निहितार्थ

आपका छाता और शिवराज का और छाता प्रभाव

भाजपा संसदीय बोर्ड (BJP Parliamentary Board) और केन्द्रीय चुनाव समिति (central election committee) की नई जारी सूची में मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) और केन्द्रीय परिवहन मंत्री नीतिन गडकरी (Nitin Gadkari) की गैरमौजूदगी पर कयासबाजी का दौर शुरू हो गया है। खासकर शिवराज सिंह चौहान के लिए तो चौथी बार मध्यप्रदेश की सत्ता संभालते ही शुरू हुआ कयासबाजियों का दौर आज तक जारी है। BJP में हुए नए परिवर्तनों ने इसे और जोर दे दिया है। यहां एक लतीफा याद आ रहा है। एक ज्योतिषी ने महिला से कहा कि आने वाले छह महीने में उसके पति की मौत हो जाएगी। महिला बोली कि उसका पति तो दो साल पहले ही गुजर चुका। फिर ज्योतिषी (Astrologer) ने महिला से छह महीने में उसके पिता, बड़े भाई, जेठ और मां के मरने की बात बताई। लेकिन महिला ने बताया कि इस सब की भी पहले ही मृत्यु हो चुकी है। तब ज्योतिषी ने कहा कि आने वाले छह महीने में उस महिला का छाता गुम जाना तय है।

इस ज्योतिषी जैसी हालत ही उन तमाम स्वयंभू राजनीतिक पंडितों की है, जो गए लंबे समय से रह-रह कर इन कयासबाजियों को जोर देते रहे हैं कि शिवराज की कुर्सी बस अब गई तब गई। लेकिन हर बार इस ज्योतिषी की ही तरह उनका दावा फुस्स हो जाता है। और अभी दो दिन पहले ही शिवराज ने लाल परेड मैदान (lal parade ground) में भरी बरसात में सलामी लेते हुए कहा ही था कि मामा कोई मिट्टी का बना तो है नहीं जो गल जाएगा। तो आज हुए परिवर्तन का मामला भी बस छाता गुम जाने वाला जैसा ही है। भाजपा संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति से शिवराज की विदाई को लेकर फिर इन विद्वानों का ज्ञान उनके श्रीमुख से छलकने लगा है। वे फिर कहने लगे हैं कि शिवराज की छुट्टी बस अब तय है। उनकी बात में यह दलील छिपी हुई है कि संसदीय बोर्ड तथा चुनाव समिति से चौहान को बाहर किया जाना यह बताता है कि पार्टी में उनकी ताकत अब कमजोर हो गई है।

पहली गौर करने वाली बात यह कि इस बोर्ड में अब किसी भी मुख्यमंत्री को नहीं रखा गया है। बल्कि भाजपा की इस सबसे शक्तिशाली इकाई में ‘एडजस्टमेंट’ पर अधिक जोर दिखता है। बीएस येदियुरप्पा (BS Yediyurappa) को बोर्ड में रखना इस बात का प्रतीक है कि पार्टी कर्नाटक (Karnataka) में उनके असंतोष को कम कर राज्य विधानसभा चुनाव में उनकी पकड़ और अनुभव का पूरा लाभ लेना चाहती है। सवार्नंद सोनोवाल (savarnand sonowal) को असम (Assam) में मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद केन्द्र में मंत्री बनाना और अब इस बोर्ड में लाने का कारण आने वाले समय में पूर्वोतर के राज्यों में होने वाले चुनाव हैं। मध्यप्रदेश से सत्यनारायण जटिया (Satyanarayan Jatiya) को लाकर अनुसूचित जाति वर्ग (SC Category) को प्रतिनिधित्व दिया गया है। लंबे समय से थावरचंद गेहलोत (Thaawarchand Gehlot) यहां मौजूद थे, वे अब राज्यपाल हैं। देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) को चुनाव समिति में लाकर उन्हें महाराष्ट्र (Maharashtra) में भाजपा की सत्ता में वापसी तथा मुख्यमंत्री पद के समर्पण का पुरस्कार दिया गया है। इसके अलावा तथ्य यह भी है कि शिवराज 2013 से लगातार संसदीय बोर्ड के मेंबर थे। इस दौरान भाजपा का शायद ही कोई और मुख्यमंत्री संसदीय बोर्ड में शामिल हुआ। उत्तरप्रदेश के कद्दावर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक नहीं।

