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कृपया इस दान पर न दें राजनीतिक ज्ञान

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शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) मंत्रिमंडल की सदस्य उषा ठाकुर (Usha Thakur) के एक कथन पर कांग्रेस (Congress) को आपत्ति है। ठाकुर ने एक अपील की। कहा कि जिन लोगों को कोरोना की मुफ्त वैक्सीन (Corona Vaccine) लग चुकी है , उन्हें पीएम केयर्स फण्ड (PM Cares Fund) में 500-500 रुपये का दान देना चाहिए। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार फ्री वैक्सीनेशन के वादे से पीछे हट रही है। पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से ठाकुर की बात पर मांग की है कि वह देश को ‘धन्यवाद अभियान’ का पैसा लौटाएं।
ठाकुर ने जो कहा, वह आदेश नहीं, केवल अपील है। वैसी ही अपील, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) ने देश से की थी। तब मुल्क में अन्न की जबरदस्त कमी थी। शास्त्री जी ने लोगों से आग्रह किया था कि वे सप्ताह में एक दिन का व्रत रखें। ताकि अनाज की किल्लत को कुछ कम किया जा सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस अपील का भी खासा असर होने की बात कही जाती है, जिसमें उन्होंने अमीर लोगों से घरेलु गैस पर सब्सिडी न लेने का आव्हान किया था। कहने का मतलब यह कि कठिन परिस्थितियों में देश का साथ लेने के लिए इस तरह की बात किया जाना गलत नहीं है। हां, शास्त्री जी और मोदी सहित ठाकुर ने आदेश के लहजे में ऐसा कहा या किया होता तो उस पर आपत्ति आ सकती थी। इसे यूं समझिये। दिग्विजय सिंह (Digivjay Singh) के समय मध्यप्रदेश में बिजली की ऐसी किल्लत हुई कि राज्य त्राहि-त्राहि कर उठा। तब दिग्विजय ने सीधे उठाकर रोजाना की प्रदेश स्तरीय बिजली कटौती लागू कर दी थी। जब रात को घर सहित पूरे रास्तों पर इस कटौती से अंधेरा छाया तो अखबारों ने 1971 के युद्ध (1971 Indo-Pak war) का वह समय याद कर लिया, जब इसी तरह ब्लैक आउट (Black Out) होता था। यह दिग्विजय ही थे, जिन्होंने घरेलु बिजली के लिए इलेक्ट्रॉनिक मीटर की व्यवस्था को राज्य में बिजली कटौती की ही तरह से जनता पर थोपा था। ‘थोपा’ शब्द इसलिए कि इस मीटर में एक बत्ती पूरे समय जलती रहती थी। उसमें खर्च होने वाली बिजली का खर्चा भी संबंधित उपभोक्ता के बिल में ही आता था। तब एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऊर्जा विभाग और बिजली बोर्ड से जुड़े अफसर पत्रकारों के सवालों के जवाब में केवल इतना कह सके थे कि इस बत्ती के जलने से मामूली बिजली ही खर्च होती है। दिग्विजय भी उस मौके पर मौजूद थे और उनके अफसर पत्रकारों के एक सवाल का जवाब नहीं दे पाए। वह यह कि उपभोक्ता एक भी पैसे उस चीज के क्यों दे, जो उसके खर्च का हिस्सा ही नहीं है।
तो यह होता है फर्क अपील और आदेश का। यह देश में संकट का समय है। कोरोना के इलाज सहित वैक्सीनेशन में अरबों का खर्च करना पड़ रहा है। उस पर राहत के उपायों पर भी केंद्र तथा राज्य सरकारों के व्यय की गति चिंताजनक रूप ले चुकी है। अब होना यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कोरोना से दम तोड़ने वालों को भी मुआवजा दिया जाएगा। तो ऐसे में 500 रुपये का दान देने की अपील क्या वाकई किसी सियासी आरोप- प्रत्यारोप के दायरे में आती है?
