निहितार्थ

ऐसे कोढ़ का स्थायी इलाज बहुत जरूरी

और कोई मौका होता तो दस्तूर तो यही था कि बात हमारे देश की बेटी वंदना कटारिया (Vandana Kataria) की उपलब्धियों से शुरू की जाती। उनके खेल में जज्बे और कौशल को एक बार फिर दोहराया जाता। यह कहा जाता कि भले ही महिला हॉकी टीम (women’s hockey team) को सफलता नहीं मिल सकी, लेकिन वंदना कटारिया सहित अन्य खिलाड़ियों की खेल भावना की वजह से ही इस देश को आने वाले समय में वैश्विक स्तर की अनेक सफलताओं की आशा बंधी हुई है। ये सारी बातें गर्व के साथ की जाती यदि वंदना की जाति (Caste) को लेकर कुछ ऐसा किया और कहा न गया होता, जिस ने सारे देश के गौरव का क्षरण पल भर में करने का दुस्साहस कर दिया। तो आज करतूत गिनाने का दिन है। उनकी कारस्तानी, जिन सिरफिरों ने वंदना के घर के बाहर भारत की हार का यह कहते हुए जश्न मनाया कि वंदना की जाति के कारण यह पराजय हुई है और दलितों को हरेक खेल से दूर रखा जाना चाहिए। मैं इसे ‘छोटी सोच’ नहीं बल्कि पूरी जिम्मेदारी के साथ ‘ओछी सोच’ ही कहूंगा। इतना मानसिक अधोपतन! इतनी जहरीली विचारधारा (Poisonous ideology)! इतने घिनौने लोगों की हमारे बीच उपस्थिति! ये सब दहला रहा है।

हरिद्वार की पवित्र भूमि पर जो अपवित्र कार्य किया गया, उसकी निंदा के लिए सिर्फ और सिर्फ कोई घनघोर अशालीन शब्द ही इस्तेमाल किया जा सकता है। वंदना के घर के बाहर ऐसा करने वाली भीड़ यह जताती है कि संस्कारों के धनी हमारे देश में ही किस हद तक के संस्कार-विहीन लोग भी रह रहे हैं।

मैं यह सोच भी नहीं सकता कि हरिद्वार वाले जाहिलों के जवाब में दलित वर्ग की उन खेल प्रतिभाओं के नाम गिनाऊं, जिन्होंने अपनी दक्षता से देश का दुनिया में नाम रोशन किया। कोई भी सभ्य व्यक्ति ऐसा नहीं करेगा। क्योंकि हमारे लिए ऐसी हर प्रतिभा पहले भारतीय है और फिर है खिलाड़ी। खेल तो खेल होता है, भला कैसे आप उसमें किसी को जाति के आधार पर बेमेल ठहरा सकते हैं? फिर ये तो सामाजिक समरसता का दौर है। यूं इससे पहले भी सालों-साल में यह माहौल बना है कि देश में जात-पात की रूढ़ियों को दूर किया जा रहा है। कोई भी क्षेत्र हो, विषय हो, उसमें इस तरह की घटिया सोच को कोई स्थान देना उचित नहीं माना जाता। फिर ये कौन-सी मानसिकता है, जो समाज को जोड़े रखने वाले इस ताने-बाने को ध्वस्त करने पर तुली हुई है? निश्चित ही घटिया होना आप का अघोषित अधिकार है। यह जीवन की वह विषैली शैली है, जिसे कई लोग आज भी गर्व के साथ अपनाना तथा समय-समय पर उसका प्रदर्शन करना अपनी खूबी मानते हैं। सोशल मीडिया पर तो ऐसे कुंठित लोगों के बीच खुद को एक-दूसरे के मुकाबले घटियातम साबित करने की होड़ मची रहती है। ऐसा घृणित वैचारिक कब्ज लेकर ऐसे लोग किस तरह सामान्य तरीके से जीवन बिता पाते होंगे, उन्हें कैसे कर नींद आ पाती होगी…इस पर तो अब समाजशास्त्रियों (sociologists) को शोध करना होगा।

