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राजनीति के मसखरे राहुल और कमलनाथ

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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से आप यूं भी किसी समझदारी की विशेष उम्मीद नहीं रख सकते हैं। किसी बहुत पढ़े-लिखे और प्रतिष्ठित परिवार (Distinguished family) के होने के बावजूद गांधी ने अपने प्रयासों से ही खुद की ये विशिष्ट छवि बनाई है। तो यदि इस छवि वाले राहुल कोविड (Covid) को ‘मोविड’ (Movid) बोलें तो इस पर हैरत नहीं होती। अलबत्ता उस पार्टी पर तरस आता है, जिससे राहुल केवल गांधी होने के चलते किसी जोंक की तरह चिपके हुए हैं। उसके जीवनदायी सत्वों को चूसते हुए उसे खोखला कर रहे हैं। तो इसी खोखलेपन का कुछ प्रतिबिम्ब उन्होंने अपने शरीर के उस हिस्से में एक बार फिर प्रदर्शित कर दिया है, जिस हिस्से को दिमाग कहते हैं। ‘मोविड’ जैसी फूहड़ कल्पना दरअसल यही बताती है कि राहुल किस कदर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के फोबिया (phobia) की चपेट में आ चुके हैं। वे मोदी से बुरी तरह डरे हुए हैं। उनके आगे लगातार बौना साबित होना निश्चित ही राहुल को मोदी के प्रति खौफजदा कर गया है। इसीलिये अब गांधी आंय-बांय-शांय कुछ भी जुबानी जमाखर्च कर Modi के लिए अपनी भड़ास निकालने पर आमादा हो गए हैं। सारी दुनिया अपने नागरिको की मदद और विश्वास के साथ कोरोना (Corona) से लड़ रही है, लेकिन राहुल गांधी जैसी मानसिकता का संघर्ष खालिस किसी गाइडेड मिसाइल (guided missile) की तरह चल रहा है। उन्हें कोरोना से दम तोड़ रहे या बीमार हुए लोगों से कोई सरोकार नहीं है। उनकी मिसाइल का लक्ष्य केवल और केवल मोदी की तरफ है।

आज जो मिसाइल कोरोना के बहाने दागी जा रही है, वही मिसाइल गुजरे करीब सात साल में अनगिनत बहानों के जरिये दागी गयी हैं और निशाना केवल एक है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। निश्चित ही सजग विपक्ष (opposition) का काम सत्ता पक्ष की खामियों पर बगैर चुके प्रहार करना होता है। वैसे तो बीते लोकसभा चुनाव में आम जनता एक बार फिर कांग्रेस (Congress) को बेहद शर्मनाक स्थिति वाले विपक्ष की भूमिका में ला चुकी थी। फिर भी ये खुशफहमी लोगों ने एक बार फिर पाल ली कि केंद्रीय स्तर (Central level) पर लगातार दूसरे बार की घनघोर बेइज्जती के बाद राहुल अपनी पार्टी पर कुछ तरस कर लेंगे। वे अपनी पचास का आंकड़ा छू रही उम्र एवं मानसिक परिपक्वता के बीच पनपाए गए विशालकाय अंतर को पार करने की दिशा में कुछ गंभीर प्रयास कर लेंगे। लेकिन ये सब आकाश कुसुम जैसा छलावा ही साबित हुआ। राहुल में केवल यह बदलाव आया कि उन्होने अपनी हेयर स्टाइल (Hair style) बदल ली बाकी उस केशराशि के नीचे अंदर की तरफ सुन्न पड़ी हुई तमाम नसों को जाग्रत करने का उन्होंने कोई भी जतन नहीं किया। यदि उन्होंने इस दिशा मे जरा भी मेहनत की होती तो फिर वे आज जैसी बचकानी बातें नहीं कहते।





विश्व के स्तर पर नरेंद्र मोदी सरकार (Narendra Modi government) के कोरोना से निपटने के प्रयासों को समर्थन तथा प्रशंसा मिली है। किसी समय के बलशाली देश भी भारत में बनी कोरोना की दवाओं की पुरजोर मांग कर रहे हैं। केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों से कोरोना की दूसरी लहर (Second Wave) और भी अधिक जानलेवा होने के बावजूद काबू में आने लगी है। अस्पतालों में आक्सीजन (Oxygen) और दवाओं सहित बिस्तरों की कमी के मामलों में उल्लेखनीय गिरावट आयी है। यदि इस सबमें किसी को नौटंकी दिखती है और वो इसे Movid कहता है तो तय मानिये कि वह कोरोना और ब्लैक फंगस (Black fungus) वाले किसी अज्ञात दिमागी वायरस की चपेट में आ चुका है।

राहुल गांधी के प्रदेश स्तरीय संस्करण कमलनाथ (Kamalnath) की भी कुछ चर्चा कर ली जाए। उनसे जुड़े मानसिक दीवालियापन (Mental bankruptcy) के दो खासे मनोरंजक (Entertaining) वाकये सामने आये हैं। नाथ ने कोरोना के सन्दर्भ में अपने ही देश के लिए ‘महान’ की जगह ‘बदनाम’ का इस्तेमाल किया है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष एक वीडियो में यह नामजद दावा भी कर रहे हैं कि कोरोना से मृत एक व्यक्ति ने उन्हें बताया कि उसकी मौत नकली इंजेक्शन के चलते हुई है। नाथ तो गोया कि किसी आदतन अपराधी की तरह आचरण करने पर आमादा हो गए हैं। कोरोना सहित हनी ट्रेप (Honey trap) जैसे संवेदनशील विषय पर झूठ बोलने के चलते उनके खिलाफ बाकायदा पुलिस प्रकरण दर्ज किया गया है। मगर कांग्रेस का ये वयोवृद्ध नेता सठियाने की भी हदें पार करने जैसा आचरण दोहराने से बाज नहीं आ रहा है। मध्यप्रदेश (Madhya pradesh) ने कोरोना की इस लहर भी सफलतापूर्वक जूझने का उल्लेखनीय काम कर दिखाया है। लेकिन विपक्षी नजरिये में किसी रचनात्मकता की गुंजाईश तो गांधी या नाथ ने छोड़ी ही नहीं है, तो फिर उनसे किसी परिपक्व आचरण की उम्मीद करना भी बेकार ही है। ऐसे लोग राजनीति के मसखरों से अधिक और किसी भी पहचान के लायक नहीं रह गए हैं।

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