सवाल सहज है कि शिवराज को बोर्ड से क्यों बाहर किया गया? जवाब भी सहज है कि ऐसा कर भाजपा ने यह जता दिया है कि मध्यप्रदेश में अगले साल संभावित विधानसभा चुनाव के लिए वह शिवराज की क्षमताओं पर ही भरोसा कर रही है। उन्हें बोर्ड से मुक्त कर विधानसभा चुनाव के साथ तसल्ली से काम करने का अवसर दिया गया है। सच तो यह है कि भाजपा के पुरस्कार और दुत्कार, दोनों के निहितार्थ को समझना आसान नहीं है। यह पार्टी इसलिए बाकी दलों से बहुत आगे है कि वह बहुत दूर की सोचकर बहुत सधे हुए तरीके से कदम उठाती है और उसके नतीजे प्राय: पार्टी के पक्ष में तथा शेष लोगों को चौंका देने वाले होते हैं। एक उदाहरण से इसे समझा जा सकता है। जिस समय कश्मीर में भाजपा ने PDP से हाथ मिलाया, तब इस दल की घोर आलोचना की गयी थी। लेकिन उस सरकार के जरिए पार्टी ने घाटी में पहली बार अपनी जड़ें मजबूत की और फिर एक झटके में अनुच्छेद 370 (Article 370) को वहां से जड़ सहित उखाड़ फेंका। किस परिस्थिति को कब, किस तरह तथा किस उद्देश्य से अपने पक्ष में मोड़ने की शुरूआत करना है, भाजपा इसे बहुत अच्छे से समझती है। आरएसएस से मिले संगठन के तौर तरीके इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

यह तय मानिए कि इस घटनाक्रम से शिवराज की राजनीतिक सेहत पर कोई विपरीत असर नहीं होना है। यही बात इन तब्दीलियों के सन्दर्भ में नितिन गडकरी पर भी लागू होती है। फिल्म ‘शौर्य’ में सेना का एक अफसर अपने अधीनस्थ को जान जोखिम में डालने वाली जगह जाने को कहता है। अधीनस्थ डरता हुआ आगे बढ़ता है। लेकिन खतरे वाली जगह पर पहुंचने से पहले ही अफसर उसे वापस बुलाता है। फिर कहता है कि अधीनस्थ को कभी भी उसके निर्णय पर संदेह नहीं करना चाहिए। यही स्थिति भाजपा में है। कांग्रेस (Congress) में नाराज गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) ने जम्मू-कश्मीर में प्रचार समिति का प्रमुख बनने से इंकार कर दिया। लेकिन भाजपा में केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देने वाले मुख़्तार अब्बास नकवी (Mukhtar Abbas Naqvi) शांत हैं। तब भी, जब कि ये चर्चा भी निर्मूल साबित हुई कि नकवी को उप राष्ट्रपति बनाया जा सकता है।

केंद्रीय मंत्री पद से ही हटाए गए शाहनवाज हुसैन (Shahnawaz Hussain) को अब चुनाव समिति से भी हटा दिया गया है। वे अब बिहार मंत्रिमंत्रिमंडल में भी नहीं है। लेकिन आप पाएंगे कि हुसैन से इस पर शांत ही रहेंगे। वे और नकवी इस बात से सोदाहरण अवगत हैं कि यह उस दल का मामला है, जो सक्षम लोगों को दो कदम आगे बढ़ाने के लिए एक कदम पीछे भी ला सकता है। बहरहाल, आपका अधिकार है कि अपनी दलीलों की न गलती दाल को छाता गुम जाने वाला जामा पहना दें। लेकिन शिवराज ने अपने काम और लोकप्रियता से यह अधिकार हासिल कर लिया है कि कम से कम आगामी विधानसभा चुनाव संपन्न होने से पहले तक तो पार्टी उन्हें CM पद से हटाने का जोखिम लेने से रही। आपका छाता आकाशकुसुम है तथा शिवराज का लगातार और छाता प्रभाव इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि तथाकथित राजनीतिक पंडित उनके राजयोग का अनुमान लगाने में न सफल हुए थे और न ही आने वाले लंबे समय तक उनकी सफलता की उम्मीद है।

प्रकाश भटनागर

मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में प्रकाश भटनागर का नाम खासा जाना पहचाना है। करीब तीन दशक प्रिंट मीडिया में गुजारने के बाद इस समय वे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश में प्रसारित अनादि टीवी में एडिटर इन चीफ के तौर पर काम कर रहे हैं। इससे पहले वे दैनिक देशबंधु, रायपुर, भोपाल, दैनिक भास्कर भोपाल, दैनिक जागरण, भोपाल सहित कई अन्य अखबारों में काम कर चुके हैं। एलएनसीटी समूह के अखबार एलएन स्टार में भी संपादक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। प्रकाश भटनागर को उनकी तल्ख राजनीतिक टिप्पणियों के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है।

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