कई बार यह अहसास गाढ़ा होने लगता है कि यह संगठित विचारधारा वाले असंगठित गिरोह के विस्तार का समय है। उनके निशाने पर हिंदू हैं। हिंदुत्व की बात करने वाले हैं। हिंदू धर्म है। उसकी मान्यताएं हैं। इसलिए कर्नाटक में कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष सतीश जर्किहोली जब कहते हैं कि ‘हिंदू’ शब्द का फारसी अर्थ ओछा है, तो समझ आता है कि यह एक खास एजेंडे को आगे बढ़ाने का जतन है। जर्किहोली यदि कुछ और भाषाओं में ‘सतीश’ शब्द का अर्थ तलाशें तो मुमकिन है कि उसका भी किसी जगह वह अर्थ हो, जिसे पढ़कर वह अपना नाम बदलने की बात सोचने लगें। क्योंकि यह उस संसार की बात है, जहां पग-पग पर भाषाएं और उनके अर्थ बदलते जाते हैं। कर्नाटक के मल्लिकार्जुन खड़गे को अभी कांग्रेस अध्यक्ष बने जुम्मा जुम्मा चार भी नहीं हुए हैं और हिन्दू शब्द के अर्थ वहीं से तलाशे जाने शुरू हो गए।
क्या किसी शाब्दिक अर्थ मात्र के आधार पर किसी को करोड़ों लोगों की आस्था और धार्मिक भावना से खेलने का अधिकार मिल जाता है? जर्किहोली वाल्मीकि समुदाय से हैं। उनका परिवार 148 करोड़ रुपए से अधिक संपत्ति का मालिक है। वह खानदानी राजनीतिज्ञ हैं। गुस्सैल इतने कि मनमाफिक तरीके से काम न करने देने का आरोप लगाकर तत्कालीन कांग्रेस सरकारों से दो बार मंत्री पद से त्यागपत्र भी दे चुके हैं। यह कई बार होता है कि इंसान किसी विडंबना वाले तत्व के चलते अपनी मूल पहचान के प्रति नफरत से भर जाए।
फिल्म ‘नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे’ में प्रतिष्ठित मुस्लिम चरित्र ‘हज्जाम’ तो दूर, ‘कैंची-कंघी’ शब्द सुनकर भी बिदक जाता था। क्योंकि पहले वह हज्जाम का काम करता था और लॉटरी लगने के बाद यह पेशा छोड़कर मुस्लिम बन जाता है। लेकिन अपने मूल के सामने आने की आशंका के चलते उसके प्रति पूरा समय नफरत से भरा रहता है। जर्किहोली के साथ ऐसा कुछ है या नहीं, ये तो वह खुद ही बेहतर जानते होंगे, लेकिन जो कुछ उन्होंने कहा, उससे लगता है कि कुछ तो है, जो उन्हें अपने धर्म के इस तरह अपमान का उकसावा दे रहा है। खैर, यह भी बता दिया जाए कि उन्होंने यह बात ऐसे समय कही है, जब कर्नाटक में विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं और अपने शासनकाल में भाजपा ने वहां टीपू सुल्तान से लेकर कुछ अन्य मामलों में ऐसे कदम उठाए हैं, जो इतिहास की गलत व्याख्या को सुधारने की कोशिश कहे जा रहे हैं। इस्लाम और फारसी के अस्तित्व में आने के हजारों साल पहले वेदों और संस्कृत में हिन्दू शब्द आया है। बृहस्पति आगम में कहा गया है,
ॐकार मूलमंत्राढ्य: पुनर्जन्म दृढ़ाशय:
गोभक्तो भारतगुरु: हिन्दुर्हिंसनदूषक:।
हिंसया दूयते चित्तं तेन हिन्दुरितीरित:।इसका मतलब है, ऊंकार जिसका मूल मंत्र है, पुनर्जन्म में जिसकी दृढ़ आस्था है, भारत ने जिसका प्रवर्तन किया है तथा हिंसा की जो निंदा करता है, वह हिन्दू है। फारसी में हिन्दू का क्या मतलब निकलता है, यह इस भाषा और इस भाषा को मानने वाले धर्म का दूसरे धर्मों के प्रति धृणा का दृष्टिकोण है।
जर्किहोली ने अपने द्वारा स्थापित संगठन एमबीवी के कार्यक्रम में यह बात कही। यह संगठन गौतम बुद्ध, श्री बसवन्ना तथा अम्बेडकर जी की विचारधारा के प्रसार के उद्देश्य से गठित किया गया है। तो कुल मिलाकर मामला कुछ ऐसा ही हो गया है, जैसे दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार के तत्कालीन मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने हाल ही में बौद्ध समाज के कार्यक्रम में हिंदू देवी-देवताओं को न मानने की शपथ ली थी। इसके बाद पाल मंत्रिमंडल से बाहर हो गए। वैसे तो कांग्रेस ने अपने नेता के इस बयान को ‘दुर्भाग्यजनक’ करार दे दिया है। रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इसकी निंदा भी की है। दुर्भाग्य को उतारने के अपने-अपने टोटके होते हैं। तो क्या कांग्रेस कुछ ऐसा करेगी, जिससे लगे कि वाकई वह जर्किहोली से असहमत है? वैसे इसकी उम्मीद कम ही है। क्योंकि यह वह कांग्रेस है, जिसने भगवान राम को ‘काल्पनिक’ देश के प्रधानमंत्री को ‘नीच’ और सेना के प्रमुख को ‘सड़क छाप गुंडा’ कहने वाले अपने सभी नेताओं को कार्यवाही से अछूता रखा। यहां तक कि पाकिस्तान जाकर आतंकी संगठनों से नरेंद्र मोदी की सरकार हटाने की गुहार लगाने वाले भी आज तक इस दल के मुकुट में सुरक्षित रूप से चमक रहे हैं।
रिटायर्ड आईएएस अफसर मनोज श्रीवास्तव की एक ताजा पोस्ट सोशल मीडिया पर ध्यान खींच रही है। किसी व्यक्ति विशेष का उल्लेख किए बगैर श्रीवास्तव बताते हैं कि अनेक शब्दों के अलग-अलग भाषाओं में ‘भद्दे’ और ‘अच्छे’ दोनों अर्थ होते हैं, लेकिन ऐसे शब्दार्थ के चलते लोग बैंक और मक्खन से दूरी नहीं बनाते हैं और न ही राजस्थानी शूरवीरों राणा के शौर्य को कम करके आंकने लगते हैं। श्रीवास्तव यह भी जानने की बात करते हैं कि किस आग में हिंदू शब्द के फारसी अर्थ को तलाशा जा रहा है।
सच तो यह कि इस आग में रोशनी से अधिक वह बारूद भरी हुई है, जो सामाजिक ताने-बाने और समरसता को झुलसा देने की घातक क्षमता रखती है। जर्किहोली यदि हिंदू शब्द के भावार्थ को समझ लें, तो संभव है कि उन्हें अपने कहे पर कुछ शर्म आ जाए। हां, फारसी के प्रति उनका यह विश्वास किसी एजेंडे से प्रेरित है, तो फिर कोई, कुछ भी नहीं कर सकता।