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ये यादव का स्वाभाविक शक्ति दर्शन है

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प्रकाश भटनागर

इसे एक सिरे से ‘शक्ति प्रदर्शन’ जैसा मामला नहीं कह सकते। वैसे तो बात राजनीतिक कौशल की हो तो अपनी ताकत का ऐसा दिखावा कतई अस्वाभाविक मामला नहीं होता है, लेकिन जब बात मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जैसे व्यक्ति की हो तो मामला कुछ अलग हो जाता है। यादव की फितरत में शक्ति प्रदर्शन जैसी बात आमतौर पर नजर नहीं आती। लिहाजा इसे शक्ति दर्शन वाली बात जरूर कह सकते हैं।

मुख्यमंत्री बनने के बाद से अब तक यादव ने कई ऐसे छोटे-बड़े कदम उठा लिए हैं, जो उनकी ताकत को दिखाने का बड़ा जरिया बन गए हैं। वरना यह आसान नहीं था कि विधानसभा सत्र के बीच कोई मुख्यमंत्री पुलिस जैसे महकमे में बड़े बदलाव लागू कर दे। सौरभ शर्मा कांड की गूंज के बीच लोकायुक्त संगठन के शीर्ष स्तर पर हुई कतर ब्योंत बताती है कि यादव मुख्यमंत्री का पद मिलने के बाद शक्ति एवं ठोस निर्णय के मामले में समुचित कद भी हासिल कर चुके हैं। फिर यह अपनी तरह का पहला मामला नहीं है। मऊगंज में पुलिस पर हमले और हत्या की वारदात निश्चित ही शांति के टापू के दामन पर बड़ा दाग है, लेकिन डॉ. यादव ने इसके बाद जिस तरह कलेक्टर और एसपी को हटाते हुए सिस्टम में सख्ती का संकेत दिया, वह उनके बदले रूप को दर्शाता है।

भोपाल में बीते दिनों हुई ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट से पहले-पहले मुख्यमंत्री ने जिस तरह एक ही रात में 12 कलेक्टर सहित 42 आईपीएस अफसरों के तबादले किये, वह भी इस दिशा में एक बड़े उदाहरण का ही संकेत है। ऐसा कर यादव ने दिखा दिया कि वो इस समिट जैसे सरकार और राज्य की प्रतिष्ठा से सीधे-सीधे जुड़े किसी आयोजन को लेकर तनिक भी ढील जैसी स्थिति को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं रहेंगे।

मध्यप्रदेश में नौकरशाही पर लगाम न लगा पाना राज्य की कई सरकारों की कुंडली में किसी गलत ग्रह की तरह अंकित हो गया। यहां तक कि लगातार दो बार के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और इसी आंकड़े में उनसे आगे निकले शिवराज सिंह चौहान भी अफसरों की जमात के बिगड़ैल चेहरों पर पुख्ता तरीके से लगाम नहीं कस सके थे। डॉ. मोहन यादव ने पदभार संभालने के बाद से ही जिस तरह अफसरों के बेलगाम होने के अवसरों को नियंत्रित किया, वह लोकायुक्त संगठन में बड़े बदलाव से एक बार फिर साफ़ महसूस किया जा सकता है।

यहां शक्ति से आशय यह नहीं कि कोई पद का लाभ उठाकर कुछ भी फैसले ले लें। कमलनाथ ने 15 महीने के मुख्यमंत्री रहते हुए दनादन ऐसे निर्णय लिए थे। आलम यह रहा था कि ‘वक्त है बदलाव का’ वाले नारे लगाते-लगाते नाथ की सरकार ‘वक्त है लगातार तबादलों का’ वाले मोड में आ गई। दनादन तबादला सूची निकलीं और पूरा प्रशासन हिल गया। लेकिन उस समस्या की जड़ न हिल सकी, जिसके निपटारे के लिए नाथ ने यह शक्ति दिखाई। अलबत्ता, डॉ. मोहन यादव ने तबादले और नियुक्ति की प्रक्रिया में कमोबेश हर मौके पर साहस के साथ ही उस सूझबूझ का भी परिचय दिया है,. जो उनकी इस शक्ति को उचित स्वरूप में इस्तेमाल करने की पुष्टि भी करता है।

फिर ताकत की बात आती है तो भाजपा विधायक चिंतामणि मालवीय को मिले कारण बताओ नोटिस की इबारत पढ़ लीजिए। मालवीय ने अपनी ही पार्टी की सरकार को विधानसभा में घेरने का जो दुस्साहस किया, उसका नतीजा यह कि उन्हें भले ही प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा की तरफ से कारण बताओ नोटिस जारी किया गया हो, लेकिन उस नोटिस में इस बात का साफ जिक्र है कि इसके लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने निर्देश दिए हैं। यानी कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने भी डॉ. यादव को उस शक्ति से सुसज्जित कर दिया है, जो उन्हें असुविधा की स्थिति में डालने का प्रयास करने वालों को खबरदार करने का बड़ा प्रतीक है। यादव ने यह शक्ति अपने काम से हासिल की है और इसका हासिल यह भी कि वो शक्ति प्रदर्शन करने की कोशिश से परे रहकर भी शक्ति दर्शन के बड़े माध्यम बन गए हैं।

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