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किताब लिखकर कांग्रेस से हिसाब-किताब चुकता किया सलमान ने ?

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सलमान खुर्शीद (Salman Khurshid) ने कांग्रेस (congress) में अपनी ही तरह से ‘चुके हुए कारतूसों’ को तगड़े धमाके करने का रास्ता सुझा दिया है। अपनी किताब ‘सनराइज ओवर अयोध्या’ (Sunrise Over Ayodhya) में हिंदुत्व (Hindutva) के लिए कांग्रेस नेता और पूर्व विदेश मंत्री (Ex Minister of External Affairs) सलमान खुर्शीद ने जो भी लिखा, वह भाजपा (BJP) या संघ (RSS) की बजाय कांग्रेस के लिए ही मुसीबत का सबब बनेगा। संघ या भाजपा को तो उलटा इससे लाभ ही होगा। खुर्शीद की लेखनी ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव (Assembly Election of Uttar Pradesh) में कांग्रेस की तकदीर में कई दुखों की इबारत लिख दी है। भगवा आतंक (saffron terror) के पैरोकार दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) और पी चिदम्बरम (P Chidambaram) ने भी सलमान के लिखे की व्याख्या करते हुए एक तरह से खुर्शीद को अपना समर्थन दिया है। इस किताब के विमोचन के मौके पर इन दोनों नेताओं ने कहा कि हिंदुत्व का हिन्दू धर्म (Hindu religion and Hindutva) और सनातन परम्पराओं से कोई लेना देना नहीं है। पता नहीं यह दिग्विजय सिंह को याद है या नहीं कि सिंधु नदी (Indus river) के पार रहने वाले को हिन्दू नाम मध्य एशिया के ही इस्लाम (Islam of Middle East) के अनुयायियों ने दिया है। सिंधू नदी के इस पार रहने वाले तो सनातन परम्पराओं को ही मानते थे और यही शायद इस्लामी शासन काल में हिन्दू धर्म हो गया। आरएसएस की अवधारणा में तो हिन्दूत्व धर्म है ही नहीं, एक जीवन शैली (Hindutva as a Lifestyle) है, एक संस्कृति (Culture) है।

तो खुर्शीद की किताब में हिंदुत्व की तुलना बोको हरम (Boko Haram) और आईएसआईएस (ISIS) से करने वाली धारणा सुन पढ़ कर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का वह यज्ञोपवीत भी कांप उठा होगा, जो काफी लंबे समय से नजर नहीं आ सका है। इस किताब को लेकर मचे बवाल ने प्रियंका वाड्रा (Priyanka Vadra) की उन बेजान तस्वीरों में भी सिहरन दौड़ा दी होगी, जिनमें वह कभी गंगा स्नान (Holy dip in Ganges) तो कहीं किसी मंदिर (Priyanka Vadra in Temple) में पूजा करती दिख जाती हैं। हाल ही में सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) की एक तस्वीर देखी थी, जिसमें वह राम और लक्ष्मण (Rama and Lakshman)  के प्रतीक बने दो लोगों का तिलक कर रही थीं। खुर्शीद की ताजा ‘करतूत’ के बाद श्रीमती गांधी के यही हाथ गुस्से में कसमसा रहे होंगे। क्योंकि Congress के इस अल्पसंख्यक नेता  (minority leader) ने अपने दल के सॉफ्ट हिंदुत्व (soft hindutva) की धज्जियां उड़ाने का काम कर दिया है। वह सॉफ्ट हिंदुत्व, जिसकी दम पर सोनिया से लेकर राहुल और प्रियंका उत्तर प्रदेश चुनाव में आगे बढ़ने की कोशिश में जुटे हुए हैं। निश्चित ही कांग्रेस को अब उत्तर प्रदेश में खुर्शीद के लिखे की प्रतिक्रिया में हिंदू वोट के भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण (Polarisation of Hindu Votes in favour of BJP)  का डर सताने लगा होगा। भाजपा को तो खैर  यह सुनहरा मौका मिल ही गया है।

