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संभलिए सूर्यांश के ऐसे अंत से

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भोपाल (Bhopal) में ग्यारह साल के बच्चे की आत्महत्या (suicide) ने झकझोर कर रख दिया। पांचवी कक्षा (fifth standard) में पढ़ने वाले सूर्यांश (Suryansh) के इस अंत के एक-एक अंश की पड़ताल आज की सबसे बड़ी जरूरत है। आखिर कैसे कोई ऑनलाइन खेल (Online Games) भावनात्मक रूप से इतना घातक असर कर सकता है कि कोई अपनी जान दे दें? देखा जाए तो इंटरनेट क्रांति (intaranet kranti) ने हमें गुलामी की जंजीरों (gulami kee janjiron) में जकड़ लिया है।

वो हाहाकारी दौर सभी को याद होगा, जब ब्लू व्हेल (blue whale) की दीवानगी के काले सागर में कई बच्चे और युवा अपने जीवन से खेल गए थे। टेम्पल रन (Temple Run) सहित और भी कई ऐसे गेम सामने आ चुके हैं, जो किसी चुनौती या अपने नशे के चलते लोगों के मन और मस्तिष्क (mind and brain) पर खतरनाक रूप से काबिज हो जाते हैं। समस्या सुरसा के मुंह की तरह है। व्यवस्था ऐसे एक खेल पर रोक लगाती और दन्न से दूसरा खेल हाजिर कर दिया जाता है। ऑनलाइन वाले बाजार के व्यभिचार का अब कोई अंत नजर नहीं आता। तब तक, जब तक कि हम अपने-अपने स्तर पर इस बीमारी की रोकथाम के लिए सच्चे प्रयास नहीं करेंगे।

बाजार तो लगभग हमेशा से ही अनाचार का अड्डा बना रहा है। वहां हर कीमत पर मुनाफा सर्वोपरि होता है। इससे हम ग्राहकों को ही बचना होगा। क्या हम इसके लिए तैयार हैं? केवल ‘हां’ में जवाब देने से काम नहीं चलने वाला है। क्योंकि इसके लिए हम सभी को एक ‘ना’ को स्वयं और अपने परिवार के लिए किसी सख्त अनुशासन की तरह अपनाना होगा। शुरुआत खुद से कीजिए। इंटरनेट के मकड़जाल में यदि आप खुद ही उलझे रहने में सुख महसूस करेंगे, तो फिर अपने बच्चों को भला कैसे इसके प्रभाव से बचा सकेंगे?

किसी भी घर में झांक लीजिए। वहां आपको ऑनलाइन के अलग-अलग परजीवी संसार और कु-संस्कार दिख जाएंगे। माता-पिता अपने-अपने मोबाइल/लैपटॉप/कंप्यूटर (Mobile/Laptop/Computer) में शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन घुसाए देख सकते हैं। परिवार के बच्चे भी इसी तरह की दुनिया के दलदल में धंसे हुए मिल जाएंगे। मैं उस दिन हैरत में था, जब मेरे एक परिचित ने बताया कि उनकी बेटी और बेटे के बीच आपसी संवाद व्हाट्सएप (Whatsapp) के जरिये ही होता है। ऐसा नहीं कि बच्चे अलग-अलग रहते हों, मामला एक ही छत के नीचे निवास करने का था। लेकिन क्योंकि भाई-बहन सारा दिन अपने-अपने सिस्टम पर मसरूफ रहते हैं, इसलिए अब इसी के माध्यम से उनका संवाद भी होता है। वह सज्जन यह बताते समय गर्व से फूले नहीं समा रहे थे और मैं यह सुनकर सन्न था।

