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देनवा की घाटी में फेंक दें ऐसी पुलिस को

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सन 2008 में जिस दिन श्रुति हिल (Shruti Hil) का शव देनवा की पहाड़ियों में तलाशा जा रहा था, तब मेरी एक रिटायर्ड पुलिस अफसर (retired police officer) से बात चल रही थी। सतपुड़ा की वादियों (valleys of satpura) में बसी देनवा घाटी (Denwa Valley) काफी गहरी है। अफसर ने अनुभव के आधार पर बताया था कि चार दिन पुरानी लाश (four day old dead body) की हालत काफी खराब हो गयी होगी और उसे निकालने उतरे आदमी ने यह काम करने से पहले जमकर शराब का सेवन किया होगा, ताकि घाटी की गहराई और लाश की भयावह अवस्था से यह आपरेशन प्रभावित नहीं हो सके।

मैं उसी श्रुति हत्याकांड (shruti murder case) की बात कर रहा हूं, जिसमें दोषी ठहराकर तेरह साल तक जेल में डाल दिए गए मेडिकल छात्र चंद्रेश मर्सकोले (medical student chandresh marskole) को अंतत: अदालत ने बेकसूर करार दिया है। जिस समय वह रिटायर्ड अफसर लाश निकालने के बारे में बता रहे थे, तब किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि शव निकालने उतरा आदमी ही नहीं, बल्कि उस समय का पूरा का पूरा पुलिस तंत्र पद के नशे में चूर था। देनवा की घाटियों की गहराई से भी कई गुना अधिक गहन रहस्यमय तरीके से पुलिस ने तब एक निर्दोष व्यक्ति को हत्या का आरोपी बनाया और फिर यही बात अदालत में भी साबित कर दी। पता नहीं कि श्रुति की बरामद की गयी लाश भयावह अवस्था में थी या नहीं, लेकिन इस कांड की सच्चाई ने पुलिस (Police) का जो भयावह रूप उजागर किया है, वह रोंगटे खड़े कर देने वाली बात है।

शव मिलने के बाद अगले दिन के अखबार में चार नाम प्रमुखता से थे। बिचारी श्रुति, हत्यारा चंद्रेश, सीनियर आईपीएस अफसर शैलेन्द्र श्रीवास्तव (Senior IPS officer Shailendra Srivastava) तथा जागरूक नागरिक डा. हेमंत वर्मा। श्रुति और चंद्रेश की बात तो बताई जा चुकी है। बाकी श्रीवास्तव उस समय भोपाल रेंज के आईजी (IG of Bhopal Range) थे और उनके माथे ही इस हत्याकांड के तथाकथित खुलासे का सेहरा बांधा गया था। वर्मा चंद्रेश का वह सीनियर था, जिसने अपने घनिष्ठ मित्र IG श्रीवास्तव को इस हत्या और इसमें चंद्रेश का हाथ होने की जानकारी दी थी। लाश ठिकाने लगाने में इस्तेमाल की गई कार डा. वर्मा की ही थी।

हाईकोर्ट (High Court) ने चंद्रेश को बरी करते हुए जो बड़ी बात कही है, वह व्यवस्था के प्रति सिहरन से भर देती है। कोर्ट ने कहा, ‘इस केस में पुलिस ने जानबूझकर अपीलकर्ता (चंद्रेश मर्सकोले) को झूठा फंसाने के एकमात्र उद्देश्य से काम किया और जो असली अपराधी हो सकते थे, उन्हें ही अभियोजन पक्ष (Prosecutors) का गवाह बनाकर बचाने का काम किया।’ अब रिटायर हो चुके श्रीवास्तव ने इस फैसले तथा टिप्पणी पर चुप्पी साध ली है। वर्मा का भी यही रुख है। लेकिन सवाल चुप नहीं होंगे। वह चीख-चीखकर यह उत्तर मांगेंगे कि चंद्रेश को असली न्याय कब मिलेगा? तेरह साल की जेल वाली अवधि में इस बेकसूर का करियर और जीवन, बुरी तरह चौपट हो गए हैं। भले ही कोर्ट ने राज्य सरकार (State government) को आदेश दिए हैं कि वह चंद्रेश को 42 लाख का मुआवजा दे, किन्तु इतने भर से क्या हो जाएगा?

क्या इस रकम से चंद्रेश अपने जीवन के वह तेरह साल वापस खरीद सकेंगे, जो उनके लिए नारकीय यादों के प्रतीक बन चुके हैं? यदि मर्सकोले के साथ न्याय हुआ होता तो एक सफल डॉक्टर के तौर पर अब तक वह जीवन में इस रकम के साथ ही साथ शायद पद और सम्मान भी अर्जित कर चुके होते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और दुर्भाग्य से अदालती राहत के बाद भी जीवन भर के लिए आहत कर दिए गए चंद्रेश केवल यही संतोष कर सकते हैं कि आखिरकार उन्हें निर्दोष मान लिया गया है। यह बात और है कि इस समाज में अब जीवन पर्यन्त और शायद उसके बाद भी चंद्रेश की पहचान ‘श्रुति हत्याकांड वाला’ के रूप में ही रहेगी। एक समूची जिंदगी और भविष्य को इस तरह कलंकित कर देने वालों को सख्त से सख्त सजा दी जाना चाहिए।

