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एक प्राइवेट नौकरी है, एक थी

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जो लोग सरकारी सेवाओं (आशय ‘सुविधाओं’ से है) के निजीकरण (privatization) से घबराते हैं, उनके लिए एक अज्ञात व्यक्ति(या ‘कई’ भी हो सकते हैं) इस घबराहट से छुटकारा दिलाने का गारंटीड जरिया है। यह व्यक्ति निजी सेवा में है। अपनी जिम्मेदारी के लिहाज से खासा नालायक है, मगर नौकरी में अंगद के पांव की तरह टिका हुआ है। लगभग हर मौके पर वह बे-सिर, पैर वाले काम करता है। या कह सकते हैं कि हर समय वह पिनक में रहता हो। फिर भी उसकी नौकरी लगातार सुरक्षित है। नौकरी देने वाले का उस पर अटूट विश्वास कायम है। उसे रोकने-टोकने का अधिकार किसी को भी नहीं है। यह वह व्यक्ति है जो कांग्रेस (Congress) के पूर्व (वैसे काम तो उन्होंने ‘अभूतपूर्व’ वाले किये हैं) राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का वैचारिक सलाहकार तथा भाषणों का लेखक है। राजनीति के कैनवास पर राहुल समय-समय पर जो फूल (Fool) उकेरते हैं, उन्हें याद कों। आप पाएंगे कि प्राइवेट नौकरी (private job) में भी सरकारी कामकाज जैसी मक्कारी और क्षमता के अभाव के बावजूद फलने-फूलने के पर्याप्त अवसर मौजूद हैं। बशर्ते कि नियोक्ता राहुल गांधी जैसा भोला-भाला हो। इतना सीधा कि सलाहकार/लेखक की हर बात को आंख मूंदकर शिरोधार्य कर ले। उस दिशा में अपना दिमाग खर्च करने की कतई तकलीफ न करे। वरना तो अगर नौबत निजी पदस्थापना के पदचिन्हों पर चलने की बजाय निजी बुद्धि इस्तेमाल करने की होती तो राहुल रह-रह कर वह सब नहीं करते, जो करते हुए शुक्रवार को एक बार फिर उन्होंने अपने वो होने का सबूत दे दिया, जो उनकी विशिष्ट छवि बन चुका है। किसी कॉपीराइट की तरह।

हिंदू धार्मिक मान्यताओं में शुक्रवार को देवी मां का दिन माना जाता है। इसी शुक्रवार को गांधी ने तीन देवियों, मां दुर्गा (Maa Durga), मां सरस्वती (Maa Saraswati) तथा मां लक्ष्मी (Maa Lakshmi) का वो अपमान किया, जिससे उस मकबूल फिदा हुसैन से जुड़ी कसैली याद ताजा हो गयी, जिसने एक समय हिन्दू देवियों का नग्न चित्रण करने की धृष्टता कर दी थी। आप मनुष्यों के एक समूह को अरबों हिंदुओं की आस्था की प्रतीक देवियों की शक्ति कम करने वाला बता रहे हैं! वैसे तो राहुल भाजपा (BJP) के सबसे बड़े मददगार के तौर पर स्थापित हो चुके हैं, लेकिन मुझे नहीं पता था कि उनका यह ‘अनुराग’ इस हद तक बढ़ जाएगा कि वह अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा को इतना शक्तिशाली दल बता देंगे, जो भगवान की भी शक्ति को कम कर सकता है। जब वैचारिक मलिनता से भरे दिमागी दीवालियापन वाला हो तो राहुल लगे हाथ यह भी कह ही देते कि अब देवियों को अपनी ताकत वापस चाहिए तो देश में कांग्रेस की सरकार का बनना बहुत जरूरी हो गया है। जब आपका मिशन ही किसी धर्म-विशेष के लोगों को खुश करने के लिए किसी धर्म का उपहास करने वाला है तो फिर यह कसर भी क्यों छोड़ी जाए!

