अनिश्चय की धुंध को चीरते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) ने राज्य में उस व्यवस्था को धरातल पर स्थापित कर दिया, जो बीते लंबे समय से हवा-हवाई बात ही मानी जाने लगी थी। पुलिस कमिश्नर प्रणाली (police commissioner system) की बातें तो पहले भी खूब हुईं। दावे भी ऐसे-ऐसे किये गए की कई मर्तबा लगा कि आज या कल में यह प्रणाली लागू कर ही दी जाएगी। ऐसा चालीस साल बाद जाकर अब हो सका।
बात सिर्फ यह नहीं कि पुलिस कमिश्नर सिस्टम को लागू करने मात्र का श्रेय शिवराज (Shivraj Singh Chouhan) को जाता है। इससे भी अहम बात यह है कि मुख्यमंत्री ने भारी दबावों के बीच भी अपनी इस घोषणा (Announcement) को अमली जामा पहना दिया। IAS और आईपीएस कैडर (IPS cadre) भले ही व्यवस्था के सहोदर की तरह हों। लेकिन उनके बीच के टकराव रह-रहकर अनेक मामलों में सगे से सौतेले वाले व्यवहार का रूप ले लेते हैं। पुलिस कमिश्नर सिस्टम को लेकर तो इन दोनों के बीच शीत युद्ध (cold war) की तपिश को भी साफ महसूस किया जा सकता था। जब बात सिस्टम (system) को चलाने में निर्णायक भूमिका निभाने वालों के अहं के टकराव की हो तो मामला और संवेदनशील हो जाता है।
ऐसे में गुरुवार शाम के पहले तक यह अटकलें और दावे जमकर चले कि इस मर्तबा भी इस बड़े बदलाव के लागू होने की कोई उम्मीद नहीं है। वजह साफ थी। इस दिशा में इससे पहले तक थोथी घोषणाओं की हैट्रिक लग चुकी थी। पहले अर्जुन सिंह (Arjun Singh) और फिर दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) ने CM रहते हुए इस मामले में कोशिश की। फिर बड़े नाटकीय अंदाज (dramatic style) में वह दोनों इसमें सफल नहीं रहे। अर्जुन सिंह के लिए प्रसिद्द था कि उनका चश्मा ऊपर-नीचे होने भर से नौकरशाही (bureaucracy) में खलबली मच जाती थी। वे भी भोपाल (Bhoapl), इंदौर (Indore), जबलपुर (Jabalpur) तथा ग्वालियर (Gwalior) में यह सिस्टम लागू करने की घोषणा मात्र से एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सके।
दिग्विजय सिंह ने विधानसभा (Assembly) में इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दिलवा दी, लेकिन राजभवन (Raj Bhavan) में जाकर उनकी इन कोशिशों की हवा निकल गयी। मगर शिवराज (shivraj Singh Chauhan) के मामले में ऐसा कोई विपरीत प्रबंध तथा प्रपंच सफल नहीं हो सका। इसलिए उनकी यह उपलब्धि और खास हो जाती है। वस्तुत: शिवराज में एक बड़ा करिश्मा है। जिस जगह बाकी लोगों की कल्पना के घोड़े थक कर रुक जाते हैं, वहीं शिवराज विपरीत हालात पर लगाम कस कर उन्हें निर्णायक स्थिति में ले आते हैं।
नवंबर, 2005 में घोर प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच CM बने शिवराज को लेकर तब राजनीतिक पंडित उनकी इस पारी के दिन अंगुलियों पर गिनने लगे थे। लेकिन शिवराज ने सबको गलत साबित कर दिया। उपलब्धि केवल यह नहीं कि तब शिवराज लगातार तीन बार मुख्यमंत्री के रूप में और ताकतवर होते चले गए, उपलब्धि इस बात की अधिक है कि इसी अनुपात में उनकी सफलताओं का ग्राफ (graph of success) भी तेजी से बढ़ा। शिवराज ने कूटनीति का सहारा नहीं लिया। कई मौकों पर ऐसा किया जाना जरूरी लगता था। इसकी जगह शिवराज ने राजनीति में वह शक्तिवर्द्धक यंत्र विकसित कर लिया, जो उनकी सफलता से सभी को विस्मित कर गया। शिवराज के इस यंत्र ने उन सभी को लोगों ने विस्मृत कर दिया, जो शिवराज के मुख्यमंत्रित्वकाल को लेकर कबीर की शैली में ‘पानी करा बुदबुदा अस मानस की जात’ जैसे बातें करने लगे थे।
अब कल से भोपाल और इंदौर में लागू हुई (police commissioner system) उन लोगों के लिए ब्रेन वाश की प्रक्रिया को अपनाने की जरूरत बता रही है, जो कल तक भी यही मानते थे कि शिवराज में ऐसे किसी बहुत बड़े और कड़े फैसले को लेने के लिए विपरीत हालात के फासले को पार करने की क्षमता नहीं है। अब नए बही-खाते लिखे जाने लगे हैं। मामला ‘जहां न पहुंचे बड़ी आबादी, वहां पहुंच जाएं निराशावादी’ वाला है। वे लिख रहे हैं कि इस सिस्टम से मौजूदा सिस्टम सुधरने की कोई उम्मीद नहीं है। इस प्रणाली से अपराधों (crimes) पर रोक नहीं लगेगी। आईएएस और IAS बिरादरी में यादवी संघर्ष तेज हो जाएगा। इस सबका सच क्या है, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन आज का समय तो यही बता रहा है कि शिवराज ने वह कर दिखाया है, जिसे बीते करीब चार दशक में और कोई भी नहीं कर सका।
इसलिए वैचारिक दुराग्रहों एवं पक्षपातों को परे रखकर फिलहाल इस आशावाद का संचार किया जाना चाहिए कि यह प्रणाली सफल रहेगी। शिवराज जोखिम लेकर सफलता पाने में दक्ष हैं। प्रदेश में पंचायत(एक्सटेंशन टू द शिड्यूल एरिया (Extension to the Schedule Area)) एक्ट, 1996 को अलग-अलग चरणों में लागू करने का मुख्यमंत्री का प्रयास भी इसकी पुष्टि करता है। देश के अन्य राज्य पिछले साढ़े तीन दशक से इस मामले में कदम आगे बढ़ाने को लेकर पसोपेश के जाल में उलझे हुए हैं। आदिवासी नायक टंट्या भील (Adivasi Nayak Tantya Bhil) की जयंती पर शिवराज ने इसे भी अमली जामा पहना दिया। ऐसे और भी अनेक उदाहरण हैं। जिनमें से ज्यादातर सफल रहे। इसलिए पुलिस कमिश्नर प्रणाली के भविष्य को लेकर भी संदेह जताने का कोई बहुत बड़ा कारण नजर नहीं आता है। यह शिवराज हैं और ऐसे जोखिम में सफलता उनकी विशिष्टता का एक बड़ा राज है।