जनजाति (tribe), अन्य पिछड़ा वर्ग (Other backward classes) सहित सभी वर्ग के सभी लोग शामिल हैं। ऐसे में फिर ये ब्राह्मण या बनियों वाली बात का भला क्या तुक है? क्या ये मुरलीधर राव का संघ से होने का अहंकार (Ego) बोल रहा है? क्या वह इस मिथ्याभिमान में चूर हैं कि यदि उन्हें संघ से भाजपा में काम करने के लिए भेजा गया है तो वह कुछ भी बोलने के लिए स्वतंत्र हैं?

मुरलीधर राव का ऐसा रुख नयी बात नहीं है। पूर्व में वह यह भी कह चुके हैं कि भाजपा के चार से पांच बार के चुने गए विधायक नालायक (MLA incompetent) हैं। शायद चुनाव की प्रक्रिया से राव का संबंध महज vote डालने तक ही रहा होगा, वरना राजनीति की जमीनी सचाईयों को अगर वे जानते तो शायद ऐसा नहीं कहते। चार से पांच बार का विधायक होना नालायकी नहीं, बल्कि लायक होने का प्रतीक है। कुछ अपवाद छोड़ दें तो शेष ऐसे सभी विधायक अपने परिश्रम, जनता के बीच अपने काम तथा नाम की वजह से चुनाव में जीतते हैं। जनता उन्हें नालायक होने की नहीं, बल्कि ‘नायक के लायक’ होने के चलते विजय दिलाती है। लेकिन मुरलीधर राव ने इस सर्वविदित फैक्टर को दरकिनार कर जो बात कह दी, वह उनके विवेक पर प्रश्नचिन्ह लगाने के लिए पर्याप्त है।

इस बात का एक और पक्ष गौरतलब है। राव दक्षिण भारत तेलंगाना राज्य (Telangana State) से आते हैं। देश का वह हिस्सा, जहां संघ का भले ही आधार है, किंतु भाजपा का अब तक वहां जनाधार नहीं बन सका है। गोविंदाचार्य (Govindacharya) से लेकर ओ राजगोपाल (Rajagopal), अरविन्द मेनन (Arvind Menon) तथा जना कृष्णमूर्ति (Jana Krishnamurthy) सहित अनेक नाम दक्षिण भारत (South India) के उन लोगों के हैं, जो भारी सक्रियता के बाद भी अपने-अपने अंचल में आज तक भाजपा को आवश्यकतानुसार जनाधार नहीं दिला पाए हैं। तो जो मुरलीधर राव अपने राज्य में भाजपा के लिए मददगार साबित नहीं हो सके, उन्हें ऐसा क्या लगा कि जहां भाजपा का मजबूत आधार है कि उस राज्य में वे ब्राह्मण और बनियों को लेकर ऐसी बचकानी बात कहें। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) वो राज्य हैं जहां संघ और भाजपा को उसके ढेरों नेताओं और कार्यकर्ताओं के माध्यम से देश में पार्टी का सबसे मजबूत गढ़ होने का गौरव हासिल है। राव का यह एक अहंकारी बयान (arrogant statement) आरएसएस और बीजेपी की देश के इस हिस्से में की गयी सारी मेहनत पर पानी फेर सकता है। ये कथन उन सभी ज्ञात-अज्ञात, दिवंगत तथा जीवित लोगों का अपमान है, जिन्होंने संघ के सामाजिक समरसता वाले लक्ष्य को उत्तर भारत में हासिल करने के लिए जीवन खपा दिया।

कांग्रेस (Congress) ने ये मुद्दा लपकने में कोई चूक नहीं की। एक विपक्षी राजनीतिक दल (opposition political party) के नाते उसे ऐसा करना भी चाहिए था। अब मुरलीधर राव सफाई दे रहे हैं। कमलनाथ (Kamalnath) की सोच पर उनकी आयु के अनुपात में सवाल उठा रहे हैं। यह बात और है कि खुद राव का यह दांव हिट विकेट की तरह उनके लिए ही घातक सिद्ध हो सकता है। राव भाजपा के प्रदेश प्रभारी का अहम जिम्मा संभाल रहे हैं। यदि उन्होंने इस काम को गंभीरता से किया होता तो वह साफ देख पाते कि उनके प्रभार वाले प्रदेश में वे शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री (Shivraj Singh Chouhan Chief Minister) हैं, जिन्होंने प्रदेश में भाजपा को एक नई पहचान दी है। कभी स्वाभाविक तौर पर ब्राह्मण और बनियों की पार्टी कही जाने वाली भाजपा को शिवराज ने अपने कामों से सर्वव्यापी और सर्वस्पर्शी स्वरूप दिया है। शिवराज ने अपनी सरकार की छवि गरीब, कमजोर वर्ग के प्रति संवेदनशील सरकार की बनाई है जो सभी जाति वर्गों के बीच समान रूप से लोकप्रिय हैं। बहुत संभव है कि प्रभारी पद के अहंकार में राव ऐसा कह गुजरे हों। लेकिन संघ तो ऐसे किसी मुगालते की अनुमति देता नहीं है, तो फिर ऐसा कैसे हो गया? इसीलिए एक बार फिर सवाल उठता है कि राव संघ में तो हैं, लेकिन क्या वे संघ के हैं?

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