अब इस मामले की अकेली विक्टिम श्रुति नहीं है। निर्दोष होते हुए भी तेरह साल जेल में बिता कर आए चंद्रेश भी बराबर के पीड़ित हैं। श्रुति के वास्तविक हत्यारे का पता लगाना अब पुलिस का काम होना चाहिए या नहीं। इस मामले में तत्कालीन जांच अधिकारी CSP और TI भी दोषी माना जाना चाहिए। इस मामले की पूरी जांच तत्कालीन आईजी शैलेन्द्र श्रीवास्तव की निगरानी तथा मार्गदर्शन में हुई थी। तो सबसे बड़े दोषी तो वे हैं ही। अब राज्य सरकार को कोर्ट के आदेश पर चंद्रेश को 42 लाख रूपए का भुगतान (42 lakhs payment) करना है वो इस मामले में दोषी अफसरों की पेंशन या वेतन से वसूल किया जाना चाहिए या नहीं? अदालत ने भी माना है कि श्रीवास्तव और वर्मा की घनिष्ठ मित्रता के चलते जांच में गंभीरता न बरतते हुए सारा प्रयास इसी बात का रहा कि चंद्रेश को हत्यारा साबित किया जाए। तो अब इन्साफ पूरी तरह तब ही होगा, जब मामले की जांच से जुड़े TI और CSP सहित IG को भी जेल की सलाखों के भीतर धकेला जाए। न्याय उस समय तक भी अपूर्ण रहेगा, जब तक कि श्रुति के वास्तविक हत्यारे को नहीं पकड़ा जाता।

बात सिर्फ पुलिस की ही क्यों की जाए? दावा किया गया था कि वर्मा के ड्राइवर ने चंद्रेश को श्रुति की लाश फेंकते हुए देखा था। बाद में यही ड्राइवर अपने इस बयान से अदालत में मुकर गया। पुलिस की कहानी में इतने बड़े झोल के बाद भी नीचे की अदालत किस तरह इस बात के लिए आश्वस्त हो गयी कि चंद्रेश ही हत्यारा है? इस तरह से कुल मिलाकर यह स्थिति बनी है कि पुलिस और न्याय तंत्र का बहुत बड़ा हिस्सा संदेह के घेरे में आ गया है। हाईकोर्ट ने साफ कहा है कि मामले में पुलिस ने उन लोगों को ही अभियोजन पक्ष का गवाह बना दिया, जो वास्तविक हत्यारे हो सकते थे। याद दिला दें कि इन्हीं गवाहों में श्रीवास्तव के परम मित्र वर्मा भी शामिल रहे, जिन्होंने श्रुति की लाश मिलने से पहले ही पुलिस को एक पत्र सौंपकर इस मामले में स्वयं को बेगुनाह बताया था। चोर की दाढ़ी में तिनका जैसे इतने साफ तथ्य को भी पुलिस ने जांच से बाहर रखा, शायद इसलिए कि ऐसा कर वर्मा को जेल के अंदर जाने से बचाया जा सके।

चंद्रेश को अभी आंशिक न्याय ही मिला है। इस मामले में वास्तविक दोषियों को पकड़े जाने के बगैर भी इन्साफ का यह अधूरापन खलता रहेगा। चंद्रेश के करियर और जीवन को तेरह वर्ष तक अंधकारमय कर देने वाले संबंधित पुलिस अफसरों को उनकी इस करतूत की सजा न मिलने तक भी न्याय का सूर्य इस प्रकरण में पूरी तरह उदित नहीं हो सकेगा। और यदि अब भी इन्साफ अधूरा ही रहा, तो फिर ऐसे अन्यायी तंत्र को रास्ते पर लाने के लिए क्या कारगर कदम उठाने चाहिए। इस पर भरपूर विचार होना चाहिए। इतने चेक प्वार्इंट्स होने के बाद भी आखिर चूक कैसे और कहां से होती है। और जिस मामले को एक टीआई (TI), सीएसपी (CSP), एडिशनल एसपी (Additional SP), एसपी (SP), डीआईजी (DIG) के भी ऊपर को अधिकारी डायरेक्ट आईजी ही देख रहा था तो क्या पुलिस तंत्र में अफसरों की नीयत पर सवाल उठाने की परम्परा नहीं शुरू होनी चाहिए। कहने को तो कहा यह भी जा सकता है कि ऐसे पुलिस तंत्र को उठाकर देनवा की घाटी में फेंक देना चाहिए। सड़ी-गली लाश हो या सड़ा-गला तंत्र, देनवा की गहराइयों में जाकर कम से कम उनकी भयावहता से तो समाज बच जाएगा। अब इस मामले का बड़ा सवाल फिर भी हल होना बाकी है कि हत्या का शिकार हुई श्रुति और पुलिस से पीड़ित चंदे्रश को न्याय दिलाने के लिए मौजूदा पुलिस कमिश्नर और सरकार की तरफ से कोई कदम उठेगा या नहीं?

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