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मोदी की सालगिरह के बहाने…

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यह महामानव हो जाने जैसी बात तो नहीं है, किन्तु साधारण मानवीय जीवन का असाधारण उदाहरण जरूर है। यदि आपका जन्मदिन देश की दो करोड़ से अधिक आबादी को जानलेवा कोरोना वायरस (corona virus) से सुरक्षा कवच (protective sheild) प्रदान करने का निमित्त बन जाए, तो इसकी सराहना की जाना चाहिए। इसलिए प्रधानमंत्री (Prime minister) को यदि कल जन्मदिन की बधाई दी गयी थीं, तो आज उन्हें ऐसे सफल जन्मदिन की बधाई (happy birthday) देने की भी यह ठोस वजह बन चुकी है। अब दिखावा तो मानव जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। इसलिए मंदिरों में मोदी के लिए पूजा करने या उनकी वर्षगांठ पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करने को चलन का हिस्सा मान लिया जाना चाहिए। यह सोचते हुए कि कम से कम यह अवसर नोटों की माला पहनाने जैसे विशुद्ध भौतिक आडंबर में परिवर्तित नहीं हो गया।

जन्मदिन पर मोदी को पूजने वालों से मैं इत्तेफाक नहीं रखता, किन्तु ऐसा करने वालों का विरोध भी नहीं करूंगा। एमजी रामचंद्रन (MG Ramachandran) या एसपीएम राजकुमार (SPM Rajkumar) दक्षिण भारत (South India) में आज भी पूजे जाते हैं। दिवंगत रामचंद्रन अपनी फिल्मों वाली मसीहाई छवि को राजनीतिक जीवन में भी बखूबी अपनाने के चलते लोगों के लिए देव-तुल्य हो गये। डॉ. राजकुमार तो महज फ़िल्मी चरित्रों की जीवंत अवतार के रूप में अपने जीवनकाल में ही मंदिर में स्थापित कर दिए गए थे। सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar) को हम गर्व से ‘क्रिकेट का भगवान (god of cricket)’ कहते हैं। उत्साही लोग उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) में सोनिया गांधी (sonia Gandhi) को देवी के रूप में पोस्टरों पर स-सम्मान स्थान प्रदान कर चुके हैं और मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में कमलनाथ (Kamalnath) को भी भगवान (God) का अवतार बताया गया है। मायावती (Mayavati) दलितों की देवी के रूप में विशिष्ट छवि में स्थापित की गयी हैं। जब इतना सब कुछ हो ही रहा है तो फिर मोदी के लिए पूजा या उन्हें पूजने को लेकर बहस की अधिक गुंजाइश नहीं रह जाती है। भक्ति-भाव सिर्फ धार्मिक क्रियाओं से ही नहीं होता। यदि वर्ष 1962 के देश की पराजय वाले बुरे दौर में भी इसी देश में एक विचारधारा चीन (China) की विजय का जश्न मनाती है तो वह भी भक्ति भाव ही है। भले ही वह गलत क्यों न हो। अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) ने इंदिरा जी (Indira ji) को ‘दुर्गा’ की संज्ञा प्रदान की थी। चाहे यह सब कहीं श्रद्धा का अतिरेक तो कहीं श्रद्धा से अतिरिक्त निजी स्वार्थ से जुड़ा मामला लगे, किन्तु हमारा समाज आरंभ से ही इसे मान्यता प्रदान करता आ रहा है। लिहाजा इस सबके गुण-दोष, सत्य-असत्य की विवेचना अब बेमानी हो चुकी है। जो पूज रहे हैं, उन्हें आप रोक नहीं सकते। जो पुज रहे हैं, उनसे ये उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह ऐसा करने वालों को रोक पाएंगे (रोकना चाहेंगे भी नहीं) जो इस सबसे नाखुश हैं, वे भी वक्त आते ही अपने मन-मंदिर में किसी उस मानव की प्राण-प्रतिष्ठा कर गुजरेंगे, जो उनके इन विचारों की पुरजोर तरीके से अभिव्यक्ति कर देगा। फिर भले ही वह प्राण-प्रतिष्ठा दुर्दांत आतंकी संगठन तालिबान (Terrorist organization Taliban) के लिए ही क्यों न हो। आखिर महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) और मुनव्वर राना (Munawwar Rana) की भावनाओं की अभिव्यक्ति तालिबान को पूजे जाने जैसी ही तो है।