आज मैं ये कामना कर रहा हूं कि दो नाबालिग बच्चों के वह पिता सूर्यांश की खबर पढ़ने के बाद अपने गर्व को बिसराकर उस फर्ज को याद कर लें, जो निभाते हुए उन्हें तुरंत अपने बच्चों (children) को इस वर्चुअल दुनिया से बाहर खींचना चाहिए। यह हम सभी की आवश्यकता है। क्योंकि यह उस सामाजिक और मानसिक विखंडन का मामला है, जो अब बेहद संजीदा रूप ले चुका है। खुद मीठा खाना छोड़ने के बाद ही इस के लिए किसी को हिदायत दी जा सकती है। ऐसा ही यहां भी है। माता-पिता सहित परिवार के अन्य बड़े जब तक स्वयं को इस ऑनलाइन नशे से दूर नहीं करेंगे, तब तक समाज के इस नाश को रोका जाना असंभव है।

इसके लिए सरकार से उम्मीद बेमानी है। वह एक खेल रोक सकती हैं, लेकिन आपके बच्चों का इस खतरनाक दुनिया से मेल तो आपको ही रोकना होगा। आप क्यों नहीं बच्चों को आउटडोर खेल (outdoor games) के लिए प्रोत्साहित करते हैं? आखिर ये आप खुद ही तो हैं, जिन्होंने बच्चों को फ़ोन या कंप्यूटर सहित इस तरह के वो संसाधन उपलब्ध करवाए हैं, जो सूर्यांश से लेकर उससे काफी पहले तक अपने दुष्परिणाम से हम सभी को दहला चुके हैं। वर्चुअल दुनिया (virtual world) के इस एक्चुअल संकट को समझिये। हम उस समाज का निर्माण कर रहे हैं, जिसमें आने वाली पीढ़ी स्क्रीन की लत में लिपटी हुई होगी। जो अपने साथ-साथ दूसरों की जान जाने को भी किसी खेल से अधिक अहमियत नहीं देगी।

हम सभी को इस बात पर नजर रखनी होगी कि हमारी औलाद ऑनलाइन क्या देख और खेल रही है? मनोविज्ञानी लगातार बताते हैं कि यदि इंटरनेट के शौक़ीन बच्चों में चिड़चिड़ाहट, अकेलापन या किसी अन्य दुनिया में खोये रहने के लक्षण दिखें, तो तुरंत सतर्क हो जाइए। लेकिन हम में से कितने लोग हैं, जो इस तरह की बात पर ध्यान देते हैं? हम तो बस ‘मेरा बच्चा कभी भी ऐसा नहीं कर सकता’ कहकर वास्तविकता के रेगिस्तान (registan) में शुतुरमुर्ग (shuturamurg) की तरह गर्दन घुसा देते हैं। इंदौर में बीते दिनों वीडियो बनाने के शौक़ीन एक नाबालिग की खुद को फांसी लगाते हुए जान चली गयी थी। परिवार वाले जानते थे कि ऐसे वीडियो (Video) के फेर में उनका बच्चा खतरनाक तरीके से जोखिम उठाता रहता है। उसे रोका नहीं गया और फिर वह हो गया, जो कोई भी नहीं रोक सका।

सूर्यांश के करुण अंत से सबक लीजिये। मैं किसी भी बच्चे के अमंगल की कामना नहीं कर रहा, लेकिन यह उस मंगल की कामना है, जिसमें हम सभी की संतान ऐसे खतरनाक नशे से चंगुल से बाहर लाई जा सके। ऑनलाइन वाले बाजार पर पत्थर दिल समुदाय का कब्जा है। किसी सूर्यांश की मृत्यु उनके लिए अपने खेल की लोकप्रियता को भुनाने का निमित्त मात्र होती है। दुखद रूप से ऐसे हालात के जिम्मेदार भी हम ही हैं और हमें ही अब एक पूरी पीढ़ी की हिफाजत के लिए आगे आना होगा। इससे पहले कि और कोई सूर्यांश जीवन में आगे उस मोड़ पर चला जाए, जहां से वापस आने का फिर कोई रास्ता नहीं होता है।

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