वैसे यहां किसी साजिश की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता। उत्तराखंड (Uttarakhand) और उससे सटे उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में जल्दी ही विधानसभा चुनाव (Assembly elections) होने हैं। यदि इस घटना/षड़यंत्र को हिन्दू या हिंदुत्व (Hindutva) से जोड़ दिया जाए, तो उन लोगों की सियासी संभावनाएं मजबूत हो जाएंगी, जो समाज को बांटकर ही राजनीतिक सफलताएं हासिल कर पाते हैं। मामला भले ही उत्तराखंड का हो, लेकिन इसका असर उत्तरप्रदेश की राजनीतिक फिजा में भी साफ महसूस किया जाएगा। इसलिए उत्तराखंड की सरकार को चाहिए कि इस घटना की तह तक जाए और दोषियों को ऐसी सजा दे, जो नजीर बन सके।

खेल से लोगों के जज्बात स्वाभाविक रूप से जुड़े होते हैं। हार या जीत का समाज के मानसिक स्वरूप पर सीधा असर होता है। यही वजह रही कि एक क्रिकेट मैच में हार के बाद रांची में महेंद्र सिंह धोनी (Mahendra Singh Dhoni) के घर पर पथराव किया गया। एक अंतर्राष्ट्रीय मैच में जब भारत की हार तय हो गयी तो मैदान में आम लोगों ने आगजनी कर दी थी। आज भी याद है कि रवि शास्त्री की धीमी और स्व-केंद्रित बैटिंग के चलते भारत एक मैच हार गया था। तब देश के कई हिस्सों में शास्त्री के पुतले जलाये गए थे। मानसिक दरिद्रता का स्तर तब और गिर गया था, जब विराट कोहली (Virat Kohali) की कप्तानी में भारत एक मैदान में हारा। एक टीवी चैनल पर यह कहा गया कि चूंकि वह मैच देखने विराट की तत्कालीन मंगेतर (अब उनकी पत्नी) अनुष्का शर्मा (Anushka Sharma) वहां थीं, इस वजह से विराट अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए। लेकिन हम फिर भी इराक नहीं बने। सद्दाम हुसैन की तानाशाही के दौर में उनके बिगड़ैल बेटे उदय ने एक टार्चर कक्ष बनवा कर रखा था। किसी अंतर्राष्ट्रीय खेल में वहां का जो खिलाड़ी कमजोर प्रदर्शन करता था, उदय उस कमरे में उसे नारकीय यातनाएं देता था।

हम पाकिस्तान (Pakistan) भी नहीं बने, जहां क्रिकेट में भारत से पाकिस्तानी टीम (Pakistani team) की हार के बाद वहां के एक प्रमुख समाचार पत्र ने एक कार्टून प्रकाशित किया था। उसमें दिखाया गया था कि उस देश के एक कब्रिस्तान में उस पराजित टीम के सदस्यों के नाम की कब्रें खोद दी गयी हैं और उन्हें दफनाने के लिए कब्रिस्तान का कर्मचारी खिलाड़ियों की प्रतीक्षा कर रहा है। यह कार्टून (Cartoon) हंसाता नहीं, बल्कि ये सोचकर डराता था कि किस तरह खेल की हार को किसी की जान ले लेने के उन्माद से जोड़ दिया गया है। वर्ष 2007 में क्रिकेट वर्ल्ड कप से पाकिस्तान के बाहर हो जाने के बाद इस टीम के कोच बॉब वूल्मर की मौत का कारण भी जीत के असहनीय दबाव को ही बताया गया था। लेकिन हमारे देश में यह गुस्सा भी मर्यादित ही रहा, शुक्रवार से पहले। शुक्रवार वाले हरिद्वार से पहले। हरिद्वार के इन पिशाचों से पहले, जिन्होंने वंदना के घर के बाहर अपनी मानसिक जहालत का सार्वजनिक परिचय दिया। ऐसे लोग सभ्य समाज की अवधारणा पर पनपे वह कोढ़ हैं, जिनका स्थायी इलाज किया जाना बहुत जरूरी है।

प्रकाश भटनागर

मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में प्रकाश भटनागर का नाम खासा जाना पहचाना है। करीब तीन दशक प्रिंट मीडिया में गुजारने के बाद इस समय वे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश में प्रसारित अनादि टीवी में एडिटर इन चीफ के तौर पर काम कर रहे हैं। इससे पहले वे दैनिक देशबंधु, रायपुर, भोपाल, दैनिक भास्कर भोपाल, दैनिक जागरण, भोपाल सहित कई अन्य अखबारों में काम कर चुके हैं। एलएनसीटी समूह के अखबार एलएन स्टार में भी संपादक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। प्रकाश भटनागर को उनकी तल्ख राजनीतिक टिप्पणियों के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button