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यूपी में कांग्रेस का यह रोचक प्रयोग

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इसे निश्चित ही पीड़ा और उसके विरुद्ध संघर्ष को महत्व देने का मामला कहा जा सकता है। उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) में कांग्रेस (Congress) ने पचास टिकट ऐसी महिलाओं को दिए हैं, जिन्होंने अत्याचार भोगे और उसके विरुद्ध आवाज उठाई है। इनमें उन्नाव (Unnao) में दुष्कर्म के आरोपी (rape accused) भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर (Former BJP MLA Kuldeep Singh Sengar) को जेल भिजवाने वाली बलात्कार पीड़िता की मां आशा सिंह (Asha Singh) भी शामिल है। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने कल सोशल मीडिया (social media) पर ऐसे प्रयोग की सफलता की कामना करते हुए उत्तरप्रदेश में इसके जरिये भाजपा के सफाये की भविष्यवाणी भी कर दी। कांग्रेस का दुर्भाग्य कि इस प्रयास में गांधी बुरी तरह ट्रोल भी हुए।

इसके दो कारण प्रमुख हैं। गांधी को अब गंभीरता से नहीं लिया जाता और उन पर यह तोहमत लग गयी कि पीड़िताओं की बात करते समय उन्होंने राजस्थान के अलवर (Alwar of Rajasthan) में हुए जघन्य दुष्कर्म काण्ड (dushkarm kand) को नजरंदाज कर दिया। लेकिन प्रियंका वाड्रा (Priyanka Vadra) को गंभीरता से लिया जा रहा है। उन्होंने पीड़िताओं के माध्यम से एक बड़ा प्रयोग किया है। सवाल यह कि इसके परिणाम क्या होंगे? हर राजनीतिक दल उन उम्मीदवारों को प्राथमिकता देता है, जिनके जीतने की पूरी संभावना हो। लाख आदर्शों की दुहाई दे दी जाए, लेकिन इकाई से लेकर दहाई तक उम्मीदवारों की फेहरिस्त में धन और बाहुबल के धनी लोगों का ही कब्जा रहता है। क्योंकि वे जीतने की गारंटी वाले चेहरे होते हैं। भाजपा (BJP) से लेकर कांग्रेस (Congress), सपा (SP), बसपा (BSP), आरजेडी (RJD) और तृणमूल कांग्रेस (TMC) सहित कोई भी दल इस बीमारी से अछूता नहीं रहा है।

ऐसे में इन महिलाओं में जीत का कितना पोटेंशियल (Potential) है, यह विश्लेषण बहुत जरूरी हो जाता है। फिर उत्तरप्रदेश तो वह राज्य है, जहां धर्म, जाति, समुदाय और क्षेत्र के आगे बाकी सारी योग्यताएं पानी भरती हैं। वहां के ठेठ शहरी क्षेत्र भी इस फैक्टर से प्रभावित रहते हैं। तो ये महिलाएं या अन्याय के खिलाफ चेहरा बने कांग्रेस के ये उम्मीदवार अपने राज्य में जीत के बहुत बड़े इन आधारों की पायदान पर कहां और कितनी मजबूती से टिक पाएंगे? सहानुभूति या संवेदना का लाभ भी उनकी लहर चलने पर ही मिल पाता है। ऐसे में यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक और नेतृत्व वाले अनुभव के लिहाज से कुछ तंग स्थिति से गुजर रही ये महिलाएं किस तरह जीत का आधार बना सकेंगी?

बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इस राज्य में केवल सात सीट मिल सकीं थी। उसका वोट प्रतिशत छह रहा। वो भी तब जब कांग्रेस का गठबंधन समाजवादी पार्टी (SP) से था। जो दल दोनों ही आंकड़ों में दहाई तक भी नहीं पहुंच सका, उस दल को अब इस नए प्रयोग से आस दिख रही है। मगर किस बात से और कैसी आस? दरअसल एक सच यह भी है कि कांग्रेस के पास किसी समय के अपने गढ़ उत्तरप्रदेश में योग्य उम्मीदवारों का टोटा हो गया है। उसके पास इस चुनाव में जमीन पर खोने के लिए कुछ भी नहीं है। इसलिए विवशता में उसने एक कदम उठाया लगता है। यद्यपि यह भी सही है कि इस राज्य की ऐसी विपरीत परिस्थितियों में कांग्रेस के लिए इससे बेहतर निर्णय भी और कोई नहीं हो सकता था।

BJP को घेरने के हिसाब से कांग्रेस की यह रणनीति तारीफ के काबिल है, लेकिन एक फैक्टर और भी रोचक है। कांग्रेस (Congress)इस प्रदेश में जितनी अधिक ताकत से चुनाव लड़ेगी, उसी अनुपात में वह भाजपा को लाभ पहुंचाएगी। क्योंकि आज की तारीख में कांग्रेस की तारीफ यह नहीं कि वह उत्तरप्रदेश में BJP का विकल्प बन गयी है, बल्कि उसकी पहचान केवल वोटकटवा दल की ही हो सकती है। जो वोट कांग्रेस काट सकती है, वह सपा और बसपा के ही होंगे। भाजपा के कमिटेड वोटर (committed voter) को अपनी तरफ खींचना कम से कम कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा।

मुस्लिम वोटर (Muslim Voters) थोकबंद रूप से यहां समाजवादी पार्टी को ही वोट देंगे। क्योंकि अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने स्वयं को भाजपा को जबरदस्त टक्कर देने लायक साबित कर दिया है। और मुस्लिम मतदाता उसे ही अपना समर्थन देगा जो भाजपा को हरा सके। ऐसी उम्मीद अभी कांग्रेस से करना बेमानी होगा। बचे वोट का विभाजन प्रमुख रूप से भाजपा, सपा और फिर बसपा और अंत में कांग्रेस के बीच होगा। इस छन्नी में कांग्रेस के हाथ वही आएगा, जो SP और BSP से फिसलेगा। जाहिर है कि इसका लाभ भाजपा को ही मिलेगा।

याद कीजिये कि पश्चिम बंगाल (West Bengal) में भी कांग्रेस की यही स्थिति थी। तब भाजपा को कमजोर करने के लिए उसने स्वयं को कमजोर करने से गुरेज नहीं किया। एक भी सीट न जीतते हुए कांग्रेस ने TMC के सामने घुटने तक दिए, ताकि उस राज्य में भाजपा को अपने पांवों पर खड़े होने से रोका जा सके। लेकिन उत्तरप्रदेश में कांग्रेस ऐसा करती नहीं दिख रही। तो क्या प्रियंका वाड्रा को वास्तव में यहां कांग्रेस की सरकार बन जाने की उम्मीद है? या फिर वह येन केन प्रकारेण इतनी सीट हासिल करना चाह रही हैं कि सरकार बनाने के लिए सपा या बसपा को कांग्रेस के आगे घुटने टेकने पड़ जाएं? फिलहाल दोनों ही सवालों के उत्तर बिल्कुल साफ तौर पर ‘नहीं’ में हैं। इसलिए नतीजे के दिन यह देखना रोचक हो होगा कि प्रियंका वाड्रा इस सब कवायद के बाद कांग्रेस, उत्तरप्रदेश और देश की राजनीति में किस हैसियत में होंगी। नतीजा जो हो कांग्रेस में तो उनकी हैसियत पर क्या फर्क पड़ना है।

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