ये मामला काफी हद तक बिरसे में मिली आदतों जैसा भी है। राजीव गांधी प्रधानमंत्री (Rajiv Gandhi Prime Minister) रहते हुए बोट क्लब पर रैली में विपक्ष के लिए ‘नानी याद दिला देंगे’ जैसे भोंडे वाक्य का इस्तेमाल कर गए थे। चूंकि मामला निम्न-स्तरीय था, इसलिए मीडिया में तब यह तक कहा गया था कि गांधी का वह भाषण ‘मेरा बाप चोर है’ वाली जोड़ी सलीम-जावेद (salim-javed) ने लिखा था। सोनिया गांधी एक समय उत्तरप्रदेश की चुनावी रैली में ‘आज यहां जनता का उत्साह देखकर आसमान भी खुशी से बरस रहा है’ कह (पढ़) रही थीं, जबकि उस समय वहां धूप खिली हुई थी और आसमान एकदम साफ था। राहुल भी तो ऐसा ही करते आ रहे हैं, किसी खानदानी परंपरा को पूरी निष्ठा के साथ आगे बढ़ाने की तर्ज पर। फिर जम्मू में तो उन्होंने हद ही कर दी। आप बेशक भाजपा का विरोध कीजिये। आखिर यही तो वह दल है, जिसने आपकी पार्टी को अनिश्चितता के दलदल में धकेल रखा है। लेकिन इसके चलते कम से कम किसी धर्म की खिल्ली उड़ाने पर तो मत उतर आइये। और यदि इतना ही साहस है तो राहुल केवल एक बार तालिबान और आईएसआईएस (ISIS) की करतूतों से इस्लाम की छवि पर पड़ रहे विपरीत असर की बात कह कर दिखा दें।

राहुल गांधी घनघोर किस्म के कंट्रास्ट से घिरे हुए हैं। उन्होंने कहा कि वह कश्मीरी ब्राह्मण हैं। तो वह जरा यह भी बता देते कि भारत से करीब तीन हजार किलोमीटर की दूरी पर स्थित ईरान (Iran) का आखिर ब्राह्मणों या कश्मीर से क्या नाता है? क्योंकि गांधी के स्वर्गीय दादा फिरोज गांधी (Feroze Gandhi) तो पारसी थे। वह समुदाय जो ईरान से भागकर भारत में आया। जिसका हिंदू धर्म (Hindu Religion) या कश्मीर (Kashmir) से कोई सीधा नाता नहीं है। तो फिर राहुल भला किस तरह कश्मीरी ब्राह्मण हो गए? और फिर यदि वह वाकई यही हैं तो फिर वह कौन सी मजबूरी रही कि उनकी पार्टी ने कभी भी कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) की सुध नहीं ली? क्यों ऐसा हुआ कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार रहते हुए ही कश्मीर में लाखों पंडितों को आतंकवादियों (terrorists) ने पलायन पर मजबूर कर दिया? सैंकड़ों कश्मीरी पंडितों की हत्या (Hundreds of Kashmiri Pandits killed) कर दी। उनकी बहन-बेटियों से ज्यादती की। उन्हें इस्लाम कबूलने पर मजबूर किया। स्वयंभू कश्मीर पंडित राहुल क्यों नहीं यूपीए की ही दो बार की सरकार में एक बार भी नहीं कह पाए कि अपने ही देश में शरणार्थी की तरह जीने को मजबूर कश्मीरी पंडितों की सुध ली जाए? आप तो धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देते हुए थकते नहीं हैं, तो फिर इस महान तत्व की आपने ऐसी कोई परिभाषा गढ़ ली है, जो आपको एक धर्म-विशेष को अपनी सियासी तराजू पर तौलने को सही ठहराती है?

गलती राहुल गांधी के सलाहकार/सलाहकारों, लेखक/लेखकों की नहीं है। उन्हें यह समझ होगी कि किस स्तर के दिमाग में किस स्तर की बात समा सकती है। इसलिए वे भी यह सोचकर अपनी सलाह तथा लेखन में कंजूसी कर लेते होंगे कि कंबल पर काले के सिवाय कोई और रंग चढाने की कोशिश आखिर निरी मूर्खता ही साबित होना है। मेरे एक मित्र संवाद लिखने में महारत रखते थे। इसी के चलते वह मुंबई चले गए थे। बाद में पता चला कि वह सी ग्रेड फिल्में बनाने वाले एक निर्माता के यहां सेवाएं देने लगे। मैंने वजह पूछी तो उसने कहा कि उसके निर्माता की केवल और केवल एक मांग होती है ‘चवन्नी छाप संवाद।’ ऐसे डायलॉग लिखने में मित्र को कोई मेहनत नहीं करना होती थी, इसलिए वह उस निर्माता के साथ लंबे समय तक जुड़ा रहा। यह भी एक प्राइवेट नौकरी थी……..अब इससे ज्यादा और क्या कहा जा सकता है?

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