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जुबान पर उतरी तलवों की गंदगी

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मणिशंकर अय्यर ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर देश को धर्म, जाति और भाषा के आधार पर बांटने का दोषी बताया है। इसके बरअक्स उन्होंने अपने नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को समर्थन देना बहुत जरूरी बता दिया है। अय्यर काफी समय से पूछ-परख से दूर हैं। इसलिए उनकी विशिष्ट किस्म की पहचान ताजा करना जरूरी है, ताकि सभी को याद आ सके कि बात किसकी की जा रही है। तो ये सज्जन वही हैं, जिन्होंने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को अपदस्थ करने के लिए पाकिस्तान में जाकर उसकी मदद मांगी थी। उन्होंने दिवंगत मुलायम सिंह यादव के लिए कहा था, ‘मुलायम और मेरी शक्ल बहुत मिलती है। मेरे पिता अपने समय में कई बार उत्तरप्रदेश गए थे। इसलिए मुलायम की मां से इस बारे में पूछा जाना चाहिए।’ उस समय मुलायम के बेहद करीबी अमर सिंह ने अय्यर पर ऐसा कथन करने का आरोप लगाया था। अय्यर पेरिस और पत्रिका चार्ली हेब्दो पर हुए आतंकी हमलों का खुलकर समर्थन कर चुके हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘नीच आदमी’ कहा था और इस बारे में सवाल पूछने वाले पत्रकार को अंग्रेजी में गाली भी दी थी।

इन सारे सन्दर्भ के बीच यह घनघोर कंट्रास्ट हैरत से भर देता है कि अय्यर कभी भारतीय विदेश सेवा के अफसर भी रह चुके हैं। इसीलिए हैरत और बढ़ जाती है कि अय्यर शायद इतिहास से आंख मूंदकर भाषा के आधार पर देश को बांटने की बात कह रहे हैं। शायद उन्हें पता नहीं होगा कि वर्ष 1956 में देश में जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री रहते हुए ही राज्य पुनर्गठन आयोग ने सबसे पहले भाषा के आधार पर ही 14 राज्य और छह केंद्र शासित प्रदेश बनाए थे। वह यह भी भूल गए हैं कि वर्ष 1947 में देश का विभाजन ही धर्म के आधार पर किया गया था। तब लाखों हिंदू सिर्फ इस धर्म का होने के कसूर के चलते मार डाले गए थे। यह धर्म की राजनीति ही थी कि राजीव गांधी ने शाहबानो प्रकरण में संविधान संशोधन करके सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटवा दिया था। इसके साथ ही अय्यर मोदी को अन्य पिछड़ा वर्ग का होने की वजह से ‘नीच’ कहते हैं तो फिर खुद ही समझ लीजिए कि जाति के आधार पर कौन विभाजनकारी मानसिकता में रचा-बसा हुआ है

अब अय्यर ने खुद सुराख-युक्त विचार प्रकट किए हैं, इसलिए यह तय है कि इसके जवाब में विभाजन से लेकर उसके बाद देश के करीब साठ साल वाले इतिहास की विकृतियों का जिक्र आएगा। यानी देश जोड़ने के नाम पर निकले राहुल गांधी के अब तक के किये-कराए पर अय्यर ने पानी फेरने में कोई कसर नहीं उठाई है। क्योंकि अब कांग्रेस को नए सिरे से कई सवालों के जवाब देने पड़ सकते हैं। जैसे, महात्मा गांधी की हत्या के बाद बड़ी संख्या में चितपावन ब्राह्मण क्यों इसलिए मार डाले गए कि नाथूराम गोडसे उनके संप्रदाय से था? इंदिरा गांधी की हत्या के चलते हजारों सिखों का नरसंहार क्यों कर दिया गया? वे हत्या में शामिल नहीं थे, लेकिन हत्यारे उनके समुदाय से थे, इसलिए उन्हें कत्लेआम का शिकार बनाया गया। यदि धर्म या संप्रदाय की ही बात है तो वो डॉ. मनमोहन सिंह किस पार्टी के सदस्य थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए कहा था कि देश के सभी संसाधनों पर मुस्लिमों का ही पहला अधिकार है? देश भर में चल रही राम लहर के बीच 1991 में प्लेसेज आफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजन) एक्ट, 1991 पारित कराने वाले प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव किस पार्टी के थे? बता दें कि इस एक्ट में साफ कहा गया था, ‘देश में 15 अगस्त, 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस संप्रदाय का था वो आज, और भविष्य में, भी उसी का रहेगा।’ भले ही इस एक्ट से अयोध्या मामले को अलग रखा गया था, लेकिन ये बंदोबस्त तो प्रमुख रूप से इस बात को ध्यान में रखकर ही किया गया था कि कृष्ण जन्मभूमि और ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर भी हिंदू अपने हक के लिए लामबंद हो रहे हैं।

एक बात और याद आती है। 2011 में केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी। तब राष्ट्रीय सलाहकार परिषद द्वारा तैयार किए गए सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम बिल को लेकर संसद में भाजपा ने जमकर विरोध किया था। इस बिल में समूहों का बंटवारा बहुसंख्यक आबादी और अल्पसंख्यक आबादी के आधार पर किया गया था। बिल में धार्मिक, जातीय और भाषाई आधार पर बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक आबादी की पहचान की गई थी। बिल में प्रावधान था कि अगर किसी इलाके में कोई दंगा होता है तो इसके लिए उस क्षेत्र की बहुसंख्यक आबादी को जिम्मेदार ठहराया जाएगा। यह भी बता दें कि जिस परिषद ने यह बिल तैयार किया, उसकी प्रमुख सोनिया गांधी थीं।

इस तरह के अनेक तथ्य ऐसे हैं, जो अय्यर को अपनी पार्टी की गिरेहबान में झांकने के लिए ‘प्रेरित’ कर सकते हैं। लेकिन वह गिरेहबान तक भला कैसे पहुंचेंगे? पार्टी में तो उनकी स्थिति फिलहाल गिरेहबान से बहुत नीचे ‘तलवों’ के आसपास ही है। उन्हीं तलवों की गंदगी जब जुबान पर उतर आए तो आदमी उसी तरह के झूठे आरोप लगाने लगता है, जैसा अय्यर ने एक बार फिर कर दिखाया है। इससे हालांकि राहुल गांधी की कोशिशों को ही नुकसान होना है।

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