तो पूजनीय बना दिए जाने का ये क्रम हमारे देश में बेहद गड्डमड्ड वाला हो चुका है। इसे इसके ही हाल पर छोड़ देना चाहिए। चर्चा इस बात पर हो कि आखिर कब हम इस बात को समझेंगे कि जिन मानवों को हम पूज रहे हैं, उन्होंने केवल एक काम किया है। अपनी क्षमताओं का विस्तार और उपयोग। फिर चाहे यह प्रक्रिया स्वयं के लाभ के लिए की गयी हो या परोपकार की खातिर। दक्षिण भारत में चिरंजीवी, ममूटी या मोहनलाल लोगों की आंख के तारे हैं, किंतु इनमें से कोई भी एमजी रामचंद्रन या डॉ. राजकुमार जैसा श्रद्धामयी स्वरुप नहीं ले सका। एमएस धोनी से लेकर विराट कोहली (Virat Kohli) ने भारतीय क्रिकेट (Indian cricket) में बड़ा कद हासिल किया किन्तु वह भी तेंदुलकर की श्रेणी वाले भगवान तक नहीं पहुंच सके। केंद्र में लगातार दो बार UPA की सरकार लाने का करिश्मा कर दिखाने के बावजूद सोनिया गांधी विपक्ष तो दूर, सत्ता पक्ष में भी अपनी दिवंगत सासु मां जैसा ओहदा हासिल नहीं कर पायी हैं। करोड़ों रूपये की लागत से बनी मायावती की प्रतिमाओं में वह तत्व कहीं भी नहीं है, जिस तत्व के चलते भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर आज तक दलितों की अगाध आस्था के प्रतीक बने हुए हैं। ऐसा इसलिए कि इनमें से कोई भी अपने-अपने क्षेत्र में पूजे जाने के पूर्ववर्ती स्थापित मापदंडों के नजदीक फटक भी नहीं सका है। आप बेशक सचिन तेंदुलकर के खेल के रिकॉर्ड तोड़ सकते हैं, किन्तु प्रशंसकों से वह नाता नहीं जोड़ पा रहे हैं, जो तेंदुलकर ने कर दिखाया था।

आज मोदी के लिए पूजा की जा रही है। वर्ष 2024 के पहले तक हो सकता है कि वह पूजे भी जाने लगें। इस तरह का प्रायोजित आयोजन अब कतई मुश्किल या चौंका देने वाला नहीं है। भाजपा को व्यक्ति-पूजा की फितरत से तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) तक नहीं बचा पाया है। फिर भी यदि कल की पूजी जाने जैसी गतिविधियां कुछ खलने के बावजूद यदि कोरोना के वैक्सीनेशन (Corona’s Vaccination) का विश्व कीर्तिमान (world record) स्थापित कर देती हैं तो फिर यही कहा जा सकता है कि मोदी के लिए काफी हद तक प्रायोजित वाले भक्ति भाव ने भी मानव स्वास्थ्य के कल्याण की दिशा में बहुत बड़ा काम कर दिखाया है। आप स्वतंत्र हैं कि राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस (national unemployed day) मना लें, किन्तु इतने परतंत्र भी न हों कि वैक्सीनेशन के इस सफल अभियान के चलते आपके मुंह से एक बार भी ‘राष्ट्रीय मानव स्वास्थ्य सरोकार दिवस’ न निकल सके।

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