नगरीय निकाय के चुनाव (municipal elections) में यदि फिर भाजपा (BJP) के पक्ष में गए परिणाम के परिमाप को नापना है, तो फिर शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) और वीडी शर्मा (VD Sharma) के लिए एक संयुक्त सेहरा तो बनता ही है। बात केवल यह नहीं कि कांग्रेस (Congress) अधिकतर जगह पर हार गयी, बात यह है कि भाजपा वहां भी जीती, जहां उसके लिए रास्ता कठिन दिख रहा था।
यह पहले चरण का परिणाम है और ये मतदाता के विश्वास का प्रणाम कहा जा सकता है, शिवराज सिंह चौहान के लिए। न ‘प्रायोजित’ स्वरूप वाला किसान आंदोलन शिवराज के लिए विरोध का कारण बन सका और न ही यह हुआ कि इस स्थानीय चुनाव में कोई उनसे आगे जा सका हो। बात नई नहीं है। यह शिवराज ही रहे, जिन्होंने 28 सीटों का बदलाव वाला उपचुनाव (by-election) कांग्रेस के लिए ‘उफ़ चुनाव’में सफल रूप से बदल दिया था। यदि भारी एंटी इंकम्बेंसी (anti incumbency) के बाद भी 2018 में भाजपा सम्मानजनक तरीके से पूर्ण बहुमत से बहुत कम फासले पर ही रुकी, तो यह भी शिवराज की वजह से ही हो सका।
सत्य के समीप सच और सही कल्पना का एक चित्र खींचा जा सकता है। नगरीय निकाय के चुनाव में मतदाता पर्ची में गड़बड़ी और लाख से ज्यादा मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटने के चलते भाजपा के लिए चिन्ता का वातावरण था। यह चूक निश्चित ही चुनाव आयोग की वजह से हुई और अवश्यम्भावी रूप से माना जा रहा था कि BJP को ही इसका नुकसान होगा। तो इस क्षतिपूर्ति के वाहक तो शिवराज ही कहे जाएंगे। क्योंकि फिर वही 28 में से 19 सीट वाले करिश्मे को शिवराज ने कायम रखा है।
बरसात का समय है। उग जाते हैं कई नए पौधे भी। जहां कांग्रेस और ‘आप (AAP)’ जीती, उन्हें इस अंकुर के पल्लवित होने की शुभकामनाएं। लेकिन भाजपा ने बता दिया कि शिवराज सिंह चौहान और वीडी शर्मा प्रत्येक बूथ की चिंता वाले वह लोग हैं, जिन्होंने इन परिणाम के बाद स्वयं को कुशाभाऊ ठाकरे की परंपरा का संवाहक सिद्ध कर दिया है। अद्भुत बात यह कि न होते हुए भी शिवराज और शर्मा इस चुनाव का मुख्य चेहरा बन गए। और इन दोनों का यही चेहरा भाजपा की जीत का सेहरा बन गया। इस तथ्य से कोई मना नहीं होना चाहिए कि चुनाव पूरे प्रदेश में CM के रूप में शिवराज और उनके सारथी के तौर पर वीडी शर्मा ने लड़ा। भले ही इन नतीजों को अगले साल के संभावित विधानसभा चुनाव (assembly elections) से न जोड़ा जाए, किन्तु यह जोड़-गुणा तो गलत नहीं होगा कि ये परिणाम सरकार और संगठन के रूप में भाजपा की लोकप्रियता के परिचायक हैं। ये परिचायक इस बात के भी हैं कि ‘आरोप जड़ने’ तथा ‘सफलता का सेहरा स्वयं के लिए गढ़ने’ के मध्य में बहुत भारी अंतर होता है। अब कांग्रेस को यह सोचना होगा कि क्यों वह 2018 की बैसाखी वाली सफलता के ‘लड़खड़ाते’ उन्माद से बाहर नहीं आ रही है? क्यों वह उस भांग घुले कुएं में ही झांक रही है कि ‘भाजपा जाएगी और हम आएँगे?’
हैरत है कि राजनीति के ककहरा से लेकर उसकी संपूर्ण व्याख्या से परिचित दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) और कमलनाथ (Kamal Nath) तक इस सत्य से आंख बंद कर बैठे हैं कि उनका सामना उस भाजपा से है, जो संसद में दो सीट से लेकर पूर्ण बहुमत वाले करिश्मे को अपनी संगठनात्मक क्षमता से सफल सिद्ध कर चुकी है। शिवराज सिंह चौहान और वीडी शर्मा की जीत केवल यह नहीं कि उन्होंने अधिकांश जगह विरोधियों को हराया, बल्कि उनकी विजय यह कि वह मिलकर भाजपा के मूल में निहित ‘सत्य जीत और सतत जीत’ वाले तत्व को एक बार फिर मूर्त रूप देने में सफल रहे हैं। जीत का ये सेहरा कोई गहरा राज लिए हुए नहीं है। बात परिपाटी को पण-प्राण से आगे ले जाने भर की है।