जो लोग सक्षम हैं, निश्चित ही उनकी इस दान राशि से पीएम केयर्स में मदद मिलेगी। उन लोगों की सरकार की तरफ से और अच्छी मदद हो सकेगी, जिन्हें इसकी सख्त जरूरत है। लॉकडाउन ख़त्म होते ही विवाह समारोहों में लोग शगुन का लिफाफा लेकर जाने लगे हैं। बाजारों में उन लक्ज़री चीजों की बिक्री भी फिर से बढ़ने लगी है, जो रोजमर्रा की जरूरत का हिस्सा नहीं हैं। बल्कि उनमें से ज्यादातर सामान वह हैं, जिन्हें खरीदा जाना अनिवार्यता के दायरे में नहीं आता है। शराब की दुकानों पर भीड़ उमड़ पड़ी है। भले ही पेट्रोल और डीजल के दामों को लेकर हायतौबा का माहौल हो, लेकिन न तो पेट्रोल पम्पों पर वाहनों की कतार में कमी आयी है और न ही ऐसा हुआ है कि साइकिल की बिक्री बढ़ गयी हो। बल्कि लॉकडाउन के बीच तो मोबाइल में महंगे इंटरनेट पैक डलवाने की जैसे होड़ मच गयी थी। उषा ठाकुर की अपील को ज़रा भी निरपेक्ष नजर से देखें तो उनकी 500 रुपये के दान वाली इच्छा इस वर्ग से ही है, जो कोरोना के बावजूद अपनी क्रय शक्ति में कोई कमी नहीं झेल रहा है।
अपील की बात का भी बतंगड़ बनाने वाले कम से कम यह तो जानते ही होंगे कि इस पीएम केयर्स फंड के पैसों से ही देश में कोरोना के समय ऑक्सीजन प्लांट लगाने से लेकर दवाओं और वैक्सीन के इंतज़ाम में कितनी बड़ी मदद मिली है। आज इस फंड में इसी देश की बहुत बड़ी आबादी की और अच्छे तरीके से मदद की दिशा में एक सुझाव पर ही आपत्ति उठ रही है। सन 1962 के युद्ध (1962 War) के समय तत्कालीन सरकार के आव्हान पर देश-भर से लोगों ने सोना-चांदी और पैसे का दान देकर तत्कालीन हुकूमत की मदद की थी। वह युद्ध तो हम हार गए। तो क्या ऐसा हुआ कि लोगों ने उस समय के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) से अपने द्वारा दान में दी गयी चीजें वापस मांग लीं? ऐसा नहीं हुआ। नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) के आजादी अभियान को गति देने के लिए उस समय विदेशों में बसे भारतीयों ने उन्हें नकदी सहित अन्य तरीकों से करोड़ों रुपये की मदद दी थी। तो क्या उस समय देश स्वतंत्र न हो पाने पर नेताजी से वो पैसा वापस मांग लिया गया था?
दरअसल ये भावनाओं से जुड़े मामले होते हैं। जिन पर राजनीति नहीं होना चाहिए। मैं बिलकुल इस बात को मानता हूं कि मुफ्त टीकाकरण को लेकर नरेंद्र मोदी ने अपनी छवि चमकाने की कोशिश की थी। यह गलत आचरण था। लेकिन अब जबकि कोरोना से हालात और बिगड़ने की पूरी आशंका है। अब जबकि संसाधनों के लिहाज से अकल्पनीय रूप से और अधिक पैसों की सरकार को जरूरत है। अब जबकि इस देश की मासूम पीढ़ी की जान बचाने के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं को रातों-रात अत्याधुनिक बनाने की जिम्मेदारी सरकारों पर आ गयी है, तब किसी दान की अपील को सियासी रंग देना उचित नहीं है। जिन्हें यह दान देना है, वे ऐसा करने से पहले न तो मोदी की तस्वीर के आगे नतमस्तक होंगे और न ही कांग्रेस के आरोपों पर कोई ध्यान देंगे। वे ऐसा मानवता के लिए करेंगे। एक मानव होने का परिचय देने के लिए करेंगे। आप देने दीजिये किसी को दान, लेकिन आप मत दीजिये इंसानियत के इस जज़्बे पर अपना सियासी ज्ञान।

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