खुर्शीद ने भी शायद यही सारे संभावित नतीजे दिमाग में रखकर इस किताब को रचा होगा। मामला गुस्से वाला हो सकता है। खुर्शीद अपनी पत्नी के NGO को लेकर बुरी तरह उलझे थे। फिर राज्यसभा (Rajya sabha the Upper House of Indian parliament) से रुखसती के दौर में दिए गए अपने बयान को लेकर भी वह जमकर विवाद में रहे। अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University) (AMU) में एक छात्र के सवाल को लेकर भी उनकी काफी छीछालेदर हुई थी। ऐसे तमाम मौकों पर खुर्शीद अकेले ही पड़ गए। कांग्रेस ने उनके बचाव की कोई कोशिश नहीं की। उन्हें एक तरीके से उनके ही हाल पर छोड़ दिया। तो क्या हिंदुत्व को इस्लामी आतंक (Islamic Terror) के बराबर खड़ा करके खुर्शीद ने कांग्रेस के अपने साथ हुए ‘असहयोग आंदोलन’ (Non-Cooperation Movement) का बदला चुकाने की कोशिश की है?

जिन लोगों ने Congress में एचकेएल भगत (HKL Bhagat), जगदीश टाइटलर (Jagdish Tytler) और सज्जन कुमार (Sajjan Kumar) का रुआब वाला दौर देखा है, वह यह भी जानते ही होंगे कि इन सभी को किस तरह कांग्रेस ने ही हाशिये पर धकेल दिया था। ये तीनों चेहरे 1984 के सिख नरसंहार (1984 Sikh Massacre) के समय कांग्रेस के लिए सहानुभूति लहर के संवाहक बने। फिर उन्हें यूज एंड थ्रो (Use and Throw) वाली शैली में पार्टी के भीतर ही त्याज्य वाली अपमानजनक स्थिति में ला दिया गया। ऐसा इसलिए हुआ कि नरसंहार के बाद कांग्रेस को इस दाग से निजात पाना थी। इसलिए पंजे को बेदाग दिखाने की गरज से भगत, टाइटलर और कुमार जैसे खून से सने नाखूनों को काट फेंका गया। यही खुर्शीद के साथ हुआ।

कांग्रेस ने अपनी तुष्टिकरण वाली राजनीति (Appeasement Policitcs) की खुराक के लिए खुर्शीद का जमकर इस्तेमाल किया। जब इसकी प्रतिक्रिया में हिंदू गोलबंद होकर भाजपा (BJP) की तरफ चले गए तो कांग्रेस को सॉफ्ट हिंदुत्व की तलब लगी और खुर्शीद  जैसे चेहरों से उसे परहेज हो गया। अंतर केवल यह रहा कि भगत, टाइटलर औरकुमार   की तरह खुर्शीद चुप नहीं बैठे और अपनी कलम से उन्होंने पार्टी की उत्तर प्रदेश में बची-खुची संभावनाओं को भी  क़लम करने का काम कर दिया है। सलमान खुर्शीद इससे पहले तक आमतौर पर हिंदू या हिंदुत्व के खिलाफ सीधे बोलने से बचते रहे हैं। हां, अपने समुदाय के लिए उनकी चिंता का प्रकटीकरण कुछ इस शैली में होता रहा कि वह विवाद में आ गए। लेकिन अब खुर्शीद ने जिस तरह खुलकर हिंदुत्व की अवधारणा (Concept of Hindutva) को टारगेट (Target) किया है, वह उनके ‘मैं इन्तकाम लूंगा’ वाले तेवर दिखा रहे हैं। क्या हिंदुत्व वाले संगठनों की गुड बुक (Good Book) में अब दिग्विजय सिंह के साथ ही सलमान खुर्शीद का भी नाम लिख लिया गया होगा, या इसके लिए उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजों तक इंतजार किया जाएगा?

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