निहितार्थ

जड़ की बजाय पत्तों को पानी देने की नादानी

कांग्रेस संभवत: यह सोच रही है कि एक बार राहुल की यात्रा पूरी हुई और देश का सारा जनमत फिर कांग्रेस के साथ आ खड़ा होगा। वरना यह कैसे संभव हो सकता है कि कोई दल गुजरात में अपनी कमजोर हालत के बावजूद उस दिशा में सुधार का कोई प्रयास ही न करें।

गुजरात में कांग्रेस की सबसे बुरी पराजय के बीच कुछ बातों की पड़ताल की जा सकती है। पहली, कांग्रेस ने इस राज्य को स्थानीय नेताओं के हवाले कर दिया था। निश्चित ही मल्लिकार्जुन खड़गे के रूप में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने वहां जाकर प्रचार किया, लेकिन मतदाता के बीच बड़ा फिगर बनने के लिए अब शायद उनका समय गुजर चुका है। उल्टा हुआ यह कि खड़गे का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ‘रावण’ शब्द का प्रयोग कांग्रेस को भारी पड़ गया। भाजपा ने इस मुद्दे को कांग्रेस के खिलाफ इस्तेमाल करने में कोई चूक नहीं की। उसने इसे तुरंत गुजरात और देश के अपमान से जोड़ दिया। फिर गुजराती अस्मिता को भुनाने में मोदी तो माहिर हैं ही।
राहुल गांधी ने जब भारत जोड़ो यात्रा शुरू की, तब तक गुजरात का चुनाव सिर पर आ चुका था। उन्होंने यात्रा में कहा कि मोदी उन्हें संसद में बोलने नहीं देते। लेकिन गुजरात में तो राहुल के लिए बोलने के भरपूर मौके और मंच थे। तो फिर ऐसा क्या हुआ कि उनकी इस यात्रा के रूट में गुजरात को शामिल नहीं किया गया। गांधी यात्रा बीच में रोककर एक बार वहां जाने की औपचारिकता पूरी कर आए। उन्हें शायद यह भान ही नहीं रहा कि इस राज्य में उनकी पार्टी और भाजपा के बीच ‘आप’ तेजी से पांव पसार रही है। नतीजा सामने है। कांग्रेस भले ही ले-देकर गुजरात में दूसरा बड़ा दल हो, लेकिन विधायकों की बहुत कम संख्या के चलते विधानसभा में मुख्य विरोधी दल बनने के लिए भी उसे विधायकों के लाले पड़ गए हैं।

हिमाचल में कांग्रेस का बहुमत उस रवायत के चलते हुआ, जिसमें मतदाता बारी-बारी से भाजपा और कांग्रेस की सरकार बनाने में यकीन रखता है। भाजपा वहां भी पूरी तैयारी से लड़ी और राहुल ने तो उस राज्य की दिशा में जैसे मुंह करने से भी तौबा कर रखी थी। एक बात यकीन के रूप में सही लगने लगी है। वह यह कि कांग्रेस संभवत: यह सोच रही है कि एक बार राहुल की यात्रा पूरी हुई और देश का सारा जनमत फिर कांग्रेस के साथ आ खड़ा होगा। वरना यह कैसे संभव हो सकता है कि कोई दल गुजरात में अपनी कमजोर हालत के बावजूद उस दिशा में सुधार का कोई प्रयास ही न करें। कांग्रेस के जितने दिग्गजों की भीड़ राहुल के इर्द-गिर्द उनसे कदमताल की कोशिश करती रही, उसकी आधी ने भी यदि गुजरात में जाकर काम किया होता, तो पार्टी की ये दुर्गति होने से बचा जा सकता था। जीतने की तमाम संभावनाओं के बाद भी आखिर भाजपा ने गुजरात में अपनी पूरी ताकत झोंकने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। कांग्रेस पूरी ताकत झोंक देती तब भी उसकी सरकार तो  शायद नहीं बन पाती, लेकिन असरकार तरीके का एक विपक्ष तो खड़ा किया ही जा सकता था। इस सन्दर्भ में राज्य में कांग्रेस के वे 17 उम्मीदवार वाकई अभिनंदन के लायक हैं, जिन्होंने आलकमान का लगभग न के बराबर समर्थन मिलने के बावजूद जीत प्राप्त की। बाकी पार्टी तो यह रणनीति तक तैयार नहीं कर सकी कि कैसे भाजपा के बागी उम्मीदवारों और नाखुश नेताओं को अपनी तरफ खींचकर माहौल को अपने पक्ष में  कुछ सुधारा जा सके।

यह साफ है कि राहुल और उनके सलाहकारों के पास पार्टी की चिंता के लिए कोई कार्यक्रम नहीं बचा है। उनकी सारी शक्ति राहुल की इमेज बिल्डिंग और उन्हें शक्तिशाली बनाने में ही सिमट कर रह गयी है। यही वजह है कि यात्रा के बीच सोशल मीडिया पर राहुल को देश का भावी नेतृत्वकर्ता बताकर प्रस्तुत किया जाता रहा और इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया गया कि देश तो दूर, एक प्रदेश तक में राहुल कोई चमत्कार कर पाने की स्थिति में नहीं हैं। जड़ की बजाय पत्तों को पानी देने की यह नादानी कांग्रेस को एक बार फिर भारी पड़ी है। फिर मामला जड़ बुद्धि को पार्टी की खोई हरियाली लौटाने वाला साबित करने जैसा आकाश-कुसुम खिलाने वाला हो तो भगवान ही मालिक है।   (जारी) 

प्रकाश भटनागर

मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में प्रकाश भटनागर का नाम खासा जाना पहचाना है। करीब तीन दशक प्रिंट मीडिया में गुजारने के बाद इस समय वे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश में प्रसारित अनादि टीवी में एडिटर इन चीफ के तौर पर काम कर रहे हैं। इससे पहले वे दैनिक देशबंधु, रायपुर, भोपाल, दैनिक भास्कर भोपाल, दैनिक जागरण, भोपाल सहित कई अन्य अखबारों में काम कर चुके हैं। एलएनसीटी समूह के अखबार एलएन स्टार में भी संपादक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। प्रकाश भटनागर को उनकी तल्ख राजनीतिक टिप्पणियों के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button