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नादानी के सांचे में ढले हुए ऐसे चम्मच

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जो शख्स गमले में गोभी उगाने का दावा कर सकता हो, वह यदि चार की सहमति और एक की असहमति वाले किसी निर्णय को ‘अल्पमत’ कहे तो इस मानसिकता पर हैरत नहीं होना चाहिए। मैं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तमाम आरोपों से घिरे पी चिदंबरम की बात कर रहा हूं। सुप्रीम कोर्ट में चार जजों ने नोटबंदी के फैसले को सही बताया है और केवल एक जज इससे सहमत नहीं थे। इस तरह देश की सबसे बड़ी अदालत से नोटबंदी को क्लीन चिट मिल गयी है।

राहुल गांधी इन दिनों टी शर्ट पहनकर खुद को तपस्वी बताने की कोशिश में हैं। इसलिए उनका वह कुर्ता फिलहाल कहीं ऊंघ रहा होगा, जो गांधी ने कभी नोटबंदी के समय पहना था और बताया था कि उसकी जेब में सुराख है। उस सुराख को किसी सुराग की तरह जनता के सामने पेश कर यह जताने की कोशिश की गयी थी कि नोटबंदी गलत है। मजे की बात यह कि अदालत के आज के फैसले के बाद कांग्रेस का पूरा पंजा खंभा नोचता हुआ दिख रहा है। पी चिदंबरम के अलावा पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश भी यही कह रहे हैं कि कोर्ट ने नोटबंदी को जायज नहीं ठहराया है। पीठ ने बहुमत से लिए गए फैसले में कहा कि नोटबंदी की निर्णय प्रक्रिया दोषपूर्ण नहीं थी।दरअसल नोटबंदी के खिलाफ दायर तमाम याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किया जाना कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा झटका है। इस फैसले के बाद आ रही इस दल की प्रतिक्रियाओं में यह स्वर छिपा हुआ है कि अपनी दलीलों की दाल न गल पाने से नेताओं में हताशा का माहौल है। जब केंद्र के फैसले के पक्ष में कोर्ट यह कहती है कि आर्थिक मामलों में संयम बरतना बहुत जरूरी होता है, तब इसमें यह संदेश भी छिपा हुआ है कि इस निर्णय का अंधे तरीके से विरोध किया जाना गलत है। फिर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला केंद्र और याचिकाकर्ताओं की बात सुनने और उनका परीक्षण करने के बाद सुनाया है।

केंद्र ने यह तर्क दिया कि नोटबंदी के बाद काला धन के पकड़ने के मामले बढ़े हैं। यह कदम उठाने से पहले रिजर्व बैंक को विश्वास में लिया गया। यदि पांच में से चार जज इन तर्कों से सहमत हैं तो फिर आगे और बहस की गुंजाइश नहीं तलाशी जाना चाहिए। कांग्रेस की समस्या यह कि जनता की अदालत से लेकर देश की अदालतों तक उसे बहुमत के साथ शर्मनाक किस्म की असफलताओं का सामना करना पड़ रहा है। और इस जंग में वह तेजी से अकेली होकर ही ‘पिटने’ लगी है। यह दल राफेल विमानों की खरीदी को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ गला फाड़ता रहा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसमें भी केंद्र को क्लीन चिट दे दी। कांग्रेस द्वारा कभी सुप्रीम कोर्ट में प्रभु श्रीराम को काल्पनिक चरित्र बताने के बाद हुआ यह कि उसी सुप्रीम कोर्ट के आदेश से आज अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण का काम तेजी पर चल रहा है। इधर राहुल भारत जोड़ो यात्रा को लेकर केंद्र के खिलाफ सड़क पर उतरे, उधर जनता ने गुजरात और दिल्ली नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस के जनाधार को और कमजोर कर दिया। हिमाचल प्रदेश की जीत पर कांग्रेस भले ही इठला ले, लेकिन यह सच है कि उस राज्य में एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस वाला ट्रेंड ही इस पार्टी की सरकार बनवा सका।

राहुल काल में कांग्रेस ने देश में तीस से अधिक चुनाव हारने का कीर्तिमान रचा और अब चल रहे राहु काल के बीच इस पार्टी से तमाम दिग्गज नेता मुंह मोड़ने में ही अपनी भलाई समझने लगे हैं। ऐसी परिस्थितियां और उनका लगातार जटिल होते जाना भीषण अवसाद को जन्म देता है। फिर अवसाद के चरम में जो होता है, वही कांग्रेस में भी होता दिख रहा है। कड़वे सच से मुंह फेरना अधिकतर लोगों की फितरत होती है, लेकिन इस फेर में खुद को असत्य के आगे समर्पित कर देना भला किस तरह समझदारी कही जा सकती है? लेकिन बात तो वही है ना कि जो ‘पप्पू मानसिकता’ को ‘प्रकांड विद्वत्ता’ और गमलों में गोभी की खेती करने वाली बात कर सकते हैं, उनके लिए कुछ भी संभव है। वो नादानी के सांचे में ढले हुए वे चम्मच हैं, जिनके भीतर अक्ल का एक दाना रखने की भी गुंजाइश नहीं बची है।

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